सीधी-सी बात है कि ग्लोबल नेटवर्क से जुड़ी पूंजी या उसके साथ लयताल मिलाकर चले रहे लोकल ऑपरेटरों के प्रोफेशनल अंदाज़ को टक्कर देना रिटेल ट्रेडरों के वश की बात नहीं है। रिटेल ट्रेडर उनका अनुसरण ही कर सकते हैं। लेकिन टुच्चे अहंकारवश रिटेल ट्रेडरों को यह सच्चाई हजम नहीं होती। नतीजा यह होता है कि उनकी सारी पूंजी धीरे-धीरे बहकर प्रोफेशनल व संस्थागत ट्रेडरों के बैंक खातों में पहुंच जाती है। अब परखें मंगल की दृष्टि…
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