नए साल के बजट प्रस्तावों पर सारी दुनिया में बेचैनी मची हुई है। दुनिया की ऐसी ढाई लाख से ज्यादा कंपनियों के प्रतिनिधि उद्योग व व्यापार संगठनों ने सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखकर बजट प्रस्तावों पर अपना ऐतराज जताया है। उन्होंने यह पत्र 29 मार्च को लिखा है। अंतरराष्ट्रीय जगत की कुछ ऐसी ही शिकायतों को लेकर ब्रिटेन के वित्त मंत्री जॉर्ज ओसबोर्न भी सोमवार को भारत के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से मिले।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक खबर के मुताबिक सात अंतरराष्ट्रीय उद्योग संगठनों ने अपने पत्र में लिखा है, “बजट में अचानक उठाए गए अभूतपूर्व कदम ने विदेशी निवेश और कराधान के प्रति भारत सरकार की नीतियों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के विश्वास को कम कर दिया है। इसने भारत में उचित बर्ताव व कानून के राज पर ही सवालिया निशान लगा दिया है।” उन्होंने धमकी भरे अंदाज में कहा है कि अब उन्हें भारत में अपने प्रस्तावित निवेश पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
असल में सारा बवाल वोडाफोन मामले से सीखे गए सबक से निकला है। इसी के मद्देनजर वित्त मंत्री ने आयकर कानून में ऐसा संशोधन लाने का प्रस्ताव किया है जिसके मुताबिक भारत में बनी आस्ति की बिक्री दुनिया में कहीं से किए जाने पर उस पर टैक्स लगाया जाएगा और यह प्रावधान 1962 से लागू होगा। यह संशोधन पास हो गया तो वोडाफोन को 12,000 करोड़ रुपए का टैक्स देना पड़ सकता है क्योंकि नया कानून पिछली तारीख से लागू होने के बाद सुप्रीम से मिली राहत का कोई कानूनी औचित्य नहीं रह जाएगा।
प्रधानमंत्री को पत्र लिखनेवाले संगठनों में अमेरिका का बिजनेस राउंडटेबल, ब्रिटेन का कनफेडरेशन ऑफ ब्रिटिश इंडस्ट्री, जापान की फोरेन ट्रेड काउंसिल और कनाडा के निर्माताओं व निर्यातकों का संघ शामिल है। विदेशी निवेशकों में भारत की छवि लंबे समय से अटकी चली आ रही दक्षिण कोरियाई कंपनी पोस्को की इस्पात परियोजना के चलते भी खराब हुई है। पर्यावरण मंत्रालय से मिली हरी झंड़ी के बावजूद पिछले हफ्ते राष्ट्रीय पर्यावरण ट्राइब्यूनल ने 12 अरब डॉलर की इस परियोजना को रोक दिया।
ऊपर से बजट प्रस्तावों ने विदेशी कंपनियों को ज्यादा ही परेशान कर दिया है। आयकर कानून में 50 साल पहले से संशोधन लागू किए जाने से बहुत से मामले फिर से खुल सकते हैं। इस साल जनवरी में वोडाफोन को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत अब बेमतलब हो जाएगी। अंतरराष्ट्रीय उद्योग व व्यापार संगठनों के साझा पत्र में कहा गया है, “हमारे कुछ सदस्यों ने कराधान की अनिश्चितता और विवादों के चलते भारत में अपने निवेश के बारे में फिर से सोच-विचार शुरू भी कर दिया है।” असल में ये संगठन नहीं चाहते कि किसी भी सूरत में नया संशोधन संसद से पारित हो पाए। संसद में बजट को इसी महीने के आखिरी हफ्ते में पारित किया जाना है।