रीयल एस्टेट अर्थव्यवस्था का बड़ा ही बदनाम क्षेत्र बना हुआ है। खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यह बात स्वीकार कर चुके हैं कि सबसे ज्यादा काला धन रीयल एस्टेट के धंधे में लगा हुआ है। सूत्रों के मुताबिक इस कालिख को साफ करने के लिए वित्त मंत्री बजट 2012-13 में रीयल एस्टेट को उद्योग का दर्जा देने का ऐलान कर सकते हैं।
रीयल एस्टेट में लगे लोगों का मानना है कि उद्योग का दर्जा न मिलना इस धंधे में काला धन लगने की प्रमुख वजह है। अभी किसी भी डेलवपर के लिए धन जुटाना बहुत मुश्किल होता हैं। बैंक उसे उद्योग का दर्जा न मिलने के कारण ऋण देने में आनाकानी करते हैं और देते भी हैं तो ऊंची ब्याज दर पर। वैसे, कितनी विचित्र बात है कि अर्थव्यवस्था के बढ़ने के साथ हर तरफ नई-नई बिल्डिंग बनती दिखती हैं और बिल्डरों का धंधा भी खूब फल-फूल रहा है। लेकिन इस धंधे को सरकार ने उद्योग का दर्जा नहीं दे रखा है। 14 साल पहले तक फिल्मों सहित मनोरंजन उद्योग को भी सरकार ने उद्योग का दर्जा नहीं दे रखा था।
सूत्रों का कहना है कि सरकार ने रिटेल व्यापार में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) को लाने का पूरा मन बना लिया है। इस पर अमल के लिए बड़े पैमाने पर रीयल एस्टेट के धंधे को बढ़ाना पड़ेगा। दूसरे वह रीयल एस्टेट में भी सीधे एफडीआई को खींचना चाहती है। इस समय रीयल एस्टेट की बढ़ती कीमतों और होम लोन पर ज्यादा ब्याज दर के कारण इस धंधे की हालत खराब है। फिर, रिजर्व बैंक के निर्देशों के मुताबिक बैंकों को रीयल एस्टेट को दिए गए ऋण पर ज्यादा प्रावधान करना पड़ता। ऐसे में रीयल एस्टेट लॉबी सरकार पर दबाव बनाए हुए है कि उसे उद्योग का दर्जा मिल जाए। अभी तक जो संकेत मिले हैं, उससे लगता है कि वित्त मंत्री उनकी बात मान चुके हैं।