डेरिवेटिव सेगमेंट में शॉर्ट और लॉन्ग दोनों तरह के सौदे लीवरेज्ड होते हैं। जितना धन लगाया है, उससे कहीं ज्यादा बड़ा असल सौदा होता है। लेकिन मार्क-टू-मार्केट भुगतान के दबाव में लॉन्ग सौदे करने वाले ट्रेडर को मजबूरी में अपनी पोजिशन छोड़नी होती है तो बाज़ार गिर जाता है। वहीं, शॉर्ट सेलिंग करने वाले ट्रेडर को अक्सर अपनी पोजिशन कवर करने के लिए घबराहट में खरीदना पड़ता है तो बाज़ार चढ़ जाता है। अब शुक्र का अभ्यास…
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