हमारे नेतागण काले धन को सफेद बनाने में बड़े उस्ताद हैं। वे अमूमन बीएसई में लिस्टेड किसी मरियल-सी कंपनी के शेयर खरीदते हैं जिसके सारे शेयर कुछ गिनेचुने ऑपरेटरों के पास होते हैं। मसलन, इसी साल जुलाई में महाराष्ट्र के एक प्रमुख राजनेता ने अपनी पत्नी और बेटे के नाम एक कंपनी के 50 लाख शेयर खरीदे। उन्हें यह शेयर 2 रुपए के भाव पर वरीयता आधार पर दिए गए। तब शेयर का भाव 3.70 रुपए चल रहा था। अभी वो 7.24 रुपए चल रहा है। इस तरह उनके निवेश का मूल्य छह महीने में ही 262% बढ़ चुका है।
अब होगा यह कि मॉरीशस का कोई एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) अपने सब-एकाउंट या पी-नोट के जरिए इस कंपनी के शेयर खरीदेगा। तब तक ऑपरेटर इसे और चढ़ा देंगे। टिप्स के नाम पर रिटेल निवेशक भी इसे खरीदने लग जाएंगे। पी-नोट के जरिए उसी राजनेता का कालाधन भारत के शेयर बाज़ार में लगेगा। चूंकि अपने यहां कोई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स नहीं लगता। लॉन्ग टर्म का मतलब यहां कम से कम एक साल माना जाता है। इसलिए साल भर बाद वो राजनेता अपने शेयरों को बेचकर वह धन वापस पा लेगा जो उसने एफआईआई के पास पी-नोट के जरिए रखा था।
इस तरह भारत में नेताओं का काला धन सफेद होता रहता है। इसके एक नहीं, पचासों उदाहरण हैं। सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार इस रास्ते को बंद करने का कोई इंतज़ाम करेगी? या, ‘राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट’ का सालों-साल से चला रहा गोरखधंधा यूं ही चलता रहेगा?
sataa me hi loot hai,ji bhar ke tu loot/fir to bahut pachhtayega,jab kursi jayegi chhoot
प्रिय अनिल जी इस आर्टिकल को महीनों पहले पढ़ा .कुछ अता पता किया .बात सही पाई .अतः अपनी फेसबुक वाल पर शेयर कर रहा हूँ .जन जागरण मान लें इसे 🙂