नेकी कर दरिया में डाल। यह महज एक कहावत नहीं, बल्कि भारत की लम्बी परम्परा है। इतिहास गवाह है कि रेगिस्तान से घिरे, पानी को तरसते राजस्थान में जब वहां के सेठों ने पक्की बावडियां बनवाईं तो उन पर कहीं नाम नहीं लिखवाया। लोगों ने बहुत कहा तो वे बावड़ी की तलहटी में अपना नाम लिखवाने को तैयार हुए। लेकिन आज वही भारत है, जहां ऐसा प्रधानमंत्री है जो देश में किए गए हर छोटे-बड़े काम का श्रेय लेने को आतुर है। 28 अगस्त 2024 को जनधन योजना के दस साल पूरे होने पर मोदी सरकार की तरफ से बड़े-बड़े विज्ञापन निकाले गए। एक दिन पहले अर्थशास्त्रियों से अखबारों में लेख लिखवाए गए। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर लिखा कि पिछली सरकारों ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। लेकिन 65 सालों तक गरीबों तक बैंकिंग नहीं पहुंचाई, जबकि उन्होंने दस साल में 53 करोड़ से ज्यादा जनधन खाते खुलवा दिए, जिनमें ₹2.31 लाख करोड़ से ज्यादा जमा हैं। लेकिन सच यह है कि साल 2005 में ही मनमोहन सरकार ने गरीबों के लिए बिना किसी बैलेंस वाले ‘नो फ्रिल्स’ खातों की शुरुआत कर दी थी। साल 2012 में रिजर्व बैंक ने इन खातों का नाम बेसिक सेविंग्स बैंक डिपॉजिट एकाउंट (बीएसबीडीए) कर दिया। मई 2014 में मोदी सरकार बनने तक शून्य बैलेंस वाले ऐसे करीब 25 करोड़ बैंक खाते खोले जा चुके थे। अब सोमवार का व्योम…
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