पिछले साल के बजट में वित्त मंत्री ने भले ही वरिष्ठ नागरिक माने जाने की उम्र घटाकर 65 से 60 साल कर दी हो, लेकिन देश में बुजुर्गों की सुरक्षा व देखभाल की स्थिति बिगड़ती जा रही है। केंद्र सरकार ने बारह साल पहले 1999 में ‘बूढ़े व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति’ (एनपीओपी) बनाकर बुजुर्गों की समस्याओं को हल करने की पहल की थी। लेकिन इस नीति और इस पर अमल का अभी तक कोई अतापता नहीं है। अब एक नई पहल करते हुए प्रधानमंत्री ने वरिष्ठ नागरिकों की राष्ट्रीय परिषद (एनसीएससी) बनाने को मंजूरी दे दी है।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने बुधवार को यह जानकारी देते हुए बताया कि यह परिषद केंद्र व राज्य सरकारों को बुजुर्गों के कल्याण व बेहतर जीवन स्थितियों से जुड़े मसलों पर सलाह देगी। इन मसलों में नीतियां, कार्यक्रम, विधायी उपाय, भौतिक व वित्तीय सुरक्षा, स्वास्थ्य व उत्पादक जीवन स्थितियां शामिल हैं। परिषद की अध्यक्षता भारत सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री करेंगे। इसके सदस्यों में सामाजिक न्याय मंत्रालय के राज्यमंत्री, लोकसभा व राज्यसभा दोनों के सबसे बुजुर्ग सांसद, उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम व पूर्वोत्तर राज्यों के पांच प्रतिनिधि, संघशासित क्षेत्रों का एक प्रतिनिधि और वरिष्ठ नागरिकों के संघ, पेंशनर एसोसिएशन, वरिष्ठ नागरिकों के लिए काम कर रहे एनजीओ व विशेषज्ञों के कुल पांच प्रतिनिधि और विभिन्न क्षेत्रों में नाम कमानेवाले पांच वरिष्ठ नागरिक शामिल होंगे। परिषद का सारा कामकाज सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत आएगा।
प्रधानमंत्री की यह पहल काफी अहम है क्योंकि शहरों ही नहीं, गांवों तक में संयुक्त परिवार की व्यवस्था टूटने से बुजुर्ग लोग भारी सामाजिक असुरक्षा, अकेलेपन व उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। दिक्कत यह भी है कि विकसित देशों की तरह हमारी सरकार उन्हें किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं देती। इधर बुजुर्गों के प्रति अपराध भी काफी बढ़ गए हैं। ऊपर से उन्हें परिवार में अपने ही संतानों की प्रताड़ना व उपेक्षा झेलनी पड़ती है।
बुजुर्गों के लिए काम करनेवाली प्रमुख संस्था हेल्पएज इंडिया के मुताबिक भारत में इस समय करीब 8.10 करोड़ बुजुर्ग लोग हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के आंकड़ों को आधार बनाकर निकाले गए एक अन्य अनुमान के मुताबिक 2025 तक यह संख्या 17.70 करोड़ और 2050 तक 24 करोड़ पर पहुंच जाएगी। हेल्पएज इंडिया के अध्ययन के मुताबिक देश के तकरीबन 40 फीसदी वरिष्ठ नागरिकों को किसी न किसी रूप में उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इनमें से 55 फीसदी उत्पादन घर के ही सदस्यों या रिश्तेदारों द्वारा किया जाता है। बूढ़े होने पर उन्हें एक तरफ धकेल दिया जाता है। दुर्भाग्य इस बात का है कि बुजुर्गों को बचाने के लिए न तो केंद्र और न ही राज्यों में कोई कायदे का कानून है।