तेल कंपनियों का फैसला, पेट्रोल हुआ रात से 3.14 रुपए प्रति लीटर महंगा

डॉलर के सापेक्ष रुपए की गिरावट ने अपना असर दिखा ही दिया। सरकारी तेल कंपनियों ने कमजोर रुपए से बढ़ी आयात की लागत की भरपाई के लिए गुरुवार-शुक्रवार की मध्य-रात्रि से पेट्रोल का दाम 3.14 रुपए प्रति लीटर बढ़ाने का फैसला कर लिया है। इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम वन हिंदुस्तान पेट्रोलियम के आला अफसरों ने पेट्रोलियम मंत्रालय के साथ बैठक के बाद पेट्रोल के मूल्य बढ़ाने की घोषणा की। इससे पहले 15 मई को पेट्रोल के दाम 5 रुपए प्रति लीटर बढ़ाए गए थे। इस तरह चार महीनों में ही पेट्रोल के दाम  8.14 रुपए प्रति लीटर बढ़ा दिए गए हैं।

बता दें कि सरकार पेट्रोल के मूल्यों पर पिछले साल जून से ही अपना नियंत्रण हटा चुकी है और इसका फैसला अब अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से होता है। तब से लेकर पेट्रोल के दाम ताजा फैसले को मिलाकर कुल दस बार बढ़ाए जा चुके हैं। चूंकि देश में कच्चे तेल की तीन चौथाई से ज्यादा मांग आयात से पूरी की जाती है। इसलिए रुपए की विनिमय दर से भी तेल कंपनियों की लागत प्रभावित होती है।

कल ही एक उच्च सरकारी अधिकारी ने कहा था कि, “तेल बेचनेवाली कंपनियों को प्रतिदिन पेट्रोल की बिक्री पर 2.61 रुपए प्रति लीटर या 15 करोड़ रुपए प्रतिदिन का घाटा उठाना पड़ रहा है। स्थानीय टैक्स को मिला दें कि घरेलू मूल्य को अंतरराष्ट्रीय मूल्य के समतुल्य बनाने के लिए प्रति लीटर दाम 3 रुपए बढ़ाने की जरूरत है।” इसी तर्क के साथ गुरुवार को पेट्रोल के दाम बढ़ाए गए हैं।

कहा जा रहा है कि तीन सरकारी कंपनियां – इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल लगातार राजनीतिक दबाव में काम करती हैं। पेट्रोल पर मूल्य नियंत्रण हट जाने के बावजूद ये कंपनियां लागत से थोड़ा कम दाम पर पेट्रोल बेच रही हैं। इसके चलते चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से लेकर अब इनको पेट्रोल पर 2450 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है।

पेट्रोल के अलावा उक्त तीन सरकारी तेल कंपनियां डीजल, रसोई गैर और केरोसिन को लागत से कम दाम पर बेचने से हर दिन 263 करोड़ रुपए का घाटा सह रही हैं। इसके एवज में उन्हें डीजल पर 6.05 रुपए, केरोसिन पर 23.25 रुपए और रसोई गैस के सिलिंडर पर 267 रुपए की सब्सिडी मिल रही है। सरकारी अफसर का दावा है कि अप्रैल से अब तक तेल कंपनियों पर 65,000 करोड़ रुपए का बोझ पड़ चुका है। अगर हम कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम 110 डॉलर प्रति बैरल लेकर चलें तो इनकी कुल अंडर-रिकवरी इस साल 1,21,571 करोड़ रुपए की होगी।

अधिकारी का कहना था कि डॉलर के हर एक रुपए महंगा होने से तेल कंपनियों की अंडर-रिकवरी साल भर में 9000 करोड़ रुपए बढ़ जाती है। इस तरह रुपए का कमजोर होना तेल कंपनियों के लिए हमेशा महंगा पड़ता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि तेल कंपनियां विनिमय दरों के उतार-चढ़ाव के लिए हेजिंग क्यों नहीं करतीं? अपनी ढिलाई की कीमत वे आम उपभोक्ता से क्यों वसूल रही हैं?

1 Comment

  1. sirji, me yaha aap se ek baat puchna chata hu ki, petrol co, me jo govt, ke stafff he unki salary bahut jyada he, or wo koi kaam nahi karte he. unki salary minimum 50000/ he jo bahut jyada he, or jo petrol saudi me waha 1riyal me 3lite petrol milta he jo waha pani se bhi sasta he, or jo govt ke staff he wo har ek ke liye alag alag gadi he, or minister ke sath me bina admi ke 10car chalti he, wo kaam kare, or petrol ko control karna he to govt, me jo staff kaam karte he unko ek bus me le jaye taki petrol kam ho, singapore me share kar ke car chalate naki ek car me ek admi, jab tak hamare desh me govt, ke minister ke upper petrol charge kare, wo freeeeeeeeeeeee me car use karte he, wo galat he .

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