कभी बोला कि सौ दिन में विदेश में जमा कालाधन वापस ले आऊंगा। कभी कहा कि 50 दिन दे दो, भ्रष्टाचार खत्म कर दूंगा, आतंकवाद की रीढ़ तोड़ दूंगा। इसी बीच 2047 तक विकसित भारत की दूर की कौड़ी उछाली गई। पहले हर साल दो करोड़ रोज़गार, अब दो साल में 3.5 करोड़ रोज़गार। बड़ी-बड़ी बातें, मगर नतीजा शून्य। देश में रोज़गार पैदा करना बड़ी चुनौती है। अगर बढ़ती आबादी को सोखना है तो साल 2030 तक 11.5 करोड़ रोज़गार पैदा करने होंगे। मतलब, हमारी अर्थव्यवस्था में अगले पांच साल सालाना 2.30 करोड़ नए रोज़गार। खुद सरकार का बढ़ा-चढ़ा दावा भी पिछले दस साल में दस करोड़ यानी सालाना एक करोड़ रोज़गार पैदा करने का है। दिक्कत यह है कि एक तो पहले ही मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर कृषि क्षेत्र से भी धीमी पड़ी हुई है और जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान घटकर 12.6% पर आ चुका है। दूसरे, अब ट्रम्प के 50% टैरिफ ने स्थिति बेहद संगीन बना दी है। निर्यात पर निर्भर टेक्सटाइल, लेदर, हीरे व आभूषण, श्रिम्प जैसे समुद्री उत्पाद और इंजीनियरिंग उद्योग की दसियों हज़ार इकाइयों में उत्पादन ठप है। हांक रहे हैं कि यह भारत के लिए 1991 जैसा पल है और देश अब मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ाकर आत्मनिर्भर बन जाएगा। वैसे, इसी तरह कोरोना के बाद भी दुनिया पर छा जाने की बात हुई थी। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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