देश की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए सरकार के पास न तो गोदाम हैं और न ही भंडारण क्षमता बढ़ाने की कोई पुख्ता योजना। भंडारण की किल्लत से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) मुश्किलों का सामना कर रहा है। हर साल खुले में रखा करोड़ों का अनाज सड़ रहा है। इसके लिए सरकार अदालत की फटकार से लेकर संसद में फजीहत झेल चुकी है। लेकिन पिछले दो सालों से सरकार भंडारण क्षमता में 1.50 करोड़ टन की वृद्धि का राग अलाप रही है। कई दौर के टेंडर के बावजूद अभी तक किसी प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल पाई है।
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के अमल के साथ खाद्यान्न की जितनी जरूरत होगी, देश में उतना अनाज रखने का बंदोबस्त नहीं है। भंडारण क्षमता के इस अंतर को पाटने के लिए सरकार की ओर से कोशिशें जरूर हुईं, लेकिन आधे अधूरे मन से। निजी क्षेत्रों के प्रस्ताव नियम-कानून के मकडज़ाल के चलते सरकारी दफ्तरों में धूल फांक रहे हैं। खाद्य मंत्रालय की तरफ से दो चरणों में टेंडर मांगा गया, जिसमें एक सौ से अधिक निवेशकों ने हिस्सा लिया। लेकिन किसी परियोजना प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल पाई है।
एफसीआई पंजाब और हरियाणा में ही सबसे अधिक अनाज की खरीद करता है। उसके 80 फीसदी गोदाम भी इन्हीं राज्यों में हैं। यहीं से पूरे देश के लिए अनाज भेजा जाता है। लेकिन नई व्यवस्था में सरकार ने गोदाम बनाने के लिए उन राज्यों को भी प्राथमिकता दी है, जहां अनाज की ज्यादा जरुरत है। ग्रामीण गोदामों का विचार भी आया है। लेकिन इन्हें अमली जामा अभी तक नहीं पहनाया जा सका है। इन्हीं मुश्किलों से गुजर रही सरकार की चिंताएं कम होने का नाम नहीं ले रही है।
भंडारण क्षमता बढ़ाने की दिशा में आ रही मुश्किलों के समाधान के लिए अधिकार प्राप्त मंत्री समूह का गठन भी किया गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भंडारण क्षेत्र के निवेशकों के साथ बैठक कर समस्या समाधान की कोशिश शुरू की। इसके तहत नियमों को सरल बनाते हुए गोदाम बनाने वाली निजी निवेशकों को पहले सात सालों की निश्चित अवधि तक भंडारण की गारंटी का प्रस्ताव दिया गया। लेकिन अब इसे बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है।
नियमों को सरल बनाने का नतीजा यह हुआ कि गोदाम निर्माण के प्रस्तावों का ढेर लग गया। एफसीआई के उतावले प्रबंधन ने इन प्रस्तावों पर विचार करने का जिम्मा राज्य एजेंसियों और सेंट्रल वेयर हाउसिंग कॉरपोरेशन (सीडब्लूसी) को सौंप दिया है। इन्हें स्थानीय स्तर पर नोडल एजेंसी नियुक्त कर दिया गया। लेकिन संतोषजनक प्रगति नहीं हो सकी है।
सीडब्लूसी ने तो पिछले सालों में खुद की भंडारण की क्षमता में वृद्धि कर ली है। इसी तरह रेलवे के साथ मिलकर उसने सेंट्रल रेलवे साइड वेयरहाउसिंग कंपनी स्थापित की है। लेकिन निजी निवेशकों के लिए चलाई गई योजना सिरे नहीं चढ़ पा रही है। जबकि संसद में सरकार ने फिर दो सालों में डेढ़ सौ लाख टन भंडारण क्षमता बना लेने का भरोसा दिया है।