शेयर बाजार की ट्रेडिंग तात्कालिकता का खेल है, लम्बे समय के निवेश का नहीं। अगर किसी को भ्रम है कि वो कंपनी के फंडामेंटल जानकर उसके शेयरों में ट्रेडिंग कर सकता है तो उसे डूबने से कोई नहीं बचा सकता। बाज़ार में उतरनेवाले हर ट्रेडर को मन में कहीं गहरे बैठा लेना होगा कि ट्रेडिंग दांव लगाने या सट्टेबाज़ी का ही खेल है। यह भी कि अगर हम अपने रिस्क को संभालकर चलें तो सट्टेबाज़ी अपने-आप में कोई बुरा या अनैतिक आचरण नहीं है। असली खतरा सट्टेबाज़ी और निवेश में घालमेल करने का है। दोनों का ज़ोन अलग है और दोनों में कामयाबी के सूत्र भिन्न हैं। सट्टेबाज़ी की पिनक में डूबे लोग अक्सर सोचते ही नहीं कि उनका दांव उल्टा भी पड़ सकता है। बाज़ार और उनका शेयर बढ़ता रहे तो उनकी बल्ले-बल्ले चलती रहती है। लेकिन बाज़ार और शेयर की गति जैसे ही पलटती है, ऐसे ट्रेडरों की बत्ती गुल हो जाती है और बिस्तरा गोल हो जाता है। रिटेल ट्रेडर इस दुर्गति से तभी बच सकता है, जब वो रिस्क को समझकर और संभालकर सट्टेबाज़ी का दांव लगाएं। वैसे कुछ जानकार यह भी कहते हैं कि शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग छोटे समय का निवेश है, जबकि निवेश लम्बे समय की ट्रेडिंग। लेकिन ऊपर-ऊपर सही लग रही यह धारणा गहराई में उतरने पर बेहद सतही या छिछली साबित हो जाती है।…
स्टॉप-लॉस है ट्रेडिंग के बिजनेस की लागत: असल में शेयर बाजार की ट्रेडिंग एक तरह का बिजनेस है। इसमें बिजनेस के अनुशासन का पूरा पालन करना होता है। इससे होनेवाली कमाई पर टैक्स भी उसी तरीके से लगता है और इनकम टैक्स रिटर्न भी बिजनेस की तरह ही फाइल करना होता है। सबसे पहले तो हमें हर सौदे की पूरी लागत का हिसाब रखना होता है। सिक्यूरिटीज़ टांसैक्शन टैक्स (एसटीटी) से लेकर स्टॉक एक्सचेंजों के कट और सेबी के शुल्क तक। ट्रेडिंग एकाउंट उन्हीं ब्रोकरों के मंच पर हो, जो डिलीवरी के सौदों पर ब्रोकरेज नहीं लेते। इतना सब गिनने और करने के बाद भी ट्रेडिंग की एक ऐसी लागत है जिसे कोई ट्रेडर पता नहीं पाता।
वो ट्रेडिंग को बिजनेस मानने के बाद भी यह सच स्वीकार नहीं कर पाता कि हर बिजनेस की अपरिहार्य लागत होती है। खेती तक में बिना लागत लगाए आज कुछ नहीं होता। लेकिन बिजनेस के धुरंधर लोग भी जब वित्तीय बाज़ार की ट्रेडिंग में उतरते हैं तो उन्हें लागत का होश ही नहीं रहता। वे समझते हैं कि इस बाज़ार की ट्रेडिंग में होशियारी से चलो तो सिर्फ कमाई ही कमाई है और मूर्ख व बावले लोग ही यहां घाटा उठाते हैं। बाद में उन्हें अहसास होता है कि स्टॉप-लॉस ही ट्रेडिंग के बिजनेस की लागत है और अधिकतम फायदे के लिए इसे न्यूनतम रखना जरूरी है। जी हां, शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग के बिजनेस की लागत है स्टॉप-लॉस। यह लागत छोटे-बड़े हर ट्रेडर को उठानी होती है। इससे आज तक कोई भी सफल से सफल ट्रेडर भी न तो बचा है और न ही भविष्य में बच सकता है। असली सवाल यह है कि इस लागत को कम से कम कैसे रखा जाए?
उधार के धन से ट्रेडिंग नहीं: इसके लिए दुनिया के सफलतम ट्रेडरों में शामिल अलेक्जैंडर एल्डर ने सालों पहले 2% और 6% का एक अकाट्स सूत्र पेश किया है। किसी भी रिटेल ट्रेडर के लिए इस नियम या सूत्र को अपने अनुशासन का ज़रूरी हिस्सा बना लेना चाहिए। यह नियम कहता है कि किसी भी सौदे में स्टॉप-लॉस 2% से ज्यादा नहीं होना चाहिए यानी किसी सौदे में अधिकतम 2% घाटा ही सहना चाहिए। फिर किसी महीने के दौरान अगर तमाम सौदों को मिलाकर घाटा 6% के पार जाने लगे तो उस महीने की ट्रेडिंग फौरन रोक देनी चाहिए। रिटेल ट्रेजर को लिसे सबसे ज्यादा जरूरी होता है अपनी ट्रेडिंग पूंजी को बचाकर रखना क्योंकि यह ट्रेडिंग पूंजी डूब गई तो उसका धंधा ही बैठ जाएगा। फिर वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता। इसी से जुड़ी दूसरी बेहद संजीदा शर्त है कि कभी भी उधार की पूंजी से ट्रेडिंग न करें। अक्सर, ब्रोकर मार्जिन ट्रेडिंग की लालच दिखाते हैं। लेकिन रिटेल ट्रेडर को अगर अपना बिजनेस चलाना है तो कभी भी इस लालच में नहीं फंसना चाहिए। अन्य बिजनेस उधार की पूंजी से फल-फूल सकते हैं, लेकिन स्टॉक ट्रेडिंग का बिजनेस उधार की पूंजी से पक्का डूब जाता है। सेबी को नियम बनाकर स्टॉक ट्रेडिंग में उधार के धन को स्रोत पर ही रोक देना चाहिए।
तरीका पोजिशन साइज़िंग का: दिक्कत यह है कि हमारी पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी खुद स्वार्थों के जाल में ऐसी फंसी है कि उससे रिटेल ट्रेडरों के लिए कुछ सार्थक करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। ऐसे में मानकर चलें कि शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग में घाटे से कभी नहीं बचा जा सकता। हालांकि उसे कम से कम ज़रूर रखा जा सकता है। प्रोफेशनल ट्रेडर घाटे और ट्रेडिंग के रिस्क को न्यूनतम रखने के लिए स्टॉप-लॉस के साथ ही पोजिशन साइज़िंग का तरीका भी अपनाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि वे न तो घाटे से विचलित होते हैं और न मुनाफा कमाने पर कुलांचे भरते हैं। आइए समझते हैं कि पोजिशन साइज़िंग है क्या? मान लीजिए, आपने ट्रेडिग के लिए एक लाख रुपए रखे हैं तो उसे बीस हिस्सों में बांट लें। एक हिस्सा 5000 रुपए का। इतनी पूंजी में कुल बीस ट्रेड कर सकते है। कोई सौदा उल्टा पड़ा तो 5000 डूबेंगे, बाकी 95,000 रुपए बचे रहेंगे। हालांकि इस तरीके में बहुतेरी खामियां हैं। लेकिन स्टॉप-लॉस के साथ ही इसे आजमाया जाता रहा है।
सूत्र डिमांड और सप्लाई का: अब आते हैं डिमांड और सप्लाई के उस सूत्र पर जिसकी चर्चा हमने पिछले लेख में की थी। यह शेयरों की ट्रेडिंग का ऐसा सूत्र है जिसे हम पूरे इतमिनान के साथ बाद में समझने की कोशिश करेंगे। फिलहाल इतना जान लें कि यह कोई जटिल शास्त्र नहीं, बल्कि सामान्य सूत्र है। इसका केंद्रीय बिंदु और सार यह है कि हमें किसी सामान्य व्यापारी की तरह ही शेयरों की ट्रेडिंग करनी होती है। थोक के भाव खरीदो, रिटेल के भाव बेचो। थोक के भाव का मतलब है उस भाव पर खरीदना जिस पर अभी तक बैंक, संस्थाएं व बड़े निवेशक खरीदते रहे हैं और आगे खरीद सकते हैं। रिटेल के भाव का मतलब है उस भाव पर बेचना जिस पर बैंक, संस्थाएं व बड़े निवेशक अभी तक बेचते रहे हैं या बेच सकते हैं। भावों के इन स्तरों का अंदाज़ा हम उनके दैनिक, साप्ताहिक या अलग-अलग अवधि के चार्ट से लगाते हैं। हर किसी शेयर के दैनिक से लेकर साप्ताहिक और मिनटों तक हर अवधि के चार्ट हमें बिना किसी सब्सक्रिप्शन के फिलहाल बीएसई और एनएसई की वेबसाइट पर मिल जाते हैं।
भावों के चार्ट में हमें बस इतना देखना होता है कि इससे ठीक पहले किस निचाई या न्यूनतम स्तर से से वो शेयर उठना शुरू होता है (उसका डिमांड ज़ोन) और किस ऊंचाई से गिरना शुरू हुआ (उसका सप्लाई ज़ोन)। साथ ही निचाई और ऊंचाई पर कैंडल का स्वरूप क्या है। नीचे हैमर और ऊपर रिवर्स हैमर। यही है डिमांड और सप्लाई के सूत्र का मोटामोटी ज्ञान (देखें नीचे – हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स का साप्ताहिक चार्ट)। कुछ लोग इसे रेजिस्टेंस और सपोर्ट के सिस्टम से कन्फ्यूज़ कर सकते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। डिमांड और सप्लाई को हम बाद में गहराई से समझेंगे। बाकी दूसरे इंडीकेटर्स से दिल को तसल्ली देना चाहते हैं तो उसका पैटर्न एनएसई व बीएसई की साइट से बना सकते हैं। गांठ बांध लें कि शेयर बाज़ार में सारे ज्ञान से हम भावों की प्रायिकता या प्रोबैबिलिटी पकड़ते हैं जो गलत भी हो सकती है। मतलब, रिस्क कभी मिट नहीं सकता। बहुत हुआ तो हम न्यूनतम रिस्क और अधिकतम रिटर्न की संभावना पकड़कर सावधानी ही बरत सकते हैं।
अंधेरे में तीर नहीं: बात बड़ी साफ है। अगर हम आगे-पीछे का सारा ध्यान रख योजना बनाकर चलेंगे और बाज़ार के रिस्क को समझते हुए स्टॉप-लॉस या पोजिशन साइज़िंग के अनुशासन का पालन करेंगे, तभी शेयर बाज़ार से नियमित मुनाफा कमा सकते हैं। वहीं, अंधेरे में तीर चलाएंगे तो दो-चार तुक्कों के बाद हमारा लहूलुहान होना तय है। लेकिन लालच और डर की आदिम भावनाएं जोर न मार सकें, इसकी व्यवस्था ऑर्डर देते समय ही स्टॉप-लॉस व लक्ष्य बांधकर की जा सकती है। इसमें पोजिशन साइजिंग भी सहारा बन सकती है। लेकिन अगर किसी रिटेल ट्रेडर ने डिमांड और सप्लाई का सूत्र गहराई से समझकर जज्ब कर लिया तो वो प्रोफेशनल ट्रेडर की तरह स्टॉक ट्रेडिंग से न्यूनतम रिस्क में अधिकतम मुनाफा कमा सकता है।

