सरकार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के निकलने से परेशान हो गई है। इतनी ज्यादा कि अब उसे डैमेज कंट्रोल में उतरना पड़ रहा है। सबसे पहले उसने रिजर्व बैंक से घोषित करवाया कि एफपीआई चाहें तो किसी कंपनी में 10% से ज्यादा के निवेश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में बदल सकते हैं। उसका मानना है कि इससे एफपीआई की मुनाफावसूली पर लगाम लग सकती है। फिर सेबी की तरफ से खबर चलवाई गई कि घबराने की कोई बात नहीं। एफपीआई भले ही अपना निवेश भारतीय बाज़ार से निकाल रहे हों, लेकिन पहले से ज्यादा विदेशी निवेशक यहां आने को लालायित हैं। बीते वित्त वर्ष 2023-24 में प्रति माह औसतन 12-13 नए एफपीआई ने सेबी में पंजीकरण कराया। वहीं, इस बार अक्टूबर में 40-50 नए एफपीआई ने पंजीकरण की अर्जी लगाई है। मार्च 2024 तक देश में कुल पंजीकृत एफपीआई की संख्या 11,219 थी। सरकार ने इतना माहौल बनाने के बाद विदेशी ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए से भारत को ‘ओवरवेट’ और चीन को ‘इक्वल वेट’ घोषित करवाया दिया। लेकिन असली मसला यह है कि खुद मोदी और उनके सिपहसालार अब विकसित भारत के बजाय ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा देकर हिंदू-मुस्लिम टकराव की राजनीति करने लगे हैं। इस राजनीति को बेदखल किए बिना भारत की विकासगाथा को पटरी पर लाना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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