अब लाभ न कमानेवाली या मामूली लाभ कमानेवाली लिस्टेड कंपनी भी प्रबंधन से जुड़े प्रोफेशनल को बेधड़क हर महीने 4 लाख रुपए से ज्यादा का वेतन व भत्ता दे सकती है। इसके लिए उसे केंद्र सरकार से कोई इजाजत नहीं लेनी पड़ेगी। अभी तक इससे पहले कंपनी को सरकार की मंजूरी लेना जरूरी था। लेकिन कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने कंपनी एक्ट 1956 के संबंधित प्रावधान को ही अब बदल दिया है।
कंपनी एक्ट 1956 के अनुच्छेद – XIII में किया गया यह संसोधन 14 जुलाई 2011 से लागू हो गया है। कंपनियां बहुत दिनों से इसकी मांग कर रही थीं। मंत्रालय का कहना है कि इससे कॉरपोरेट क्षेत्र के समुचित विकास में मदद मिलेगी। लेकिन सवाल उठता है कि जब नया कंपनी विधेयक संसद में विचाराधीन है तो उसके पारित होकर कानून बनने से पहले ही पुराने कंपनी एक्ट 1956 में इतनी हड़बड़ी में संशोधन करने की जरूरत क्यों पड़ गई।
यह संशोधन कंपनी प्रवर्तकों, उनके जुड़े लोगों या निदेशकों पर लागू नहीं होगा। इसका लाभ उन्हीं प्रोफेशनल प्रबंधकों को मिलेगा जिनका कंपनी की पूंजी में कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष जुड़ाव नहीं है। उस व्यक्ति को कम से कम ग्रेजुएट होना चाहिए और उसे अपने पेशे का विशिष्ट ज्ञान व अनुभव होना चाहिए।
यह सहूलियत घाटे या मामूली लाभ में चल रही लिस्टेड कंपनियों के साथ-साथ उनकी होल्डिंग कंपनी और सब्सिडियरी इकाइयों को भी मिलेगी। इस ढील के बाद कंपनी अपने सीईओ, सीओओ या सीएफओ वगैरह को मनचाहे वेतन व भत्ते दे सकेगी। अभी तक चार लाख रुपए तक देने पर तो कोई बंदिश नहीं थी। लेकिन महीने में इससे एक रुपया भी ज्यादा देने के लिए उसे पहले कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय की इजाजत लेनी पड़ती थी। कंपनी के प्रवर्तक इसका दुरुपयोग न कर सके, इसके लिए शर्त लगा दी गई है कि संबंधित प्रोफेशनल का कोई संबंध कंपनी प्रवर्तकों या निदेशकों से नहीं होना चाहिए।
मुनाफे में चल रही लिस्टेड कंपनियों को प्रोफेशनल लोगों का वेतन तय करने की पूरी छूट मिली हुई है। हां, बैंकों को अपने सीईओ का वेतन तय करने से पहले रिजर्व बैंक का अनुमोदन लेना पड़ता है।