सूरज की गरमी में धरती के गरमाने और रात होते ही धरती का ठंडा हो जाना एक प्रक्रिया है जिसमें धरती को चारों ओर से घेरे महासागर, धरती के तापमान का अंतरिक्ष में परावर्तन और रात अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। पेड़-पौधे वैसे ही इस धरती पर अपने वजूद को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन हाल ही में कुछ ऐसी अध्ययन रिपोर्टें पेश की गई हैं जिनमें पौधों को धरती के विलेन के तौर पर पेश किया गया है।
ऐसे ही एक अध्ययन के मुताबिक अगर वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता हो गई तो पेड़-पौधे धरती की सतह को सीधे गर्म कर देंगे। यह अध्ययन बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) के प्रोफेसर गोविंदसामी बाला ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के कार्नेगी इंस्टीट्यूशन फॉर साइंस के लॉंग काओ व केन कैल्डेरिया के साथ मिलकर किया है। प्रो. बाला का कहना है कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता सीधे तौर पर पेड़-पौधों पर असर डालेगी और पेड़-पौधे वायुमंडल की कार्बन डाई डाइऑक्साइड से बढ़नेवाले तापमान की तुलना में ज्यादा गर्मी पैदा करेंगे।
आप जानते ही होंगे कि कार्बन डाइऑक्साइड ग्रीनहाउस गैस है और धरती के तापमान को बढ़ाती है। वायुमंडल में इसकी अधिकता से पौधे इसका शोषण भी कम करते हैं और नतीजतन उनसे ठंडी वाष्प भी कम ही निकलती है। प्रो. बाला ने कहा कि आनेवाले समय में वैश्विक जलवायु परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रयासरत वैज्ञानिकों के लिए यह अध्ययन महत्वपूर्ण है। यह अध्ययन उनके जलवायु संबंधी मॉडलों में पादप जैवविज्ञान के महत्व को रेखांकित करता है।
जब गर्मी बढ़ जाती है तब हमारे शरीर से अधिक पसीना निकलता है। हमारी त्वचा के छिद्रों द्वारा पानी का अधिक वाष्पीकरण होता है, जिससे हमारे शरीर का तापमान नहीं बढ़ पाता। इसी तरह जब पौधे सूर्य के फोटॉन का इस्तेमाल कर प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से अपने लिए भोजन तैयार करते हैं तो पत्तियों की सतह पर पाए जाने वाले छिद्रों (स्टोमेटा) से पानी का वाष्पीकरण होता है और पौधों का तापमान सामान्य बना रहता है। लेकिन वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता हो जाने पर स्टोमेटा ज्यादा नहीं खुलते और वाष्पीकरण कम होता है। इसके फलस्वरूप पौधे में वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है और पौधों का तापमान बढ़ने लगता है, जिससे धरती की सतह का तापमान भी बढ़ सकता है।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. केन कैल्डेरिया के मुताबिक धरती की जलवायु व्यवस्था पर पेड़-पौधों का जटिल और व्यापक असर पड़ता है। पौधे वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर धरती को ठंडा रखने में मदद करते हैं, लेकिन उनके कुछ दूसरे प्रभाव भी होते हैं। मिसाल के तौर पर, पौधे वाष्पोत्सर्जन कर वायुमंडल और धरती के तापमान को भी प्रभावित करते हैं। इन सभी कारकों पर ध्यान दिए बिना जलवायु के बारे में पूर्वानुमान लगाना लगभग असंभव है।
ये काफी हैरान करने वाली बात है कि हम पेड़-पौधों का तापमान बढ़ने को धरती के गरम होने से जोड़ते हैं और ऐसा करते वक्त दुनिया भर में चल रहे करोड़ों एयरकंडीशनर, रेफ्रीजरेटर, और गाड़ियों के हुजूम का जिक्र भी नहीं करते। ये सारी चीजें वातावरण में सबसे ज्यादा गर्मी छोड़ रही हैं। सहारा के तपते रेगिस्तान में भी रातें सर्द होती हैं, वहां कोई पेड़-पौधे नहीं हैं। सहारा मरुस्थल में भी आप अगर तपती रेत को ऊपर से हटाएं तो भीतर ठंडी रेत मिलती है। सहारा की रेत को गरमाने और उसके नीचे मौजूद रेत को ठंडा रखने में कम से कम पेड़-पौधों की कोई भूमिका नहीं है। इससे ये साबित होता है कि कम से कम धरती को गरम करने में पेड़-पौधों की कोई भूमिका नहीं है।
– संदीप निगम (लेखन वैज्ञानिक विषयों पर संजीदगी से लिखनेवाले चुनिंदा पत्रकारों में शामिल हैं। यह लेख उनके ब्लॉग वॉइजर पर प्रकाशित रिपोर्ट का छोटा अंश है)