हर बार इंसान सोचता है बहुत कुछ बोलना है लेकिन बोल नहीं पाता, अन्तर्मन में चल रहे इसी द्वन्द के चलते जब वह मुंह खोलता है तो कहीं न कहीं गलती कर बैठता है। फिर वहीं कहता है जो आपने अपने विचार में व्यक्त किया है लेकिन जबतक वह सम्भलता है परिणाम आ चुका होता है। आपने सही कहा हर बार बोलने से पहले कई बार सोचो ताकि परिणाम इच्छित हों हो सकता है हर बार न हों लेकिन अधिकांश होॆ
हर बार इंसान सोचता है बहुत कुछ बोलना है लेकिन बोल नहीं पाता, अन्तर्मन में चल रहे इसी द्वन्द के चलते जब वह मुंह खोलता है तो कहीं न कहीं गलती कर बैठता है। फिर वहीं कहता है जो आपने अपने विचार में व्यक्त किया है लेकिन जबतक वह सम्भलता है परिणाम आ चुका होता है। आपने सही कहा हर बार बोलने से पहले कई बार सोचो ताकि परिणाम इच्छित हों हो सकता है हर बार न हों लेकिन अधिकांश होॆ