शेयर बाज़ार के निवेशक को न तो परम आशावादी होना चाहिए और न ही चरम निराशावादी। उसे दरअसल घनघोर यथार्थवादी होना चाहिए। आम सामाजिक व राजनीतिक जीवन में जिसे अवसरवादी होना भी कहते हैं। जैसी बहे बयार, पीठ तब तैसी दीजे। लेकिन अवसरवादी होने में नकारात्मकता है, जबकि यथार्थवादी होना सकारात्मक सोच है। जो जैसा है, उसे वैसा ही देखना और स्वीकार करना। शेयर बाज़ार उठता है, गिरता है। फिर उठ जाता है। यह उसका स्वभाव है। हम-आप कभी लालच में पगला जाते हैं तो कभी डरकर बदहवास हो जाते हैं। यह इंसान की फितरत है। इन दोनों ही सच्चाइयों को स्वीकार कर एकदम निष्पक्षता से निवेश का फैसला करें। फिर भी भूल-चूक लेनी-देनी। शेयर बाज़ार की अनिश्चितता को कोई भी कभी खत्म नहीं कर सकता। कोई नहीं जानता कि बाज़ार की अगली गति क्या होगी। कारण यह है कि ग्लोबल हो चुकी दुनिया में लाखों-लाख कारक बाज़ार की गति का फैसला करते हैं। इन सारे कारकों को एआई का बेहद परिष्कृत टूल भी नहीं पकड़ सकता क्योंकि वो जो हो चुका है, उसी के डेटा पर काम करता है। भविष्य का उसको भी कोई पता नहीं। वो भी बस धुप्पल मार करता है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…
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