एक ही चीज कहीं सस्ती मिल रही हो तो हर किसी को लालच आ सकता है। लेकिन पूंजी बाजार के बारे में लालच हमेशा ही बुरी बला होती है। संदर्भ म्यूचुअल फंड में निवेश का है। अगर एक ही श्रेणी की दो म्यूचुअल फंड स्कीमें हैं, एक पुरानी और एक नई तो निवेशक नई स्कीम को खरीदना पसंद करता है क्योंकि उसकी यूनिटें 10 रुपए अंकित मूल्य पर ही जारी की जाती हैं, जबकि पुरानी स्कीम का एनएवी ज्यादा होता है और उसे तात्कालिक एनएवी पर ही खरीदा जा सकता है। लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि शेयरों में एक ही स्तर की कंपनियों में सस्ते की धारणा चल सकती है, म्यूचुअल फंडों में नहीं। अगर स्कीम एक ही श्रेणी की है तो उसमें निवेश करते वक्त कम या ज्यादा एनएवी से कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि पुरानी स्कीम के पास तो पूरा ट्रैक रिकॉर्ड होता है जिससे पता चल सकता है कि उसका फंड मैनेजमेंट कैसा है, उसकी सेवा का स्तर कैसा है और उसने अब तक कितना रिटर्न दिया है।
एनवीए से जुड़े इस भ्रम को एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए कि सेंसेक्स के शेयरों में निवेश करनेवाली दो म्यूचुअल फंड स्कीमें हैं। इनमें से अपेक्षाकृत नई स्कीम का एनएवी 15 रुपए है, जबकि पुरानी स्कीम का एनएवी 90 रुपए है। आपने दोनों ही स्कीमों में 9000-9000 रुपए लगा दिए। इससे पहली स्कीम की 600 यूनिटें आपको मिलेंगी, वहीं दूसरी स्कीम की 100 यूनिटें। अब सेंसेक्स 10 फीसदी बढ़ गया और दोनों स्कीमों ने एक ही स्तर का कामकाज किया तो दोनों का एनवीए इसी हिसाब से बढ़ जाएगा। इस तरह नई स्कीम का एनवीए 16.50 रुपए हो जाएगा, जबकि पुरानी का एनएवी 99 रुपए।
अब देखते हैं कि आपके निवेश का मूल्य कितना हो गया? पहली स्कीम में मिली 600 यूनिटों को नए एनएवी 16.50 रुपए से गुणा करने पर होते हैं 9900 रुपए। दूसरी स्कीम की 100 यूनिटें आपके पास थीं तो 99 रुपए के हिसाब से उनका भी मूल्य हो गया 9900 रुपए। इस तरह दोनों ही स्कीमों में 9000 रुपए के निवेश पर आपको 900 रुपए का समान लाभ मिला। अगर यूनिटें आपने नए फंड ऑफर में 10 रुपए पर ली होतीं तब भी इतना ही रिटर्न मिलता। इसलिए एनएवी के कम या ज्यादा होने से मिलनेवाले रिटर्न पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ये बात म्यूचुअल फंडों की हर तरह की स्कीमों के बारे में सही हैं क्योंकि एनएवी तो अनुपात या निश्चित प्रतिशत में बढ़ता है और समान राशि पर निश्चित प्रतिशत की मात्रा तो एक ही निकलेगी।
इसके अलावा यह भी संभव है कि पुरानी स्कीम का प्रबंधन बेहतर हो और वह अपनी कुशलता व कम खर्च के कारण नई स्कीम से बेहतर एनएवी हासिल कर ले। उसका प्रबंधन बेहतर है तो हो सकता है कि बाजार में गिरावट के बावजूद वह अपने एनएवी को उतना न गिरने दे। इसलिए म्यूचुअल फंड स्कीमों में पैसा लगाते वक्त हमें एनएवी पर नहीं, बल्कि इस पर ध्यान देना चाहिए कि उसका फंड मैनेजमेंट कितना अच्छा और प्रोफेशनल है। कम एनएवी पर यूनिटें तो ज्यादा मिल जाएंगी, लेकिन हो सकता है कि खराब प्रबंधन की वजह से उसमें अच्छा रिटर्न न मिल पाए।