मुन्नी बदनाम झंडुबाम

मुन्नी बदनाम हुई गाने की वजह से आजकल झंडुबाम शब्द खूब चर्चा में है। झंडुबाम शब्द को चलताऊ हिन्दी में लगभग मुहावरे का दर्ज़ा मिल चुका है जिसका अर्थ है ऐसा व्यक्ति जो किसी काम का न हो। इसकी अर्थवत्ता में मूर्ख या भोंदू का भाव भी है। झंडु या झंडू शब्द का स्वतंत्र रूप से भी हिन्दी में प्रयोग होता है जिसका अभिप्राय  ऐसे व्यक्ति से है जो मूर्ख, सुस्त या भोंदू है। एक अन्य मुहावरेदार अभिव्यक्ति भी हिन्दी क्षेत्रों में प्रचलित है – झंड होना, झंड करना आदि। किसी को झंड कर देना या झंड हो जाने में बेवकूफ़ बनना, अवाक रह जाना, ठगा-सा रह जाना जैसे भाव हैं। हालांकि इन तमाम शब्दों का झंडुबाम शब्द की व्युत्पत्ति से कुछ लेना देना नहीं है मगर इनकी रिश्तेदारी झंडुबाम की प्रचलित मुहावरेदार अर्थवत्ता से ज़रूर है और इसीलिए दबंग फिल्म के इस मस्त-मस्त गीत में जब झंडुबाम को जगह मिली तो इस ब्रांडनेम के प्रवर्तकों का नाराज़ होना स्वाभाविक था। झंडुबाम के पीछे एक महत्वपूर्ण व्यक्ति का नाम जुड़ा है और गीत में झंडुबाम को मुहावरेदार शब्द के तौर पर ही जगह दी गई है। इसके जरिए एक आयुर्वैदिक उत्पाद के नाम को हानि या लाभ पहुंचाने का कोई मक़सद गीतकार या फिल्म निर्माता का नहीं रहा होगा।

झंडू, झंड जैसे शब्द हिन्दी कोशों में मिलते तो हैं मगर इनके जो अर्थ दिए गए हैं वे इन शब्दों के लोकप्रचलित अर्थों से मेल नहीं खाते। अनुमान है कि संस्कृत के यूथं, प्राकृत के जुत्थं का परिवर्तित रूप है झुंड जिसका अर्थ है समूह, भीड़, जमाव, दल आदि। जॉन प्लैट्स की हिन्दुस्तानी इंग्लिश उर्दू डिक्शनरी में में झंडू का रूप झण्डू दिया है और इसका अर्थ है सिर पर बड़े बड़े बालों का गुच्छा, फुलों की पंखुड़ियां या गेंदे का फूल। हिन्दी शब्दसागर में झँडूला शब्द मिलता है जिसका अर्थ है वह बालक जिसके सिर पर जन्मकाल के बाल अभी तक वर्तमान हों, जिसका अभी मुंडन संस्कार न हुआ हो। सिर के वे घने बाल जो गर्भ-काल से ही चले आ रहे हों और अभी तक मूँडे न गए हों।

इसके अलावा इसका अर्थ घनी डालियों और पत्तियोंवाला वृक्ष भी होता है। एक अन्य अर्थ है कोई भी समूह या झुंड। इसके अलावा झंडू शब्द का किन्हीं अन्य अर्थों में प्रयोग भी होता है जैसे मराठी-हिन्दी में झेंडू, झंडू का अर्थ गेंदे का फूल भी होता है। गेंदा के मराठी रूप झेंडू और गुजराती के झंडु को भी इस रूप में देखा जाना चाहिए। ध्यान रहे अंग्रेजी में झंडु की वर्तनी zandu लिखी जाती है न कि jhandu। इसी तरह मराठी में ही गेंद को चेंडू कहा जाता है और कन्नड़ में भी चैंडू है। मराठी पर कन्नड़ का प्रभाव जगज़ाहिर है सो मराठी का चेंडू, कन्नड़ के चैंडू से ही आया होगा, यह तय है। गौरतलब है संस्कृत कंदुक की छाया का कन्नड़ चेंडू पर पड़ना और फिर चेंडू का मराठी झेंडू या गुजराती का झंडु बनना बहुत आसानी से समझ में आता है।

इसी तरह शब्दसागर में झंड शब्द भी मिलता है जिसका अर्थ दिया है छोटे बालकों के जन्मकाल के सिर के बाल।  बच्चों के मुंडन के पहले के बाल जो प्रायः कटवाए न जाने के कारण बड़े बड़े हो जाते हैं। सवाल उठता है कि ये तमाम संदर्भ उस झंड या झंड करना जैसे मुहावरे के आसपास भी नहीं पहुंचते जिसका अर्थ है मूर्ख बनना, ठगा जाना या खिन्न हो जाना। मुझे लगता है यहां सिर के बालों को साफ़ करने की क्रिया अथवा सिर से बाल उतारने या बालों से वंचित होना ज्यादा महत्वपूर्ण है। झंड करना मुहावरे का जन्मसूत्र मिलता है सिर मूँड़ना जैसे मुहावरे में। समाज में बालों का बड़ा महत्व है। अत्यधिक बड़े बालों के अलग माएने होते हैं और कम बालों के अलग। एकदम सफ़ाचट खोपड़ी का मतलब अगर पांडित्य है तो इसका एक अर्थ मूढ़ता या घामड़पन भी है। आमतौर पर किसी वस्तु के छिनने या वंचित होने के संदर्भ में मूँड़ना शब्द का मुहावरेदार प्रयोग होता है।

हिन्दी जगत की कई विडम्बनाओं में एक विडम्बना यह भी है कि यहां शब्दकोशों को अद्यतन नहीं किया जाता। शब्दों की बदलती अर्थवत्ता और उसके नए सामाजिक संदर्भों का उल्लेख कोशों में दर्ज़ करने की परम्परा नहीं है। झंड, झंडू या झंड करना के संदर्भ में भी यही बात सामने आ रही है। बीती सदी में झंड शब्द की अर्थवत्ता बदली, मगर कोशकारों ने उसे महसूस तो किया पर दर्ज़ नहीं किया। मूँड़ने की तर्ज पर ही झंड से झंड करना मुहावरा प्रचलित हुआ जिसमें वंचित होने के अर्थ में ठगे जाने, मूर्ख बनने का भाव विकसित हुआ। जो वंचित हुआ वह हुआ झंडू। गौरतलब है कि हिन्दी शब्दसागर कोश में एक मुहावरे का भी उल्लेख है – झंड उतारना अर्थात बच्चे का मुंडन संस्कार करना। मगर इसकी नकारात्मक अर्थवत्ता का उल्लेख नहीं है। ज़ाहिर है झंड करना जैसा भाव बाद में विकसित हुआ होगा जिसे कोशकारों ने दर्ज़ नहीं किया। यह मेरा अनुमान है।

अब आते हैं झंडुबाम पर। मूर्ख, नाकारा, भोंदू के लिए झंडुबाम शब्द के मूल में दरअसल उपरोक्त चर्चित झंडू या झण्डू शब्द ही है। एक चर्चित उत्पाद किस तरह से अभिव्यक्ति का जरिया बनते हुए जनभाषा में स्थापित होता है, डालडा की तरह ही मगर कुछ भिन्न विकासक्रम वाला उदाहरण झंडुबाम का भी है। आइए झंडुबाम से पहले बाम पर बात कर लेते हैं। अंग्रेजी में मलहम के लिए एक शब्द है बाम balm। वाल्टर स्कीट की डिक्शनरी के मुताबिक ब्रू में इसका रूप है बासम basam है। वही अरबी में इसका रूप है बाशम basham बरास्ता हिब्रू ग्रीक में दाखिल हुआ जिसका अर्थ है सुगंधित लेप। ग्रीक में इसका रूप हुआ बॉलशमोन, लैटिन में यह हुआ बॉलशमुन। फ्रैंच में इसके हिज्जों में बदलाव आया और इसका रूप हुआ बॉम और फिर अंग्रेजी में यह बाम balm के रूप में सामने आया। मूल रूप से इसमें ऐसे रेज़िन या चिपचिपे पदार्थ का भाव है जिसका प्रयोग जैव पदार्थों को अधिक समय तक सुरक्षित रखने और शरीर को आरोग्य प्रदान करने में होता हो। शवों को सुरक्षित रखने की क्रिया ऐम्बॉमिंग कहलाती है जिसके मूल में यही बाम शब्द है। गुलमेंहदी को अंग्रेजी में बॉलशम balsam कहते हैं। याद रहे प्राचीनकाल से ही सिर में लगाने की विविध औषधियां और लेपन बनते रहे हैं। भारतीय चंदन इसमें प्रमुख रहा है। इसके अलावा कई तरह के सुगंधित तेल और वनौषधियों के अवलेह का प्रयोग भी लेपन के लिए होता था। ब्राह्मी बूटी या ब्राह्मी वटी भी ऐसी ही ओषधि थी। आयुर्वेद में ब्राह्मी बहुउद्धेश्यीय ओषधि है। यह मस्तिष्क के लिए शीतलकारक होती है। ब्राह्मी का अपभ्रंश रूप भी बाम ही बनेगा।

बहरहाल, जहां तक झंडुबाम का सवाल है इसका रिश्ता गुजरात के जामनगर में रहनेवाले वैद्य झंडु भट्टजी से है। आज से क़रीब दो शताब्दी पहले अर्थात अठारहवीं सदी के पहले दशक में इनका जन्म हुआ था। वैद्यों के घराने में पैदा होकर इन्होंने भी वैद्यकी के जरिए समाजसेवा का काम शुरू किया। इनकी चिकित्सा को इतनी ख्याति मिली कि इन्हें जामनगर रियासत का राजवैद्य बनाया गया। झंडु भट्टजी के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है। झंडुबाम की आधिकारिक साइट पर इनका पूरा नाम नहीं मिलता। इनका पूरा नाम था करुणाशंकर वैद्य। उपनाम भट्ट था। समाज में इनकी ख्याति वैद्य झंडु भट्टजी के रूप में थी। औषधि अनुसंधान में इनकी खास रुचि थी। पीलिया रोग के उपचार में इन्होंने खास शोध किया। आयुर्वेद में उल्लेखित आरोग्यवर्धिनी ओषधि का प्रयोग इन्होंने पीलिया, मधुमेह से ग्रस्त कई रोगियो पर किया और इसे ख्याति दिलाई।

1864 में जामनगर महाराज की प्रेरणा और आर्थिक सहायता से जामनगर में भट्टजी ने रसशाला नाम से एक अनुसंधान व औषधि निर्माणशाला खोली। झंडु भट्टजी के पोते जुगतराम वैद्य ने अपने पितामह की विरासत को व्यवस्थित व्यापारिक संस्थान में बदलने का बीड़ा उठाया। 1910 में उन्होनें झंडू फार्मेसी की स्थापना की। 1919 में कम्पनी बाकायदा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में रजिस्टर्ड हुई और इसने शेयर भी जारी किए। झंडु नाम आयुर्वैदिक और देशी दवा कंपनी के रूप में बहुत शोहरत कमा चुका है। मगर जितनी शोहरत इसकी दवाओं की नहीं है उससे ज्यादा शोहरत इसके नाम से प्रचलित झंडुबाम मुहावरे को मिली है।

अब यूं देखा जाए तो किसी ज़माने में पेनजॉन भी सिरदर्द की एक प्रसिद्ध दवा थी। हमारे कॉलेज में जो लड़का सिरखाऊ किस्म का माना जाता था, उसे पेनजॉन कहा जाता था। कहने की ज़रूरत नहीं कि मूर्ख या बेवक़ूफ़ किस्म के लोगों को ही सिरखाऊ समझा जाता है। झंडुबाम मूलतः सिरदर्द की दवा है। जाहिर है अगर  झंडुबाम का चलन इन विशेषणों के संदर्भ में शुरू हुआ है, तो यह व्युत्पत्ति भी तार्किक है मगर सवाल उठता है कि वैद्य झंडु भट्टजी को झंडु उपनाम क्यों मिला होगा जबकि इसकी अर्थवत्ता तो नकारात्मक है!

अजित वडनेरकर (लेखक एक स्वाध्यायी भाषाविद हैं। शब्दों का सफर नाम का बेहद लोकप्रिय ब्लॉग चलाते हैं। उनका यह लेख शब्द चर्चा समूह से साभार लिया गया है)

2 Comments

  1. बहुत रोचक और ज्ञानवर्द्धक आलेख है ।
    अजित जी और आप दोनों को बधाई और आभार !

    – राजेन्द्र स्वर्णकार

  2. बहुत विद्वतापूर्ण और शानदार प्रस्तुति. धन्यवाद महोदय

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