हर कर्ज का इलाज करता है मोर्गेज इंश्योरेंस

किसी गाड़ी के लिए शॉक एब्जॉर्वर जो काम करता है, वैसी ही भूमिका किसी कर्जदार के लिए मोर्गेज इंश्योरेंस की है। आपने यदि किसी प्रकार का कर्ज लिया है तो मोर्गेज इंश्योरेंस काफी उपयोगी हो सकता है। खास कर उस स्थिति में और ज्यादा, जब कर्ज लेने के बाद आपकी असामयिक मौत हो जाती है। तब मोर्गेज इंश्योरेंस ही आपके परिवार की चिंताएं दूर करता है।

कैसे काम करता है: मान लीजिए कि आपने 50 लाख रुपए का होम लोन आपने अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी के लिए लिया है। इस लोन के साथ प्रॉपर्टी अटैचमेंट मोरोटोरियम भी है। यह लोन लेने के कुछ महीने बाद भगवान न करे कि आपकी मौत हो जाती है। उसके बाद यदि आपके आश्रित कर्ज की किस्त भरने में नाकामयाब रहते हैं तो कर्जदाता संस्थान को यह हक रहता है कि वह बकाया रकम की वसूली के लिए प्रॉपर्टी को अटैच कर ले। लेकिन यदि आपने मोर्गेज इंश्योरेंस पॉलिसी या होम लोन इंश्योरेंस पॉलिसी ली हुई है तो आपके आश्रित को बकाया किस्त भरने की कोई चिंता नहीं होगी। यह काम मोर्गेज इंश्योरेंस पॉलिसी या होम लोन इंश्योरेंस पॉलिसी का होगा।

परिवार/आश्रित का भविष्य: मोर्गेज इंश्योरेंस पॉलिसी लेने पर आपके परिवार या आश्रितों का भविष्य सुरक्षित रहता है। उन्हें कर्ज की ईएमआई भरने की चिंता नहीं रहती। कर्ज की राशि जितनी होती है उतना ही सम एश्योर्ड होम लोन इंश्योरेंस पॉलिसी का भी होता है।

ऑटो, पर्सनल व एजूकेशन में भी: यहां पर यह बताना जरूरी है कि मोर्गेज इंश्योरेंस पॉलिसी सिर्फ होम लोन के बारे में ही उपयोगी नहीं होती बल्कि इस इंश्योरेंस पॉलिसी का दायरा ऑटो लोन, पर्सनल लोन व एजूकेशन लोन तक को बीमा सुरक्षा मुहैया कराने का भी है। पर अमूमन यह होम लोन के समय ली जाती है। यूं कहें कि होम लोन के संदर्भ में मोर्गेज इंश्योरेंस का नाम लिया जाता है तो इसकी वजह यह है कि होम लोन की अवधि लांग टर्म की होने से उसमें बीमा कवर की जरूरत पड़ती है।

बेहतर रूप: जानकारों का कहना है कि मोर्गेज इंश्योरेंस पॉलिसी या होम लोन इंश्योरेंस पॉलिसी का सबसे बेहतर रूप यह रहेगा कि आप होम लोन की रकम व अवधि से मैच करती हुई रिड्यूसिंग टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी ले लीजिए। टर्म इंश्योरेंस जीवन बीमा का किफायती विकल्प है और इसके साथ आप अपने परिवार को वित्तीय रूप से सुरक्षित कर सकते हैं। प्रत्येक इंसान के बीमा पोर्टफोलियो में इसका होना जरूरी है। रिड्यूसिंग टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी के तहत जैसे-जैसे आप ईएमआई भरते हैं व कर्ज का बोझ कम होता जाता है ठीक उसी तरह पॉलिसी का सम एश्योर्ड भी घटता या रिड्यूस होता जाता है। यह टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी आप सिंगल प्रीमियम भी ले सकते हैं या आम पॉलिसियों की जरह इसका रेगुलर प्रीमियम भी भर सकते हैं।

बैंक के कवर से बचें: इंश्योरेंस फॉर ऑल के श्याम सुतार कहते हैं कि कर्जदारों को बैंक द्वारा सुझाए/प्रायोजित मोर्गेज इंश्योरेंस पॉलिसी या होम लोन इंश्योरेंस पॉलिसी लेने से बचना चाहिए। इसका प्रीमियम भारी हो सकता है। वैसे, इस आशय की शिकायतें भी मिली हैं कि कर्ज देने बैंक ग्राहकों को मौजूदा व नए मोर्गेज प्रोडक्ट पर खास बीमा पॉलिसी लेने का दबाव डालते हैं। ग्राहक के पास जब ऐसी पॉलिसी पहले से रहती है तो वह धर्मसंकट में फंस जाता है।

आरबीआई का निर्देश नहीं: हालांकि बैंको द्वारा मोर्गेज प्रोडक्ट के साथ होम लोन लेने वालों को साथ में ही कोई इंश्योरेंस पॉलिसी देने के मामले में रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से कोई निर्देश नहीं जारी किया गया है। इसलिए कोई भी बैंक आप पर अपनी पसंद की मोर्गेज इंश्योरेंस पॉलिसी या होम लोन इंश्योरेंस पॉलिसी लेने का दबाव नहीं डाल सकती है।

मोर्गेज इंश्योरेंस के विकल्प: आज की बीमा कंपनियों के पास ऐसे खास व संयुक्त प्रोडक्ट हैं जो कि आपकी कर्ज लायबिलिटी को बीमा कवर देते हैं। इस तरह की पॉलिसी में तीन कवर होते हैं- एक पर्सनल एक्सीडेंट कवर। जो किसी एक्सीडेंट की वजह से की वजह से डेथ या पर्मानेंट अपंगता की दशा में एकमुश्त राशि प्रदान करती है। दो- क्रिटिकल इलनेस कवर। इसमें पॉलिसीधारक के कैंसर, दिल संबंधी रोग, ऑर्गन ट्रांसप्लांट, पैरालिसिस का शिकार होने पर एकमुश्त राशि मिलती है। तीसरा है हाउसहोल्डर्स यानी होम इंश्योरेंस पॉलिसी। इसमें बिल्डिंग के स्ट्रक्चर व सामानों को आग, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं की वजह से हुए नुकसान को कवर किया जाता है। साथ ही सेंधमारी से सामानों का हुआ नुकसान भी कवर होता है। इसके अलावा कुछ प्लान नौकरी छूट जाने पर होम लोन की तीन ईएमआई का भी भुगतान करते हैं।

राजेश विक्रांत (लेखक एक बीमा प्रोफेशनल हैं)

1 Comment

  1. Better than reducing term policy… you should take normal term policy that covers your loan amount. E.g. You took a term of Rs 50 lakh against a 20 years loan of Rs 50 Lakh on year 1st. On year 19th you die. The loan amount would left by then would be couple of lakhs while what your spouse / dependent would get is Rs 50 Lakh.

    In reducing term policy on 49th year you die leaving couple of lakh only.

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