आर्थिक विकास दर को बढ़ाने के लिए भले ही ऋण को सस्ता करने की जरूरत हो, लेकिन रिजर्व बैंक की ब्याज दर को कम करने की कोई भी पहल मुख्य तौर सरकार की राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखने की क्षमता पर निर्भर करेगी। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने शुक्रवार को दिल्ली में उद्योग संगठन एसोचैम के सम्मेलन में कहा ‘‘ब्याज दर पर कोई भी फैसला मुख्य तौर पर इस पर निर्भर करेगा कि राजकोषीय घाटे का क्या होता है।’’
चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.6 फीसदी होने की उम्मीद है, जबकि बजट में अनुमान लगाया गया था कि यह जीडीपी के 4.6 फीसदा के बराबर होगा। रिजर्व बैंक ने 24 जनवरी को मौद्रिक नीति की तीसरी त्रैमासिक समीक्षा में नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) आधा फीसदी घटाकर 5.5 फीसदी कर दिया है। इससे बैंकों के पास ऋण देने के लिए 32,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त मिल गए हैं। लेकिन इससे उनके तरलता संकट का समाधान नहीं निकला है। इसलिए 15 मार्च को मध्य-तिमाही समीक्षा में रिजर्व बैंक सीआरआर में आधा फीसदी और कमी कर सकता है।
अहलूवालिया ने एसोचैम के समारोह में यह भी कहा, ‘‘भारत में दीर्घकालिक ब्याज दरों का निर्णय इस आधार पर होगा कि राजकोषीय घाटे का क्या होता है और विदेश से आने वाले धन की स्थिति क्या होती जिससे आम नकदी प्रभावित होगी।’’ उन्होंने बढ़ते जा रहे चालू खाते का घाटे पर चिंता जाहिर की। उनका कहना था कि क्या भारत जीडीपी के तीन फीसदी जितना चालू खाते का घाटा सहन कर सकता है जो 15 अरब डॉलर के सालाना प्रवाह के बराबर है?’’ चालू खाते का घाटा विदेशों के साथ दैनिक लेन देन में धन की कमी को दर्शाता है जो इस साल जीडीपी के 3.6 फीसद तक जा सकता है।