नरेंद्र मोदी 13 साल गुजरात जैसे औद्योगिक राज्य के मुख्यमंत्री और दस साल भारत जैसी पांच हज़ार साल पुरानी सभ्यता वाले देश के प्रधानमंत्री रहे। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे और प्रचारक ही रह गए। करीब ढाई दशक तक देश के संवैधानिक पदों पर रहने के बावजूद वे हिंदू-मुसलमान और भारत-पाकिस्तान की सोच से बाहर नहीं निकल सके। अमित शाह राजनीति में आने से पहले शेयर ब्रोकर थे। लेकिन दस साल गुजरात के गृहमंत्री और पांच साल भारत के गृहमंत्री रहने के बावजूद उनकी सोच शेयर ब्रोकर से ऊपर नहीं उठ पाई। उन्होंने एक इंटरव्यू नें ताल ठोंककर कहा कि 4 जून को शेयर बाज़ार नया रिकॉर्ड बनानेवाला है, इसलिए उससे पहले खरीद लें। इसी तरह दशकों तक विदेश सेवा, तीन साल तक भारत का विदेश सचिव और पांच साल से देश के विदेश मंत्री रहने के बावजूद हमेशा सत्ता की सेवा करते नौकरशाह की सोच से ऊपर नहीं उठ पाए हैं। लगातार चार चरणों के गिरते मतदान पर ईमानदारी से राय रखने के बजाय वे कहते हैं, “मतदान के हर चरण के साथ शेयर बाज़ार में चंचलता या वोलैटिलिटी घटती जाएगी क्योंकि बाज़ार को अहसास होता जाएगा कि अंततः हमारी बड़ी जीत होने जा रही है।” जब वे यह बयान दे रहे हैं, तब शेयर बाज़ार की वोलैटिलिटी को दिखाने वाला सूचकांक इंडिया वीआईएक्स 21.88 के शिखर पर पहुंच चुका था। माहौल में घबराहट है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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