ट्रेडिंग के लिए हम ऐसे स्टॉक्स चुनते हैं जो खरीद-फरोख्त के असर से घट-बढ़ सकते हैं, जबकि निवेश में हम ऐसी कंपनियों को चुनते हैं जिनका धंधा पुख्ता आधार पर खड़ा हो और जिसमें बढ़ने की भरपूर गुंजाइश हो। दिक्कत है कि हममें से 99 फीसदी लोग ट्रेडिंग की मानसिकता रखते हैं। छाया के पीछे भागते हैं और माया गंवाते रहते हैं। यह रुख न तो देश की अर्थव्यवस्था और न ही हमारे दीर्घकालिक आर्थिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। जो बाजार में बैठे हैं, उन्हें जोड़तोड़ और ट्रेडिंग से कमाने दीजिए। हम बाहर बैठकर उनकी नकल नहीं कर सकते। हमें तो अपनी ही अक्ल से काम लेना चाहिए।
कुछ कंपनियां विज्ञापनों के जरिए अवाम में छा जाती है। कॉलगेट से लेकर आईटीसी, हिंदुस्तान लीवर के अलावा टीवीएस, बजाज ऑटो और हीरो मोटोकॉर्प इस कड़ी के चंद नाम हैं। लेकिन जो कंपनियां इन दिग्गज कंपनियों को माल या कलपुर्जे सप्लाई करती हैं, उन्हें हर कोई नहीं जानता। फिर भी वे अपना काम पूरी शिद्दत से किए चली जाती हैं। ऐसी ही एक कंपनी है मिंडा इंडस्ट्रीज। ऑटो कंपोनेंट उद्योग में करीब पांच दशकों से सक्रिय एन के मिंडा समूह की सदस्य है। 1995 से 2-ह्वीलर व 3-ह्वीलर के स्विच और इनके साथ-साथ 4-ह्वीलर वाहनों के लिए बैटरी बनाती है। पिछले कुछ सालों से वह सीएनजी/एलपीजी किट भी बनाने लगी है।
इसके ग्राहकों में यामहा, हीरो मोटोकॉर्प, टोयोटा, टाटा मोटर्स, फोर्ड व जनरल मोटर्स शामिल हैं। इनमें से कइयों की वह ओईएम (ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर) सप्लायर है। देश के 2/3 ह्वीलर सेगमेंट के बाजार का तकरीबन 70 फीसदी हिस्सा उसके पास है। कंपनी शोध व अनुसंधान (आर एंड डी) में जुटी रहती है। फिलहाल आर एंड डी पर सालाना टर्नओवर का करीब 3 फीसदी खर्च करती है, जिसे जल्दी ही 5 फीसदी करने का इरादा है। वह हर साल औसतन 140 तरह के नए उत्पाद विकसित करती है और उन्हें बनाने की 26 नई असेम्बली लाइन लगाती है। कंपनी इधर एलईडी आधारित ऑटो लाइटिंग, स्विच, इलेक्ट्रॉनिक सेल व रेन सेंसर वगैरह बनाने में जुटी है। देश में उसकी आठ उत्पादन इकाइयां गुडगांव, पुणे, होसुर, दिल्ली, औरंगाबाद और पंतनगर में फैली हुई हैं।
कंपनी ने बीते साल 2010-11 में 913.10 करोड़ रुपए की बिक्री पर 34.84 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था और उसका परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 9.83 फीसदी था। चालू वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान दिसंबर तिमाही में उसकी बिक्री 23.60 फीसदी बढ़कर 266.56 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 100.97 फीसदी बढ़कर यानी लगभग दोगुना होकर 14.49 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है, जबकि ओपीएम 12.70 फीसदी रहा है। दिसंबर 2011 तक के बारह महीनों में कंपनी का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) स्टैंड एलोन रूप से 19 रुपए और सब्सिडियरी इकाइयों को मिलाकर कंसोलिडेटेड रूप से 22.82 रुपए है। उसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल, 19 मार्च 2012 को बीएसई (कोड – 532539) में 195.25 रुपए और एनएसई (कोड – MINDAIND) में 194.55 रुपए पर बंद हुआ है।
इस तरह स्टैंड एलोन ईपीएस के आधार पर फिलहाल यह 10.27 और कंसोलिडेटेड ईपीएस के आधार पर 8.56 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। शेयर की बुक वैल्यू 123.21 रुपए है। यानी, शेयर का बाजार भाव बुक वैल्यू का 1.58 गुना है जिसे अच्छा माना जाएगा। यकीनन यह स्मॉल कैप कंपनी है और इसमें बहुत ज्यादा खरीद-फरोख्त या लिक्विडिटी नहीं होती। लेकिन कंपनी की मूलभूत मजबूती को देखते हुए उसमें चार-पांच साल के लिए निवेश किया जा सकता है। यह शेयर पिछले 52 हफ्तों के दौरान 8 अप्रैल 2011 को 331.75 रुपए और 23 दिसंबर 2011 को 130 रुपए का न्यूनतम स्तर पकड़ चुका है।
कंपनी की इक्विटी 15.87 करोड़ रुपए है। इसका 65.98 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों ने अपने पास रखा हुआ है जो कंपनी के प्रति उनके जुड़ाव व भरोसे का परिचायक है। एफआईआई ने कंपनी 8.67 फीसदी और डीआईआई ने 2.89 फीसदी शेयर खरीद रखे हैं। उन्होंने कंपनी में अपना निवेश सितंबर व दिसंबर तिमाही के दौरान ही किया है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या मात्र 3417 है जिनमें से 3110 यानी 91 फीसदी एक लाख रुपए से कम लगानेवाले छोटे निवेशक हैं जिनके पास कुल मिलाकर 3.83 फीसदी शेयर हैं। प्रवर्तकों के अलावा एक फीसदी से ज्यादा इक्विटी निवेश वाले उसके चार बड़े शेयरधारक हैं जिनके पास कुल 24.87 फीसदी शेयर हैं। कंपनी की मजबूती का एक और प्रमाण यह है कि वह 2007 से लेकर अब तक हर साल लाभांश देती रही है। कभी दस रुपए के शेयर पर 2.50 रुपए तो कभी 3 रुपए यानी 25 से 30 फीसदी।