महंगाई ने मुख्य आर्थिक सलाहकार को मुंह चिढ़ाया, 9.06% बढ़ी मई में

हमारे नीति-नियामक कितने मतिअंध हैं, इसका प्रमाण पेश कर दिया मंगलवार को जारी मई माह की मुद्रास्फीति के आंकड़ों ने। तीन दिन पहले ही वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु कह रहे थे कि थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर मई में 8.6 फीसदी रह सकती है जो अप्रैल माह के 8.66 फीसदी से कम होगी। लेकिन वास्तव में यह आंकड़ा 9.06 फीसदी का निकला है। सवाल उठता है कि क्या इतने खास ओहदे पर बैठनेवाले अर्थशास्त्री को इतना भी पता नहीं रहता या वे जानबूझ कर आमराय को गुमराह करते हैं?

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक मई 2011 में सारी वस्तुओं में फाइबर (58.98 फीसदी), फल (31.90 फीसदी) और कॉटन टेक्सटाइल (29.88 फीसदी) सबसे ज्यादा महंगे हुए हैं। पिछले साल मई में सकल मुद्रास्फीति की दर 10.48 फीसदी थी। मंत्रालय की विज्ञप्ति में यह भी बताया गया है कि संशोधित आंकड़ों के अनुसार मार्च 2011 में मुद्रास्फीति की वास्तविक दर 9.68 फीसदी रही है, जबकि प्रारंभिक आंकड़ों में इसे 9.04 फीसदी बताया गया था। वैसे, यह समझ में आनेवाली बात नहीं है कि मुद्रास्फीति के आंकड़े वित्त मंत्रालय के बजाय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय क्यों जारी करता है।

खैर, मुद्रास्फीति के बढ़ने की खास वजह मैन्यूफैक्चर्ड वस्तुओं और पेट्रोल का महंगा हो जाना है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक में 64.97 फीसदी का योगदान रखनेवाले मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों का सूचकांक मई में 7.27 फीसदी बढ़ा है, वहीं 20.12 फीसदी योगदान वाली प्राथमिक वस्तुएं 11.30 फीसदी महंगी हुई हैं, जबकि 14.91 फीसदी योगदान रखनेवाले ईंधन व बिजली क्षेत्र में मुद्रास्फीति की दर 12.32 फीसदी रही है। इसमें भी पेट्रोल 27.31 फीसदी महंगा हुआ है।

लेकिन मुद्रास्फीति की दर के अपेक्षा से अधिक रहने का शेयर बाजार पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा है। मंगलवार को सुबह से ही बीएसई सेंसेक्स व एनएसई निफ्टी दोनों में बढ़त का सिलसिला चलता रहा। हां, इतना जरूर माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक परसों, गुरुवार को आनेवाली मध्य-तिमाही मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरें हर हाल में 0.25 फीसदी बढ़ा देगा और यह वृद्धि 0.50 फीसदी की भी हो सकती है। दूसरे शब्दों में अभी जो रेपो दर 7.25 फीसदी है, उसे बढ़ाकर 7.50 फीसदी से 7.75 फीसदी किया जा सकता है। रेपो दर ब्याज की वह सालाना दर है जिस पर रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियों के एवज में बैंकों को एकाध दिन के लिए धन उधार पर देता है।

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