यह महाभारत की एक कथा है जो शरशय्या पर पड़े भीष्म युधिष्ठिर को सुना रहे हैं, यह सुझाते हुए कि राजकाज में किसी व्यक्ति के स्वभाव को पहचान कर ही उसके अधिकारों में वृद्धि करनी चाहिए। आज राजकाज तो रहा नहीं, लेकिन अपने व्यवसाय से लेकर नौकरी तक में हमें एक तरह का राजकाज ही चलाना होता है। योगेंद्र जोशी जी ने यह कथा अपने ब्लॉग – जिंदगी बस यही है, पर बड़े मनोयोग से लगाई है। वहीं से साभार लेकर इसे मैं आप लोगों के लिए पेश कर रहा हूं…
एक तपस्वी मुनि के आश्रम में कभी कोई ग्रामीण कुत्ता भूले-भटके पहुंच जाता है और फिर वहीं का होकर रह जाता है। मुनि के आश्रम में रहते हुए वह सात्विक वृत्ति का हो जाता है और जन-समुदाय के साथ उनके उपदेश सुनता है। एक बार वह निकट के जंगल में घूमते-टहलते हुए एक चीते को देखता है, जो उस पर आक्रमण करने के लिए उसकी ओर बढ़ता है। कुत्ता दौड़ता हुआ मुनि के पास पहुंचता है और उन्हें अपनी भयजन्य व्यथा सुनाता है। उस पर तरस खाते हुए सिद्धिप्राप्त तपस्वी मुनि उसे अपनी मंत्रशक्ति से चीता बना देते हैं और कहते हैं, “तुम्हें अब कोई भय नहीं होगा उस चीते से।”
समय बीतता है और तब एक दिन उस चीते को पास के जंगल में एक बाघ के दर्शन होते हैं। उसकी स्थिति फिर पहले की जैसी हो जाती है। भयभीत वह दौड़ते हुए मुनि के पहुंचता है। उसके डर को देखकर वे इस बार उसे बाघ बना देते हैं। कुछ दिन तक सब ठीक चलता है, किंतु फिर एक दिन अब बाघ बन चुके उस कुत्ते को एक हाथी दिख जाता है जो उससे डरने के बजाय उसे मारने दौड़ पड़ता है। उस बाघ को एहसास होता है कि हाथी तो उससे भी ताकतवर है और उसे तो मार सकता है। बस वह दौड़ता-भागता उस तपस्वी के पास पहुंचता है और अपनी शिकायत सुनाता है। वे इस बार फिर करुणाग्रस्त हो जाते हैं और उसे अभिमंत्रित जल से सींचकर हाथी का रूप दे देते हैं।
वह स्वच्छंद होकर आस-पास जंगल में घूमने लगता है। लेकिन उसकी समस्या अभी समाप्त नहीं होती है। इस बार उसका सामना होता है बलशाली सिंह से, जो उससे डरने के बजाय उसी पर हमला कर देता है। हाथी समझ जाता है कि सिंह उससे भी बलवान है और कभी भी घात लगाकर उसे मार सकता है। वह भागता हुआ मुनि की शरण में आता है और पूरा वाकया सुनाता है। मुनि उसे आश्वस्त करते हुए कहते हैं, “घबराओ मत, मैं तुम्हें बलिष्ठ सिंह बना देता हूं। तुम्हारे सभी भय अब समाप्त हो जाएंगे।” और वह एक ताकतवर सिंह बन जाता है।
इसके बाद वह सिंह निर्भय होकर जंगल में घूमता है, जानवरों का शिकार करके पेट भरता है और फिर आश्रम पर लौट आता है। स्वयं मुनि को उससे कोई भय नहीं रहता है। फिर एक दिन उस सिंह को दिखता है एक शरभ। (महाभारत की एक कथा में शरभ को आठ पांव वाला भयानक हिंसक जानवर बताया गया है जो सिंहों का भी शिकार कर उन्हें खा जाता है। लगता है कि यह एक पूर्णतः काल्पनिक पशु था) सिंह उसे देख भयग्रस्त होकर भागता है और उस तपस्वी की शरण में पहुंचता है। सदैव की भांति मुनि उसे जंगल के उस शरभ से अधिक बलशाली शरभ बना देते हैं। वह अब निश्चिंत हो जंगल में घूमने-फिरने लगता है।
कथा अब एक खतरनाक मोड़ पर आ पहुंचती है। समय के साथ शरभ बन चुके उस कुत्ते के मन में कुविचार आना शुरू हो जाते हैं। वह सोचने लगता है, “जब यह तपस्वी अपने मंत्रबल से मुझे शरभ बना सकता है तो कभी किसी और पर भी ऐसी ही अनुकंपा कर सकता है। तब मेरा तो वर्चस्व ही समाप्त हो जाएगा। उस संभावना को टालने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि इस तपस्वी को ही मार डाला जाए।” वह शरभरूपी कुत्ता यह सब सोच ही रहा होता है कि अपनी सिद्धि के बल पर उस मुनि को उसके नापाक इरादों का पता चल जाता है। वे खतरा भांप जाते हैं और उसे “तुम विश्वासयोग्य नहीं हो, अतः जाओ अपने पुराने शुनक (कुत्ता) योनि में” कहते हुए उसे पुनः कुत्ता बना देते हैं।
साभार: जिंदगी बस यही है
कहानी का सार यह है की जनता को अब कांग्रेस को फिर से कुत्ता बना देना चाहिए .
wah bahut hi achha lekh !!! koi bhi prani marna nahi chahta h . par sanatan satya hone ke karan marna hi parta h . atma ko bhay nahi h …par sharir chhut nahi jai iska dar sabhi ko lagta hi lagta hi lagta hi rahta h jab tak sach mai mar nahi jaei . dar ka to koi ilaj hi nahi bas mann ko tyyar karna parta h samana karne ke liye .BHAGWAN ki avdharna usi samai se hui jab prani kisi bhi baat se darna shuru kiya tha .