मर गया लांग टर्म, ट्रेडिंग ज़िंदाबाद!

अब निवेश के लिए मर चुका है लांग टर्म। लद चुका है लांग टर्म निवेश का ज़माना। आज का दौर खटाखट नोट बनाने का है। रुझान पकड़कर समझदारी से ट्रेडिंग करने का। बाजार चाहे गिरे, या बढ़े। बनाइए नोट खटाखट। दोनों ही हाल में कमाई। दोनों हाथों में लड्डू और सिर कढ़ाई में। जी हां, ऑनलाइन ट्रेडिंग एकेडमी का यही दावा है। उसका कहना है कि वह आपको हफ्ते भर में ऐसी ट्रेनिंग दे देगी कि आप बाजार से हर हाल में नोट बनाएंगे। रुझान बढ़ने का हो तो लांग, गिरने का हो तो शॉर्ट। बाजार बढ़ता तो धीरे-धीरे है। लेकिन गिरता है खटाक से। इसलिए गिरावट के दौर में कम वक्त में ज्यादा कमाई की जा सकती है, शॉर्ट ट्रेडिंग के जरिए।

ऑनलाइन ट्रेडिंग एकडेमी मूलतः अमेरिका की संस्था है। इसकी शुरुआत 1997 में ट्रेडिंग फ्लोर के रूप में हुई थी, जहां एक साथ 180 ट्रेडर सौदे करते थे। लेकिन चार साल बीतते-बीतते 2001 तक इसने अपना फोकस ट्रेडिंग की शिक्षा पर केंद्रित कर दिया। अभी तक दुनिया भर करीब 24,000 प्रशिक्षित ट्रेडर तैयार कर चुकी है और इसके 35 केंद्र हैं। पूरा बहुराष्ट्रीय स्वरूप हो चुका है इसका। भारत में भी इसके पैर पड़ चुके हैं और इसका दावा है कि इसने अब तक यहां करीब 1400 लोगों को ट्रेडिंग की शिक्षा दी है।

ऑनलाइन ट्रेडिंग एकेडमी में शिक्षा देनेवाले लोग खुद मूलतः ट्रेडर हैं। ऐसे ही ट्रेडर व शिक्षक चेतन पोद्दार पहले एक बैंकर थे। संस्था नए लोगों को खींचने के लिए करीब चार घंटे की मुफ्त ‘पावर ट्रेडिंग वर्कशॉप’ कराती है। ऐसे ही एक वर्कशॉप में 29 अक्टूबर 2011, शनिवार को चेतन ने लांग टर्म, शॉर्ट टर्म, टेक्निकल एनालिसिस और शेयर बाजार से कमाई के नुस्खों पर जमकर अपनी बात रखी है। उनका कहना है कि इंट्रा-डे ट्रेडिंग नौसिखिए लोग करते हैं, जबकि प्रोफेशनल ट्रेडर कभी भी इंट्रा-डे नहीं करते। वे स्विंग ट्रेडिंग करते हैं।

उनके मुताबिक मूलतः सारे निवेशक ट्रेडर ही होते हैं। फंडामेंटल्स को शायद ही लोग देखते हैं। लांग टर्म निवेशक अमूमन अपना घाटा ही लंबा खींचते हैं। लॉस बुक नहीं करते, गिरावट पर एवरेजिंग करते जाते हैं और इस तरह अपना घाटा बढ़ाते जाते हैं। फंडामेंटल्स पर आधारित निवेश के लिए अर्थव्यवस्था, उद्योग और कंपनी तक की बारीकियां समझनी पड़ती हैं और आमतौर पर निवेशक इन चीजों की परवाह नहीं करते। इसलिए वे अंदर से असल में ट्रेडर ही होते हैं। लेकिन ट्रेडिंग की शिक्षा से कन्नी काटत रहते हैं।

ट्रेडिंग समुदाय में भी 95 फीसदी ट्रेडर घाटा उठाते हैं। इसलिए कि वे कभी टिप्स, कभी खबरों और कभी अपनी ‘गट फीलिंग’ पर काम करते हैं। उनकी ट्रेडिंग के पीछे कोई विज्ञान नहीं होता। जबकि ट्रेडिंग बाजार में खरीदने-बेचनेवालों की भावनाओं से लेकर तमाम पहलुओं को पकड़तर पैसे कमाने का शतरंज जैसा खेल है। इसे सीखना मुश्किल नहीं। लेकिन कठिन अभ्यास की जरूरत है। वे बताते हैं कि विश्वनाथन आनंद जैसा ग्रैंडमास्टर भी हर दिन तीन घंटे शतरंज का अभ्यास करता है।

पोद्दार बताते हैं कि सफल ट्रेडिंग के लिए चार चीजें जरूरी हैं – टेक्निकल एनालिसिस का गहरा ज्ञान, रिस्क मैनेजमेंट, ट्रेडिंग के मनोविज्ञान को समझना और पूरा ट्रेडिंग प्लान। आपके पास सुबह-सुबह हर दिन का प्लान होना चाहिए कि क्या खरीदना है, कितने पर खरीदना और कितने पर बेचना है। लेकिन प्लान से चिपके रहना भी गलत है। उन्होंने इस सिलसिले में एक सूक्ति वाक्य बोला कि आज आपके पास प्लान होना चाहिए ताकि कल आप उसे बदल सकें।

उन्होंने उदाहरण देकर वर्कशॉप में शामिल करीब 30 लोगों को समझाया कि कैसे टेक्निकल एनालिसिस में कैंडल, ऑसिलेटर व ट्राएंगल जैसे तमाम फॉर्मेशन निवेश के संकेत पेश करते हैं। इन संकतों को तभी पकड़ा जा सकता है जब आप ट्रेडिंग से जुड़े हर पहलू से वाकिफ हों और दिल से नहीं, दिमाग से काम करना सीख जाएं। उनका कहना था कि शेयर बाजार दरअसल धन का नहीं, मानसिक ताकत का खेल है। अध्ययन से मन की ताकत बढ़ाई जा सकती है। इसलिए उन्होंने बहुत सारी किताबों का जिक्र किया। इसमें अलेक्जैंडर एल्डर की ट्रेडिंग फॉर लिविंग और नसीम निकोलस तालेब की फूल्ड बाय रैंडमनेस व द ब्लैक स्वान शामिल हैं। चेतन से अलेक्जैंडर की किताब का एक वाक्य भी कोट किया, “आप मुक्त हो सकते हैं। आप दुनिया में कहीं भी रह और काम कर सकते हैं। आप रूटीन से आजाद हो सकते हैं और किसी के प्रति जवाबदेह भी नहीं रहेंगे।”

ऑनलाइन एकेडमी का दावा है कि वो एक हफ्ते की ट्रेनिंग में आपको यह आजादी हासिल करने की पहली सीढ़ी पर पहुंचा सकती है। लेकिन इस दुनिया में ‘फ्री लंच’ जैसी कोई चीज नहीं होती। वर्कशॉप समापन की तरफ बढ़ रहा था और चेतन अब अपने पत्ते खोलते हैं। एक हफ्ते में ट्रेडर बनने की शिक्षा की मूल कीमत है – 2.40 लाख रुपए। लेकिन अभी यह पैकेज 87,500 रुपए में मिल रहा है। वो भी अगर आप ब्रोकरेज फर्म शेयरखान से जुड़कर ट्रेड करते हैं तो यह आपको मुफ्त का पड़ सकता है। होगा यह कि शेयरखान के साथ आप महीने में जो भी ट्रेडिंग करेंगे, उस पर ली गई ब्रोकरेज का 25 फीसदी हिस्सा वह आपको वापस लौटा देगी। गणना कर लीजिए कि 87,500 रुपए निकालने के लिए आपको शेयरखान के साथ कितनी ट्रेडिंग करनी पड़ेगी।

खैर, पूर्व बैंकर और वर्तमान ट्रेडर चेतन पोद्दार कहते हैं कि पूरी ट्रेनिंग के दौरान हर दिन एक लाख रुपए छात्र को व्यावहारिक ट्रेडिंग सिखाने के लिए दिए जाते हैं। जमकर खेलो, घाटे की परवाह नहीं। हफ्ते का कोर्स पूरा होने के बाद भी अगर कामयाब नहीं हुए तो फिर आपको सिखाया जाएगा कि आप से कहां और कैसे चूक हो रही है। यानी, आपके दोनों हाथों में लड्डू। लेकिन आपको खुद ध्यान रखना होगा कि सिर कढ़ाई में न पड़े क्योंकि तब जलने का खतरा है।

अंत में। चेतन पोद्दार और अमेरिकी संस्था ऑनलाइन ट्रेनिंग एकेडमी से मेरा एक ही सवाल: 95 फीसदी ट्रेडर घाटे में रहते हैं तभी तो 5 फीसदी ट्रेडर कमाते हैं। जब सभी जानकार हो जाएंगे तो किसका घाटा, किसका फायदा बन पाएगा? आखिर ट्रेडिंग में कोई वैल्यू क्रिएशन तो होता नहीं। इस जेब का धन उस जेब में चला जाता है। ऊपर से भारतीय बाजार जिस तरह अविकसित है, जिस तरह की सिंक्रोनाइज्ड ट्रेडिंग यहां चलती हैं, एफआईआई व ऑपरेटर जो कलाकारी करते हैं, उसमें ट्रेडिंग का तथाकथित विज्ञान कैसे काम आ सकता है? अगर ट्रेडिंग में इतनी ही महिमा है तो क्या लांग टर्म निवेश के हिमायती वॉरेन बफेट जैसे लोग कहते कुछ और करते कुछ और हैं?

1 Comment

  1. बिल्कुल सही बात है कि केवल पाँच प्रतिशत ट्रेडर ही कमाते हैं, और यह प्रशिक्षण भी कमाई का ही एक जरिया है ।

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