ठीक से घाटा खाना सीख लें, बाकी ठीक!

शेयरों की ट्रेडिंग मूलतः शेयर बाज़ार में हर दिन सक्रिय ट्रेडरों की मानसिकता व आवेग को जानकर उनके बर्ताव को पहले से भांप लेने का खेल है। लेकिन यह कितना संभव है? आप अपने को समझ सकते हैं, अपने जैसे अन्य ट्रेडरों की चाल को समझ सकते हैं, लेकिन जहां देश के कोने-कोने के हमारे जैसे लाखों लोग ही नहीं, विश्व स्तर पर करोड़ों धनवान सक्रिय हों जिनकी नुमाइंदगी फाइनेंस की दुनिया के दिग्गज प्रोफेशनल कर रहे हों, वहां सारा कुछ पहले से सटीकता से भांप लेना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। इसीलिए कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि शेयरों की ट्रेडिंग अनिश्चितता से भरी अनजान धारा में छलांग लगाने जैसा रिस्की घंधा है। यकीनन यहां लॉटरी या जुआ खेलने जैसा अंधापन नहीं है, लेकिन रिस्क तो जबरदस्त है। शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग के दो अकाट्य सच अमूमन हम स्वीकार नहीं कर पाते। पहला यह कि सारी तैयारियों के बावजूद यहां परिणाम का कोई भरोसा नहीं। यहां सारा खेल अनिश्चितता का है। इसे कोई नहीं बांध सकता। दूसरा सच यह कि यहां उस्तादों के लिए भी घाटे से बच पाना संभव नहीं। यहां सफल ट्रेडर वही है जो जानता है कि ठीक से घाटा कैसे खाया जाए और घाटे को न्यूनतम कैसे रखे। यह बुनियादी सच शेयरों की ट्रेडिंग से कमाने को आतुर हर शख्स के लिए जज्ब करना बेहद ज़रूरी है…

घाटे को न्यूनतम रखने का हुनर: अपने यहां पुरानी कहावत भी चलती है कि पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान। भीलन छीनीं गोपियां, वही अर्जुन वही बाण। भीलों के झुंड ने गोपियां छीन लीं और धुरंधर धनुर्धर अर्जुन भी उनको नहीं रोक पाए। जीवन में भी यही होता है। सबसे तेज़ धावक दौड़ जीत जाए, सबसे ताकतवर योद्धा जीत जाए, ज़रूरी नहीं। इसी तरह शेयर बाज़ार में ट्रेडर को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि यहां बहुत सारे कारक काम करते हैं, जिन पर उसका कोई वश नहीं। आपने कितनी भी उस्तादी सीख लीं, लेकिन तब भी घाटा खाने से बच नहीं सकते। नफा-नुकसान इस धंधे का अभिन्न हिस्सा है। सफल ट्रेडर यह सच स्वीकार करके ही बनता है। वो हमेशा व्यापारी की तरह सोचता और काम करता है।

टेलिविज़न महंगा हो जाए या दाल महंगी हो जाए तो इससे उपभोक्ता को फर्क पड़ता है, व्यापारी को नहीं। उसे तो अपने मार्जिन से मतलब है जिसकी एक निश्चित रेंज होती है। माल महंगा मिला तो महंगा बेचेगा, सस्ता मिला तो सस्ता। माल के दाम उसके वश में नहीं। इसी तरह वित्तीय बाज़ार का ट्रेडर मूलतः व्यापारी है। भावों की मगज़मारी छोड़ उसकी नीति होनी चाहिए – थोक में खरीदो, रिटेल में बेचो। कभी आज के ज़माने की सबसे सफल व्यापारी फर्म अमेरिका की वॉलमार्ट या भारत की डीमार्ट के बिजनेस मॉडल पर ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि उनकी सफलता के मूल में इनवेंटरी मैनेजमेंट। ग्राहक जितना खरीदे, उतना माल स्टोर में रखो। इससे आपकी लागत कम से कम और बिक्री व मुनाफा अधिकतम हो सकता है। व्यापार के धंधे में कम से कम घाटे में थोड़ा-थोड़ा मार्जिन कुल मिलाकर ज्यादा लाभ बन जाता है।

ट्रेडिंग में नहीं चलती नकल: यकीनन बाज़ार की ऊंच-नीच से हर छोटे-बड़े ट्रेडर पर असर पड़ता है। कारण, कोई भी स्थितप्रज्ञ नहीं होता। शेयर बाज़ार के धुरंधर ट्रेडर पर भी अर्थव्यवस्था और बाज़ार की ऊंच-नीच से प्रभावित होते हैं। लेकिन वे किसी भी हालत में विचलित नहीं होते। हर हाल में समता का भाव या समभाव बनाकर चलते हैं। हमेशा उतना ही रिस्क लेते हैं, जितनी उनकी सामर्थ्य है। जोश में आकर कभी होश नहीं खोते और पहले से खींच ली गई रिस्क की लक्ष्मण रेखा कभी नहीं तोड़ते। हमें भी अपनी सीमा को समझते हुए कभी गिरते हुए शेयरों में ट्रेड़ नहीं करना चाहिए। हिंदुस्तान यूनिलीवर, ब्रिटानिया या एशियन पेंट्स जैसी कंपनी की मूलभूत मजबूती पर कोई संदेह नहीं करना चाहिए। लेकिन जब उनके शेयर बराबर गिर रहे हों, तब उनमें ट्रेड नहीं करना चाहिए। ट्रेड उन्हीं शेयरों में करना चाहिए, जिनमें साल-दो साल से लेकर दो-चार महीने और हफ्तों से तेज़ी चल रही हो, मतलब लॉन्ग टर्म, मीडियम टर्म और शॉर्ट टर्म रुख तेज़ी का हो।

यह भी ध्यान रखें कि ट्रेडिंग की रणनीति हमेशा समय व परिस्थिति के सापेक्ष होती है। बाज़ार में तेज़ी हो, मंदी हो या वो अभी की तरह सीमित दायरे में भटक रहा हो, इन तीनों ही दौर में ट्रेडिंग की रणनीति अलग होती है। इस पर आपको इंटरनेट पर सफल ट्रेडरों के अनुभावों पर आधारित बहुत सारी किताबें मिल जाएंगी, जिनमें से कुछ का अध्ययन आप कर सकते हैं। लेकिन हर हाल में याद रहे कि ट्रेडिंग में नकल नहीं चलती। निवेश हो या ट्रेडिंग, हमेशा रिस्क लेने की अपनी क्षमता को जानकर करना चाहिए। हर किसी की रिस्क क्षमता और प्रोफाइल अलग होता है। इसीलिए ट्रेडिंग से कमाने का कोई एकसूत्रीय फॉर्मूला नहीं हो सकता। हां, लोगों को छलने का एकसूत्रीय फॉर्मूला ज़रूर होता है। लोगों की लालच को हवा देते रहो और कमीशनखोरी से माल काटते रहो। इसलिए बाज़ार में सक्रिय ऐसे छलिया लोगों से हमेशा दूर रहना चाहिए।

ज़रा बचके, ज़रा हटके: अपने यहां जैसी स्थिति-परिस्थिति चल रही है, उसमें पूर्णकालिक ट्रेडर बनकर घर-परिवार चलाने लायक कमा पाना बेहद मुश्किल है। इसलिए पहली प्राथमिकता नौकरी या कोई स्थाई काम-धंधा पकड़ना होना चाहिए। इसके बाद अतिरिक्त कमाई के लिए शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग की जा सकती है। इसके सबसे मुफीद तरीका कुछ दिनों या एकाध महीने की ट्रेडिंग ही हो सकता है। मतलब स्विंग, मोमेंटम या पोजिशनल ट्रेड। वैसे, मुंबई जैसे महानगर में अधिकांश रिटेल ट्रेडर इंट्रा-डे ट्रेड ही करते हैं। भोर में घर से निकल जाते हैं। किसी ब्रोकर या सब-ब्रोकर के यहां दिन के दिन में सौदे निपटाकर देश शाम घर लौट जाते हैं। उनकी यह भी खासियत है कि वे टिप्स क पीछे भागते हैं। इस चक्कर में ऐसे आलतू-फालतू स्टॉक्स पर दांव लगा बैठते हैं जिनके बारे में किसी से खास कुछ सुना नहीं होता। उनके लिए मुफ्त की बिनमांगी सलाह। कभी भी ठंडे, अनजाने या बोरिंग स्टॉक्स में ट्रेड न करें। उन्हीं कंपनियों के शेयरों में ट्रेड करें, जिनमें बराबर अच्छा वोल्यूम चल रहा हो।

कभी भी न करें ऑप्शन ट्रेडिंग: रिटेल ट्रेडर को यह भी कसम खा लेनी चाहिए कि वो लालच में फंसकर कभी भी निफ्टी, बैंक निफ्टी या स्टॉक्स में ऑप्शन ट्रेडिंग नहीं करेगा। देखने में ऑप्शंस का सौदा बड़ा आसान लगता है। बढ़ने का माहौल तो कॉल ऑप्शन खरीदो और गिरने का अंदेशा हो तो पुट ऑप्शन। बस, आपका अंदाज़ सही निकल जाए तो जितना धन लगाया है उस पर कैश सेगमेंटी की तुलना में चार गुना ज्यादा रिटर्न। नफा असीमित, नुकसान सीमित। सौदा उल्टा पड़ गया तो बस आपका उतना ही धन डूबेगा जितने में आपने ऑप्शंस खरीदा है। उसी तरह जैसे 20,000 रुपए प्रीमियम देकर पांच लाख रुपए का हेल्थ बीमा कवर मिल जाता है। अस्पताल में 24 घंटे भी भर्ती हुए तो पैसा वसूल। नहीं तो गया तो 20,000 ही गया।

लेकिन व्यवहार में शेयर बाज़ार के डेरिवेटिव सेगमेंट में ऑप्शन खरीदनेवाले शत-प्रतिशत रिटेल ट्रेडर अपना प्रीमियम डुबाते हैं। इसमें कमाते वही हैं जो ऑप्शंस खरीदते नहीं, बेचते हैं। इसके लिए बड़ी पूंजी चाहिए जो रिटेल ट्रेडर के पास नहीं होती। इसलिए रिटेल ट्रेडरों को कभी भी ऑप्शन खरीदने के लालच में नहीं पड़ना चाहिए। आपको याद होगा कि साल भर पहले 20 नवंबर 2024 से सेबी ने निफ्टी में लॉट साइज़ 25 से बढ़ाकर 75 और बैंक निफ्टी में 15 स बढ़ाकर 35 कर दिया था। इससे इनमें सौदे घटने लगे तो स्टॉक एक्सचेंजों और ब्रोकरों के धंधे पर नकारात्मक असर पड़ा। अब सेबी ने 28 अक्टूबर 2025 से निफ्टी का लॉट साइज़ 75 से घटाकर 65 और बैंक निफ्टी में 35 से घटाकर 30 कर दिया है। यह रिटेल ट्रेडरों को ट्रैप करने का झांसा है। इसमें आपको कतई नहीं पड़ना चाहिए और ऑप्शंस ट्रेडिंग से तौबा कर लेनी चाहिए।

खतरनाक ट्रैप: असल में यह बड़ा खतरनाक ट्रैप है। अनिश्चितता में फंसा शेयर बाज़ार अभी जिस तरह कभी गिर तो कभी उठ रहा है, उसमें तलहटी और उभार की भविष्यवाणी करना बड़ा आसान लगता है। लेकिन इतने सारे अनजान कारक सक्रिय होते हैं कि कोई भविष्यवाणी काम नहीं करती। ऐसे में सतर्क रहते हुए सक्रियता घटाने के विकल्प पर गौर करना चाहिए। हालांकि बाज़ार में हमेशा ऐसे ट्रेडर होते हैं जो अनिश्चितता की थाह लेने और उससे पार पाने में कहीं ज्यादा सुलझे होते हैं। बाज़ार में सक्रिय हेजफंड फाइनेंस के पीएचडी करनेवालों से भरे पड़े हैं, क्वॉन्ट एनालिसिस से लेकर एनालिटिक्स के उस्ताद हैं जिनके पास डेटा की भरमार है। इन पर बीस नहीं पड़े तो ट्रेडिंग में मात खाना तय है। ऐसे में अनिश्चितता में रिटेल ट्रेडर के पास कुछ न करने का ही विकल्प बचता है। इसलिए कभी-कभी ट्रेड न करना भी एक लाभकारी पोजिशन होती है।

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