उपयोग से विनिमय मूल्य तक बदली हैं लक्ष्मी

घर में लक्ष्मी, खाते में धन, पर्स में नोट और धंधे में शुभलाभ लाने के दिन आ गए। दीपावली का त्योहार आ गया। लेकिन लक्ष्मी तो माया हैं और धन छाया। अच्छे-खासे कड़कते नोट कैसे महज कागज के टुकड़े बनकर रह जाते हैं, यह सच्चाई पांच साल पहले नोटबंदी समूचे भारत को दिखा चुकी है। दरअसल जिस लक्ष्मी, जिस धन को हम अपने पास लाना चाहते हैं, उसकी मूल धारणा को हमें समझना होगा। हज़ारों साल पहले जब दीपावाली का त्योहार शुरू हुआ होगा, तब लक्ष्मी का रूप गाय-बैल, घोड़ों व धान्य और सोने-चांदी से जुड़ा था, जिनकी सीधे-सीधे उपयोगिता थी। उसके बाद सदियों तक समाज बदलते-बदलते लक्ष्मी विनिमय मूल्य में बदलती चली गईं। अब सोमवार का व्योम…

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