हंसना अपने पर

बचपन से लेकर बूढ़े होने तक हम हमेशा औरों पर हंसते हैं। लेकिन जब हम अपने पर हंसना सीख जाते हैं, तभी हमारा आत्म-विकास शुरू होता है। हां, अपने पर हंसने का मतलब आत्म-दया नहीं होता।

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