जयप्रकाश के बिजली संयंत्र को मिली भूमि वापस

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जयप्रकाश एसोसिएट्स को 1380 मेगावॉट बिजली परियोजना के लिए जिले की करछना तहसील के छह गांवों में मिली 416 हेक्टेयर का आवंटन रद्द कर दिया, जबकि बारा तहसील में 1980 मेगावॉट बिजली परियोजना के लिए पांच गावों में 831 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण को खारिज करने से मना कर दिया।

हाईकोर्ट का यह फैसला बीते हफ्ते शुक्रवार को आया है। लेकिन राज्य में बदले राजनीतिक समीकरणों की रोशनी में इसे बहुत अहम माना जा रहा है। जयप्रकाश समूह पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का काफी करीबी रहा है और मायावती सरकार ने ये जमीनें अधिग्रहीत कर बिजली परियोजनाओं का आवंटन जयप्रकाश एसोसिएट्स को किया था। लेकिन 2010 से ही इस भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मुकदमेबाजी चल रही है।

कोर्ट ने कहा कि दोनों ही मामलों में अत्यावश्यक दफा को लागू करना गलत था। लेकिन उसने बारा में हुआ भूमि अधिग्रहण ‘काफी काम’ हो जाने के कारण रद्द करने से इनकार कर दिया। इस परियोजना पर असल में कंपनी अब तक लगभग 1400 करोड़ रुपए का निवेश कर चुकी है। हां, करछना में चूंकि परियोजना पर अभी तक कोई काम नहीं हुआ है, इसलिए कोर्ट ने बेझिझक उसके लिए ली गई जमीन को वापस लौटाने का फैसला दे दिया।

बारा की परियोजना के बारे में भी हाईकोर्ट ने किसानों से कहा है कि वे उचित मुआबजे के लिए सरकारी अधिकारियों के पास जा सकते हैं। करछना में जिन भी किसानों ने अभी तक कोई मुआवजा नहीं लिया है, उनकी जमीनें उन्हें वापस लौटाने का आदेश कोर्ट ने दिया है। मालूम हो कि बारा तहसील के पांच गांवों – बेवरा, बेरुई, जोरवाट, खान सेमरा व कपारी में जमीन अधिग्रहण का काम 27 जून 2007 को शुरू हुआ था। कपारी में किसानों को प्रति बीघा 2.5 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया है, जबकि बाकी चार गांवों में मुआवजे की रकम 1.25 लाख रुपए प्रति बीघा थी। किसानों का कहना है कि इतना मुआवजा पर्याप्त नहीं है।

दूसरी तरफ करछना तहसील के छह गांवों – भैतर, कचरा, कचरी, गड़वा कला, धाई व देवरी कला में भूमि अधिग्रहण का काम 19 अक्टूबर 2007 को शुरू किया गया। वहां शुरू से ही मामला काफी तनातनी का रहा है। 21 जनवरी 2011 को किसानों ने अधिकारियों से बातचीत के विफल होने के बाद तगड़ा विरोध प्रदर्शन किया था। इसके बाद जिला प्रशासन ने 570 रुपए प्रति वर्गमीटर का मुआवजा देने और विरोध प्रदर्शन करनेवाले किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने का वादा किया था। लेकिन किसानों का कहना है कि बाद में प्रशासन इन दोनों ही वादों से मुकर गया।

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