रज़िया फंस गई गुंडों में। कुछ यही हाल पिछले दिनों कूटोंस रिटेल इंडिया का रहा है। महीने भर पहले 6 सितंबर को इसका शेयर (बीएसई कोड – 532901, एनएसई कोड – KOUTONS) 318 रुपए पर था। लेकिन कुछ खिलाड़ी इसके पीछे ऐसे हाथ धोकर पड़े कि इसे 4 अक्टूबर को गिराकर 139.95 रुपए तक ले गए। कल यह 154.90 रुपए पर बंद हुआ है। महीने भर में 55 फीसदी से ज्यादा की गिरावट किसी को भी तोड़ सकती है। मजे की बात यह है कि कूटोंस के शेयर में इतनी गिरावट क्यों आई, इसका सच बीएसई या एनएसई खुद पता लगाने के बजाय कंपनी के प्रवर्तक व चेयरमैन डीपीएस कोहली से पूछ रहे हैं।
कोहली ने साफ कह दिया कि इसके पीछे ‘बियर कार्टेल’ का हाथ है। कौन इसमें शामिल हैं, इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया। लेकिन इसे धीरे-धीरे करके तोड़ा गया है, यह एकदम साफ है। पहले जुलाई में इसके तीन निदेशकों और दो वरिष्ठ अधिकारियों के छोड़कर जाने को सितंबर मध्य आते-आते हवा दी जाने लगी। फिर 30 सितंबर को इकनॉमिक टाइम्स में खबर प्लांट करवाई गई कि कंपनी पर कर्ज का बोझ बढ़कर 1300 करोड़ के पार चला गया है और कई बैंक इसको दिए कर्ज को एनपीए (गैर-निष्पादित आस्तियां) या डूबत कर्ज मानने लगे हैं। फिर क्या था! इसी बहाने मंदड़ियों ने इस स्टॉक को तोड़कर बैठा दिया।
1 अक्टूबर को कंपनी ने बाकायदा सफाई दी। अपने एक-एक कर्ज का ब्योरा दिया। बताया कि 31 मार्च तक उस पर कुल 660 करोड़ रुपए का कर्ज है। चालू वित्त वर्ष में सितंबर 2010 तक की पहली छमाही में इसमें केवल 12 करोड़ रुपए का इजाफा हुआ है। यह रिटेल उद्योग के लिहाज से सामान्य स्तर है। हां, कंपनी के कर्ज की जमानत के रूप में प्रवर्तकों ने जून 2010 की तिमाही तक अपने शेयरों का 45.78 फीसदी गिरवी रखा हुआ था जो अब बढ़कर 53.55 फीसदी हो गया है। कंपनी ने अपनी विस्तार योजनाओं की जानकारी सार्वजनिक की है।
कूटोंस रिटेल को आप जानते ही होंगे। 1991 में चार्ली क्रिएशंस के नाम से इसकी शुरुआत हुई थी। मध्य और उच्च मध्य वर्ग की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तमाम रेडीमेड गारमेंट बनाती है। कूटोंस और आउटलॉ जैसे इसके कई मशहूर ब्रांड है। देश भर में इसके अपने करीब 1400 स्टोर हैं। वैसे, पिछले साल कंपनी ने अपने 93 स्टोर बंद भी किए हैं। प्रबंधन का कहना है कि इसका मकसद कामकाज को व्यवस्थित और दुरुस्त करना है। कंपनी ने 2009-10 में 1205.45 करोड़ रुपए की आय पर 82.32 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। चालू वित्त वर्ष में जून 2010 की पहली तिमाही में उसकी आय 161.52 करोड़ व शुद्ध लाभ 5.51 करोड़ रुपए रहा है। यह अपेक्षाकृत काफी कम है। लेकिन कंपनी का दावा है कि वह मौजूदा त्यौहारी मौसम में सारी कमीबेशी पूरी कर लेगी।
वैसे, उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 24.82 रुपए है और उसका शेयर मात्र 6.24 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, जबकि इसी उद्योग की दो प्रमुख कंपनियों – पैंटालून रिटेल का पी/ई अनुपात 61.16 और शॉपर्स स्टॉप का 39.81 चल रहा है। कूटोंस रिटेल के शेयर की मौजूदा बुक वैल्यू 166.10 रुपए है। जाहिर है कंपनी के पास अच्छे खासे रिजर्व हैं। चूंकि शेयर का बाजार भाव बुक वैल्यू से नीचे चल रहा है, इसलिए इसमें किया गया निवेश फायदे का सौदा साबित होगा। वैसे भी यह शेयर ऊपर में 451 रुपए तक जा चुका है।
कंपनी की कुल चुकता पूंजी 30.55 करोड़ रुपए है। इसका 63.90 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है। एफआईआई के पास इसके 7.12 फीसदी और डीआईआई के पास 9.75 फीसदी शेयर हैं। पब्लिक के हिस्से के बाकी हिस्से में से 22.78 फीसदी शेयर छह निवेश फर्मों के पास हैं। इनमें से यूटीआई इनवेस्टमेंट के पास 8.37 फीसदी, अर्गोनॉट वेंचर्स के पास 5.65 फीसदी, फिड फंड (मॉरीशस) के पास 3.93 फीसदी, फॉर्च्यून क्रेडिट कैपिटल के पास 1.16 फीसदी, लॉयड जॉर्ज इनवेस्टमेंट बरमुडा के पास 1.49 फीसदी और इंग वैश्य लाइफ इंश्योरेंस के पास 21.8 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 15,321 है।