सारा खेल गणनाओं और सही समय पर सही सूचनाओं को पकड़ने का है। याद करें 24 जनवरी को हमने कहा था – जागरण में 10% बस 10-15 दिन में। उसके एक दिन पहले 23 जनवरी को जागरण प्रकाशन का शेयर बीएसई में 98.15 रुपए पर बंद हुआ था। हमने कहा था कि यह 110 रुपए को पार कर सकता है। कल, 7 फरवरी को हमारे लिखे को 14 दिन ही पूरे हुए और जागरण का शेयर 114.50 तक जाने के बाद 111.95 रुपए पर बंद हुआ है। 15 दिन में बंद भाव से बंद भाव तक का रिटर्न 14 फीसदी। अर्जुन की तरह तीर ठीक निशाने पर मारनेवाला आखिर कौन-सा धनुर्धर है जो इतने ऐलानिया तौर पर आपको मुफ्त में धन बनाने के सूत्र दे रहा है? तमाम फर्में ऐसी सेवाओं के लिए साल भर के दस से बीस हज़ार रुपए ले रही हैं। लेकिन यहां माल मुफ्त में मिल रहा है तो किसी को कद्र ही नहीं! इसलिए जल्दी ही हम इस तरह शॉर्ट टर्म में नोट बनाने के मौकों की जानकारी मुफ्त में देना बंद कर रहे हैं। हम भी इसके लिए साल के पांच-दस हजार लेना शुरू करेंगे। तब आपको उसका असली भाव पता चलेगा। वैसे, किसी भी वस्तु या सेवा का भाव तो आप ही तय करते हैं।
असल में जब तक लोगबाग किसी चीज को पूछते हैं, तभी तक उसे भाव मिलता है। नज़रों से गिरा दिया तो समझ लीजिए कि गया रसातल में। शेयर बाजार में भी यही होता है। किसी समय राजनीतिक कनेक्शन वाली कंपनियों को बड़े ही महिमामंडित अंदाज में देखा जाता था। किसी बड़े राजनेता से जुड़ाव कंपनी व उसके शेयर के लिए बड़ा सकारात्मक माना जाता था। लेकिन पिछले दो सालों में, खासकर अण्णा हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद निवेशकों ने राजनेताओं से वास्ता रखनेवाली कंपनियों को भाव देना बंद कर दिया है। इस बात की पुष्टि पिछले महीने जारी ब्रोकरेज फर्म एम्बिट कैपिटल की एक रिपोर्ट से भी हुई है जिसमें बताया गया है कि साल 2011 में राजनीतिक टांका रखनेवाली 75 लिस्टेड कंपनियों के शेयर संबंधित बाजार सूचकांक की अपेक्षा दोगुने से भी ज्यादा 49 फीसदी गिरे हैं।
राजनीतिक टांके से बंधी ऐसी ही एक कंपनी है जयप्रकाश एसोसिएट्स। ए ग्रुप का शेयर है। बीएसई-100 और निफ्टी तक में शामिल है। जनवरी 2008 में यह 340 रुपए पर मौज कर रहा था। मार्च 2009 तक 41.13 रुपए पर आ गया तो माना गया कि यह दुनिया में छाए वित्तीय संकट का ही नतीजा है। फिर उठा तो अक्टूबर 2009 तक 180 रुपए की ऊंचाई पर पहुंच गया। इसके बाद गिरने लगा। 25 अप्रैल 2011 को 102.65 रुपए पर पिछले 52 हफ्ते का शिखर पकड़ने के बाद से यह गिरावट काफी तेज हो गई। अभी इस साल 9 जनवरी 2012 को इसने 50.45 रुपए की तलहटी पकड़ी है। हुआ यह था कि शुक्रवार 6 जनवरी को ही सेबी की यह जांच रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें कहा गया था कि जयप्रकाश एसोसिएट्स के चेयरमैन व सीईओ मनोज गौड़, उनकी पत्नी उर्वशी व भाई समीर गौड़ और कंपनी के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने 29 सितंबर से 27 अक्टूबर 2008 के दौरान इनसाइडर ट्रेडिंग की थी। सेबी ने इन लोगों पर कुल 70 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। मनोज गौड़ ने कहा है कि वे इस आदेश को सैट (सिक्यूरिटीज अपीलीय ट्राइब्यूनल) में चुनौती देंगे।
फिलहाल जयप्रकाश एसोसिट्स का दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल, 7 फरवरी 2012 को बीएसई (कोड – 532532) में 4.25 फीसदी गिरकर 74.40 रुपए और एनएसई (कोड – JPASSOCIAT) में 4.06 फीसदी गिरकर 74.40 रुपए पर बंद हुआ है। इसके फरवरी फ्यूचर्स का भाव भी 4.23 फीसदी घटकर 74.75 रुपए पर आ गया है। यह सच है कि उत्तर प्रदेश सरकार में इंजीनियर के रूप में अपना करिअर शुरू करने और 1958 में सिविल कांट्रैक्टर के रूप में धंधे में उतरने के बाद जयप्रकाश गौड़ ने अपने समूह को देश का तीसरा सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक, पनबिजली की सबसे बड़ी निजी कपनी और रीयल एस्टेट से लेकर कंस्ट्रक्शन तक में बहुत ऊपर पहुंचा दिया है। उसके पास राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में सबसे ज्यादा जमीन है। देश में फॉर्मूला-वन रेस के आयोजन का श्रेय जयप्रकाश समूह को ही जाता है। दिल्ली से आगरा तक 165 किलोमीटर के यमुना एक्सप्रेस-वे से ही समूह को 11,228 करोड़ रुपए मिले हैं। समूह 36 सालों तक इस एक्सप्रेस-वे पर टोल-टैक्स वसूलता रहेगा। उसके बाद ही इसे सरकार के हवाले करेगा।
ऐसे बहुत सारे सुरखाब के पर जयप्रकाश समूह की अगुआ कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स में लगे हैं। लेकिन राजनीति से उसकी निकटता ऐसा जोखिम बन गई है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जो कभी प्लस हुआ करता था, अब माइनस बन गया है। सभी जानते हैं कि कंपनी के मालिकों ने बीएसपी प्रमुख और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को कैसे साधकर रखा है। इन पक्षों को देखने के बाद आम निवेशक को इस कंपनी के वित्तीय आंकड़ों के भंवरजाल में उलझना ही नहीं चाहिए। बड़े लोगों का खेल है। उन्हें ही खेलने दीजिए। हम आप छोटे लोग हैं, छोटे निवेशक हैं। हमें ऐसी कंपनियों से कम से कम दस गज का फासला बनाए रखना चाहिए। वैसे भी, इसका शेयर इस समय स्टैंड-एलोन नतीजों को देखते हुए 20.55 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। कंपनी के ऊपर 44,000 करोड़ रुपए का कर्ज है। उसका ऋण-इक्विटी अनुपात 3.53 है जिसे कतई अच्छा नहीं माना जा सकता। फिर भी आप जयप्रकाश के राजनीतिक भंवर में कूदना चाहते हैं तो आपको कौन रोक सकता है!!!
हां, जिन लोगों ने इसमें पहले से निवेश कर रखा है, उन्हें मेरी सलाह है कि इसमें तब तक बने रहें, जब तक आपको 20 फीसदी का रिटर्न नहीं मिल जाता या कम से कम आपका मूलधन तो निकल जाए। उसके बाद इस कंपनी को हमेशा के लिए अलविदा बोल देना चाहिए।