अभी पिछले ही हफ्ते शनिवार, 11 फरवरी को बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) ने जीवन बीमा कंपनियों के एजेंटों के बारे में नए दिशानिर्देश जारी किए हैं और आज, 15 फरवरी को इन्हीं दिशार्निदेशों का संबंधित हिस्सा साधारण या गैर-जीवन बीमा एजेंटों पर भी लागू कर दिया। नए दिशानिर्देश 1 जुलाई 1011 से लागू होंगे। इनके अनुसार साधारण या जीवन बीमा कंपनी के कर्मचारी का कोई भी नाते-रिश्तेदार उस कंपनी का बीमा एजेंट नहीं बन सकता। नाते-रिश्तेदार में पत्नी या पति, बहन, भाई, माता-पिता, बेटे, बहुएं, बेटियां और दामाद शामिल हैं।
इरडा ने मंगलवार को साधारण बीमा कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों को भेजे गए पत्र में कहा है कि बीमा कंपनियों को एजेंट के लिए न्यूनतम बिजनेस आवश्यकता तय करनी होगी और बराबर इसकी परख करते रहना होगा कि वे इस न्यूनतम आवश्यकता को पूरा कर रहे हैं या नहीं। कंपनियों को नया दिशानिर्देश अपने एजेंटों तक पहुंचाना होगा और एजेंटों ने इस बात की पुष्टि करानी होगी कि उन्हें ये दिशानिर्देश मिल गए हैं और उन्होंने इन्हें अच्छी तरह समझ लिया है। बीमा कंपनियों को उपयुक्त सॉफ्टवेयर के जरिए निगरानी करनी होगी कि उनके एजेंट नए दिशानिर्देशों का कहां तक पालन कर रहे हैं।
ये सारे नियम जीवन बीमा कंपनियों और उनके एजेंटों पर भी लागू होंगे। साधारण बीमा पॉलिसियां अमूमन एक साल की होती हैं, इसलिए उनके रिन्यूवल में बहुत झंझट नहीं है। लेकिन जीवन बीमा पॉलिसियों के लैप्स होने से बीमा कंपनियों से लेकर एजेंटों तक को नुकसान होता है। इसलिए इरडा ने तय किया है कि अगर किसी एजेंट द्वारा बेची गई कम से कम 50 फीसदी जीवन बीमा पॉलिसियां रिन्यू नहीं होतीं तो बीमा कंपनियां उस एजेंट का कांट्रैक्ट खत्म कर देंगी। यह नियम 2011-12, 2012-13 और 2013-14 के लिए है। इसके बाद 2014-15 से न्यूनतम रिन्यू होनेवाली पॉलिसियों का अनुपात बढ़ाकर 75 फीसदी कर दिया गया है।
जानकारों का कहना है कि अभी तक बीमा एजेंट ग्राहकों को शिकार मानकर पकड़ते रहे हैं। किसी को एक बार पॉलिसी बेचकर वे नए ‘शिकार’ की तलाश में जुट जाते थे। इससे मिल-सेलिंग जमकर होती थी और ग्राहक भी पॉलिसी के सही पहलुओं से वाकिफ होने के बाद प्रीमियम देना बंद कर देता था। इरडा ने ‘परसिस्टेंसी रेशियो’ तय करके इस प्रवृति को रोकने की कोशिश की है। मतलब साफ है कि बीमा एजेंट 2013-14 तक अगर अपनी बेची कम से कम आधी पॉलिसियां रिन्यू नहीं कर पाता तो बीमा कंपनी उसे काम से हटा देगी। 2014-15 से उसे कम से कम तीन चौथाई पॉलिसियों का रिन्यूवल सुनिश्चित करना पड़ेगा।
इस बारे में जीवन बीमा कंपनियों के साझा मंच जीवन बीमा परिषद (लाइफ इंश्योरेंस काउंसिल) के सीईओ एस बी माथुर का कहना है कि वास्तव में बीमा एजेंट का काम लोग अमूमन साइड-बिजनेस के रूप में करते हैं। नए दिशानिर्देशों को फौरन लागू कर देने से लोग बीमा एजेंट बनने के प्रति हतोत्साहित होंगे। उन्होंने बताया कि वैसे भी बीमा एजेंटों की संख्या साल भर के भीतर 29 लाख से घटकर 27 लाख पर आ गई है।
अगर कोई एजेंट काम छोड़ जाता है या उसका लाइसेंस रद्द हो जाता है तो उसके द्वारा बेची गई जीवन बीमा पॉलिसियों को ‘अनाथ’ करार दिया जाता है। इरडा ने ऐसी अनाथ पॉलिसियों के बारे में नया प्रावधान किया है कि उन्हें नए एजेंट के सुपुर्द कर दिया जाएगा और रिन्यूनल प्रीमियम के कमीशन का आधा हिस्सा उसे मिलेगा। बाकी आधा हिस्सा पुराने एजेंट को मिलेगा या नहीं, इस बारे में इरडा का सर्कुलर स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहता।