इस्पात इंडस्ट्रीज को कर्ज और घाटे के बोझ से मुक्त होने की राह मिल गई और जेएसडब्ल्यू स्टील इस सौदे के बाद मार्च 2011 तक देश में स्टील की सबसे बड़ी उत्पादन बन जाएगी। उसकी सालाना उत्पादन क्षमता हो जाएगी 143 लाख टन यानी सेल से भी ज्यादा। टाटा समूह भी यह गौरव नहीं हासिल कर सका। आर्सेलर को खरीदनेवाले लक्ष्मी निवास मित्तल भी भारत में यह हैसियत नहीं हासिल कर सके। उनके ही भाइयों – प्रमोद मित्तल और विनोद मित्तल ने अपनी कंपनी उन्हें बेचने के बजाय जेएसडब्ल्यू स्टील को बेच दी।
शायद इसी को ध्यान में रखते हुए जेएसडब्ल्यू स्टील के मुखिया सज्जन जिंदल ने इस अधिग्रहण को भारतीय कॉरपोरेट जगत की नई शुरुआत बताई क्योंकि इसमें परिवार के बजाय प्रोफेशनल पक्षों को तरजीत दी गई है। पूरा सौदा 2157 करोड़ रुपए का है। इस रकम से जेएसडब्ल्यू स्टील इस्पात इंडस्ट्रीज के 188.66 करोड़ नए शेयर खरीदेगी जिसमें प्रति शेयर मूल्य 19.85 रुपए रखा गया है। ये शेयर वरीयता आधार पर जारी किए जाएंगे। पूरी डील के बाद कंपनी में जेएसडब्ल्यू स्टील की इक्विटी हिस्सेदारी 41.29 फीसदी और मौजूदा प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 26 फीसदी रहेगी। आगे इस्पात इंडस्ट्रीज का नाम बदलकर जेएसडब्ल्यू इस्पात स्टील कर दिया जाएगा।
सज्जन जिंदल ने मंगलवार को आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में कायदे से बताया है कि इस सौदे से कैसे दोनों पक्षों को फायदा होगा। लेकिन इस घोषणा से अलग शेयर बाजार में कुछ ऐसा चलता रहा जिससे लगता है कि लिस्टेड कंपनियों से शेयरधारकों को जोड़ने के काम में जो निष्पक्षता व पारदर्शिता बरती जानी चाहिए, वह नदारत है। खासकर इस्पात इंडस्ट्रीज के शेयरों में ऐसा साफ तौर पर देखा जा सकता है। बाजार के कुछ जानकार तो इस्पात इंडस्ट्रीज में इनसाइडर ट्रेडिंग होने का आरोप लगा रहे हैं।
उनका कहना है कि सोमवार 20 दिसंबर को जेएसडब्ल्यू से डील की खबर आने के काफी पहले इस्पात के शेयर 10 फीसदी बढ़ गए थे। लेकिन अंदर की खबर रखनेवाले 9 दिसंबर से ही इसमें खरीद किए जा रहे थे। 9 दिसंबर को यह शेयर 17.80 रुपए पर डोल रहा था। अगले ही दिन यह 5.3 फीसदी बढ़कर 18.80 रुपए पर जा पहुंचा। 13 दिसंबर को फिर इसमें 4.81 फीसदी की बढ़त हुई। अगले दिन जब बाजार में गिरावट का आलम था, इस्पात इंडस्ट्रीज का शेयर फिर 5.3 फीसदी बढ़ गया। 15 दिसंबर को भी तमाम शेयरों के धराशाई होने के बावजूद इस्पात बढ़ गया। 16 दिसंबर को फिर यह 4.5 फीसदी उछल गया।
इसके बाद 20 दिसंबर को बाजार खुला तो सुबह से ही सुगबुगाहट थी कि जेएसडब्ल्यू स्टील इस्पात इंडस्ट्रीज को खरीद सकता है। लेकिन इससे पहले तक बाजार में ऐसी कोई खबर नहीं थी। हां, कयासबाजी तो महीनों से चल रही थी कि इसे लक्ष्मी मित्तल खरीद सकते हैं या सेल की भी इसमें दिलचस्पी है। लेकिन अचानक 9 दिसंबर के बाद भारी वोल्यूम के साथ इस्पात इंडस्ट्रीज के शेयरों के बढ़ने का रहस्य अंदर की गोपनीय जानकारी का लीक होना ही हो सकता है। एनम सिक्यूरिटीज ने यह डील संपन्न कराई है और पिछले दो हफ्तों में ही इसे अंजाम पर पहुंचाया गया है। सेबी को निश्चित रूप से इस बात की जांच करनी चाहिए कि क्या सौदे की जानकारी बाजार के चुनिंदा लोगों को लीक कर दी गई थी या नहीं।
कुछ दूसरे बाजार जानकारों ने अपनी पहचान जाहिर न करते हुए इस तरह इनसाइडर ट्रेडिंग से जुड़ी व्यवस्थागत खामी की तरफ इशारा किया है। बता दें कि इस्पात इंडस्ट्रीज ए ग्रुप में शामिल कंपनी है। इसलिए उसमें डेरिवेटिव सौदे भी होते हैं। इस्पात को पिछले दो-तीन महीनों में कम से कम दस बार 95 फीसदी के प्राइस बैंड में डाला गया है। ऐसा होने पर इसमें खरीद के कोई नए सौदे नहीं हो पाते। जैसे, 20 दिसंबर को ही एनएसई ने अपने सर्कुलर में कहा था कि इस्पात इंडस्ट्रीज ने 95 फीसदी मार्केट वाइड पोजिशन लांघ ली है, इसलिए उसमें तब तक नए सौदे नहीं हो सकते जब तक ओपन इंटरेस्ट घटकर 80 फीसदी पर नहीं आ जाता।
पिछले दिनों जब रिश्वतखोरी और आईबी रिपोर्ट का हल्ला मचा, तब इस्पात इंडस्ट्रीज गिरकर 15.50 रुपए पर आ गया। फिर भी 95 फीसदी का प्राइस बैंड नहीं खोला गया। मुश्किल यह है कि ऐसा होने पर कोई इसमें फ्यूचर पोजिशन नहीं ले सकता और अगर आप ऐसा करते हैं तो एक्सचेंज भारी जुर्माना लगा देते हैं। पिछले दो हफ्तों में इस्पात का शेयर 15.50 रुपए से बढ़ते-बढ़ते सोमवार को 26.15 रुपए पर जा पहुंचा। लेकिन भारी वोल्यूम और 68.71 फीसदी की बढ़त के बावजूद प्राइस बैंड नहीं खोला गया।
मंगलवार को जब जेएसडब्ल्यू और इस्पात ने संयुक्त रूप से घोषित किया है कि सौदा 19.85 रुपए प्रति शेयर के मूल्य पर हुआ तो इस्पात का शेयर एकबारगी गिरकर 20.50 पर पहुंच गया। हालांकि आखिर में बंद हुआ 15.03 फीसदी की गिरावट के साथ 21.20 रुपए पर। जानकार बताते हैं कि घोषणा के बावजूद प्राइस बैंड का न खोला जाना ही दिखाता है कि इस्पात इंडस्ट्रीज के स्टॉक पर कुछ लोगों का कब्जा है क्योंकि अमूमन होता यह है कि शेयर के गिरने पर प्राइस बैंड खोल दिया जाता है ताकि लांग पोजिशन को काटा जा सके। इसलिए इस्पात इंडस्ट्रीज के मामले में इनसाइडर ट्रेडिंग और शेयर मूल्यों के साथ धांधली की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।