लोकसभा में मुद्रास्फीति या महंगाई पर बहस जारी है। उम्मीद है कि गुरुवार को एक प्रस्ताव पारित कर मुद्रास्फीति पर चिंता जताई जाएगी और सरकार से कहा जाएगा कि वह कीमतों पर काबू पाने के लिए कुछ और कदम उठाए। लेकिन बुधवार को सांसदों ने महंगाई के मसले पर जिस तरह शब्दों की तीरंदाजी दिखाई है, उसने साबित कर दिया है कि हमारे सांसद आर्थिक मामलों में कितने ज्यादा निरक्षर हैं। वह भी महंगाई जैसे मसले पर जो जन-जन से जुड़ा हुआ है। और वह भी तब, जब यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में संसद में महंगाई पर बारहवीं बार चर्चा हो रही थी।
मुद्रास्फीति की वजहों पर गौर करने के बजाय सांसद राजनीति ही करते नजर आए। बीजेपी ने अच्छा किया, एनडीए ने अच्छा किया था, बीएसपी की बहन मायावती कितनी महान हैं, पश्चिम बंगाल में सत्ता संभालते ही तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने क्या कमाल किया है – यही बखान होता रहा। इस बखान के साथ-साथ यह नारा कि जब-जब कांग्रेस आई है, कमरतोड़ महंगाई लाई है।
जेडी-यू के वरिष्ठ नेता शरद यादव पश्चिम की बाजार अवधारणा को गलत और भारतीय बाजार की अवधारणा को सही साबित करते रहे। वे महंगाई पर चर्चा के दौरान न जाने कहां से गीत-संगीत और नाच की बात उठा ले आए। एक तरफ डीजल व गैस की महंगाई का विलाप करते रहे। दूसरी तरफ बोले कि सरकार डीजल पर प्रति लीटर 3.80 रुपए की सब्सिडी टेलिकॉम टावरों, बड़े-बड़े होटलों और कार मालिकों को क्यों दे रही है। इसे फौरन खत्म कर देना चाहिए। उन्हें यह तक जानने की जरूरत नहीं महसूस हुई कि एक दिन पहले 2 अगस्त को ही पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी ने राज्यसभा में बताया था कि डीजल पर इस समय सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों (इंडियन ऑयल, बीपीसीएल, एचपीसीएल) को प्रति लीटर 6.06 रुपए की अंडर-रिकवरी हो रही है तो इसमें और 3.80 रुपए की सब्सिडी में कोई वास्ता है भी कि नहीं।
बहस के दौरान लालू के राष्ट्रीय जनता दल के सांसद रघुवंश प्रसाद ने तो यहां तक कह दिया कि यह सारी बहस सिर्फ दिखाने के लिए है। कांग्रेस और भाजपा में पहले ही इसे लेकर समझौता हो गया है। उन्होंने मीडिया में आ रही खबरों का हवाला देकर आरोप लगाया कि सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी बीजेपी ने समझौता कर लिया है। दोनों पार्टियां अपना फायदा देखते ही एक हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि सरकार आम जनता की जरूरत की चीजें महंगी करती जा रही है और विलासिता के सामान सस्ता कर रही है।
बीएसपी के एक सांसद ने खुलासा किया कि सरकार ने 2005 से 2011 के बीच कॉरपोरेट क्षेत्र को 21 लाख करोड़ रुपए की टैक्स छूट दी है, जिसके चलते महंगाई आई है। पता नहीं कि वे इतना जबरदस्त आंकड़ा कहां से ले आए? कुछ अन्य सांसदों ने चुनावों में बढ़ते खर्च और स्विस बैंकों में जमा कालेधन को महंगाई की वजह बता डाली।
सुबह लोकसभा में बीजेपी की ओर से यशवंत सिन्हा ने बहस की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि सरकार चाहे तो दो महीने में महंगाई खत्म हो सकती है, लेकिन नहीं हो रही है। इसका जवाब देते हुए सलमान खुर्शीद ने कहा कि दो महीने में महंगाई कम होने लगेगी। यशवंत सिन्हा ने कहा कि सरकार को सांसदों की आवाज़ सुननी चाहिए और महंगाई पर रोक लगाने के उपायों पर अमल करना चाहिए।
सरकार का पक्ष रखते हुए केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद कुछ ठोस बात नहीं कह सके। उन्होंने कहा, “सरकार को उम्मीद थी कि यशवंत सिन्हा मार्गदर्शन करेंगे, लेकिन बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हमें उम्मीद थी कि विपक्ष हमें कुछ सुझाव देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लेकिन मुझे लगता है कि भविष्य में हमें अच्छे सुझाव मिलेंगे।” उन्होंने ‘हमारे पास मां है’ वाला फिल्मी डायलॉग बोलते हुए यह कह कर, ‘हमारे पास डॉ. मनमोहन सिंह हैं’, गंभीर मुद्दे पर चल रही बहस को एकदम हल्का कर दिया। बाद में इसे पर चुटकी लेते हुए शरद यादव ने कहा कि उनके पास मां है तो हम महतारी नहीं तो किससे फरियाद करेंगे। मनमोहन सिंह उस वक्त लोकसभा से उठकर चले गए थे। लंच के बाद सदन में सांसदों की संख्या भी काफी कम रह गई थी।
बीजेपी सांसद और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की बातों में भी सार कम और नारेबाजी ज्यादा नजर आई। उन्होंने एशियाई विकास बैंक की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि खाने पीने की जरूरी चीजों के महंगा हाने के कारण देश में और पांच करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं। उन्होंने कहना था कि आज सदन से यह संदेश जाना चाहिए कि दो महीने में सरकार महंगाई पर काबू पा लेगी। इसके लिए कल से ही उपाय शुरू हो जाएं। हर फसल के बाद कृषि मंत्री यह ऐलान करते हैं कि देश में बंपर कृषि उत्पादन हो रहा है। सरकारी गोदामों में साढ़े छह करोड़ टन अनाज रखा हुआ है। लेकिन इसके वितरण की सही व्यवस्था नहीं है। सरकार गोदामों से अनाज मुक्त करे तो खुले बाज़ार में अनाज की कीमतें जरूर गिरेंगी। सरकार घाटे के डर की वजह से ऐसा नहीं कर रही है। क्या लोग भूखों मरे और सरकार नुकसान की चिंता करती रहे?
सीपीएम के सांसद के पी करुणाकरन ने कहा कि महंगाई की मार से देश की अधिकांश जनता त्रस्त है। महंगाई से चारों ओर त्राहिमाम मचा है। वहीं शिवसेना के अनंत गीते बोले कि देश की 70 करोड़ से अधिक आबादी महंगाई की चपेट में है और हर कोई इससे निजात चाहता है। अन्नाद्रमुक के एम थम्बीदुरई को कुछ नहीं सूझा तो बोले कि पिछले पांच साल में सोने के मूल्य में हुई बढोतरी से साफ है कि मुद्रास्फीति किस ऊंचाई तक पहुंच चुकी है।
लेकिन अच्छी बात यह है कि कुछ सांसद इस बार महंगाई पर चर्चा के दौरान रेपो रेट, रिजर्व बैंक और ब्याज दर की भी बात करते हुए दिखे जो संकेत है कि वे इस मसले पर सिर्फ हवाबाजी नहीं करना चाहते, बल्कि समझना भी चाहते हैं। हालांकि बुधवार की बहस ने बहुत हद तक इसी दुखद सच को उजागर किया है कि महंगाई हमारे सांसदों के लिए महज एक राजनीतिक नारा है। अगर यह आर्थिक समस्या है भी तो उन्हें नहीं पता कि इसका ओरछोर कहां है। हाथी है, लेकिन अंधों की तरह वे कभी इसे पूंछ, कभी सूड़ तो कभी पैर समझते रहे। सरकार खुश है कि विपक्ष के तीर निशाने से बहुत-बहुत दूर हैं।
वैसे इस मसले पर दिल्ली के प्रमुख संस्थान एनआईपीएफपी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंज पॉलिसी) के अर्थशास्त्री एन आर भानुमूर्ति का कहना है, “संसद में हो रही बहस यह दिखाती है कि मुद्रास्फीति अब राष्ट्रीय मुद्दा बन गई है और बढ़े हुए दाम आम आदमी पर चोट कर रहे हैं।” लेकिन खास आदमी, यानी हमारे सांसद इसकी वजह नहीं समझेंगे तो इस पर क्या खाक कानून बनाएंगे वे?