पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी बराबर कोशिश कर रही है कि इक्विटी डेरिवेटिव्स को भयंकर सट्टेबाज़ी की गिरफ्त से निकालकर कैश सेगमेंट के रिस्क को संभालने का बेहतर ज़रिया बना दिया जाए। इसके लिए उसने नवंबर 2024 से चल रही पहल के साथ ही 29 मई 2025 से कुछ नए नियम लागू किए हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि इक्विटी डेरिवेटिव सेगमेंट (ईडीएस) में व्यक्तिगत ट्रेडरों के उमड़ने और घाटा खाने के क्रम पर कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा। बीते वित्त वर्ष 2024-25 में इस सेगमेंट में सक्रिय 96 लाख व्यक्तिगत ट्रेडरों में से 91% ट्रेडरों को घाटा उठाना पड़ा और उनका सम्मिलित शुद्ध घाटा ₹1,05,603 लाख करोड़ रहा है। यह कोई छोटी-मोटी राशि नहीं है। अंधी लालच और सट्टेबाज़ी में डूबी यह विशाल राशि कायदे के निवेश और पूंजी निर्माण में लग सकती थी। यह सिलसिला पिछले कई सालों से जारी है। वित्त वर्ष 2021-22 से लेकर 2024-25 तक के तीन साल में ईडीएस की लौ पर टूट रहे व्यक्तिगत ट्रेडरों की संख्या 31% की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ते हुए 42.7 लाख से 96 लाख पर पहुंच चुकी है। वो भी तब, जब 2021-22 में इनमें से 90.2%, 2022-23 में 91.7%, 2023-24 में 91.1% और 2024-25 में 91% ट्रेडरों ने घाटा उठाया है। इस दौरान प्रति ट्रेडर घाटा ₹95,517 से बढ़कर ₹1,10,069 हो चुका है। क्या इसे रोका नहीं जा सकता? अब मंगलवार की दृष्टि…
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