क्या सचमुच भारत की विकासगाथा को कोई आंच नहीं आई है और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) नाहक हमारे शेयर बाज़ार से भागे जा रहे हैं? आज की हकीकत यह है कि पिछले दस सालों में भारत की विकासगाथा अडाणी व अम्बानी जैसे चंद उद्योगपतियों और सरकार से दलाली खा रहे या सत्ताधारी दल को चंदा खिला रहे धंधेबाज़ों तक सिमट कर रह गई है। इस विकासगाथा में देश में सबसे ज्यादा रोज़गार देनेवाले कृषि और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र किनारे कर दिए गए हैं। देश के निर्यात में सबसे ज्यादा योगदान और बड़े उद्योगों को सप्लाई चेन उपलब्ध करानेवाले लघु, सूक्ष्म व मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को कमर तोड़ कर बैठा दिया गया है। राजनीति से लेकर नौकरियों तक में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार सिर चढ़कर बोल रहा है। कॉरपोरेट क्षेत्र में पस्ती और डर का आलम है। अब यह दुर्दिन देखने को नहीं बचे जानेमाने उद्योगपति राहुल बजाज कुछ साल पहले यह डर खुलकर जाहिर कर चुके हैं। मूल्य-खोज का साधन माना जानेवाला शेयर बाज़ार धांधली और भावों से छेडछा़ड़ का अड्डा बन गया है। अन्यथा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह यह नहीं कहते कि लोकसभा चुनावों के नतीजों के फौरन बाद शेयर बाज़ार तेजी का रिकॉर्ड तोड़ देगा। अब मंगलवार की दृष्टि…
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