अर्थव्यवस्था का दूरगामी नजरिया अच्छा हो और कंपनी अच्छी हो तो बाजार का पिटना बड़ा अच्छा होता है क्योंकि इस चक्कर में अच्छी कंपनियों के शेयर सस्ते में मिल जाते हैं। किसी सेक्टर का डाउनग्रेड किया जाना भी कभी-कभी अच्छा होता है क्योंकि सेक्टर के बीच भी अच्छी कंपनियां होती हैं। यहां संदर्भ है बैंकिंग सेक्टर का है और कंपनी है इंडियन बैंक। इंडियन बैंक का शेयर पिछले गुरुवार से इस गुरुवार के बीच 12.45 फीसदी का झटका खा चुका है। 28 अप्रैल को यह ऊपर में 254.15 रुपए पर था, जबकि 5 मई को नीचे में 222.50 तक चला गया।
हालांकि कल वो बीएसई (कोड – 532814) में 2.95 फीसदी गिरकर 224.05 रुपए और एनएसई (कोड – INDIANB) में 2.28 फीसदी गिरकर 224.85 रुपए पर बंद हुआ है। आपको याद ही होगा कि मौद्रिक नीति आने के एक दिन पहले 2 मई को मॉरगन स्टैनले ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की पूरी श्रेणी को ही डाउनग्रेड कर दिया था। कहा था कि इनके ब्याज मार्जिन दबाव में हैं। एसबीआई, पीएनबी, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक, कॉरपोरेशन बैंक और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में से किसी को ओवरवेट से अंडरवेट तो किसी को इक्वलवेट बता डाला। वहीं निजी क्षेत्र के खास बैंकों – आईसीआईसीआई बैंक व एचडीएफसी बैंक को टॉप पिक्स में शुमार रखा।
इस समय एचडीएफसी बैंक 25.9 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है और आईसीआईसीआई बैंक 19.4 के पी/ई अनुपात पर, जबकि देश का सबसे बड़ा बैंक एसबीआई 13.4 के पी/ई पर है। पीएनबी फिलहाल 7.4, बैंक ऑफ बडौदा 11.1, बैंक ऑफ इंडिया 12.7, यूनियन बैंक 7.3, कॉरपोरेशन बैंक 5.8 और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स 6.4 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहे हैं। सीधी-सी बात है कि सरकारी बैंकों का व्यापक तंत्र है और उनमें आम लोगों का भरोसा है। इसलिए इनको कासा (चालू व बचत खाता) डिपॉजिट ज्यादा मिलेगी जो बैंकों के लिए सबसे सस्ता फंड का स्रोत है। दूसरी तरफ हाई-फाई निजी क्षेत्र के बैंकों के खर्चे बहुत हैं और उनके धन का स्रोत महंगा है।
ऐसे में कोई भी मॉरगन स्टैनले की चालाकी समझ सकता है। कमजोर को मजबूत बताना और मजबूत को कमजोर बताने से उसका कोई खास स्वार्थ सिद्ध होता होगा। असल में हमें बाजार में किसी न किसी रूप में सक्रिय फर्मों की संस्तुतियों को हमेशा सावधानी से लेना चाहिए क्योंकि इनके पीछे ‘उनका धंधा’ होता है। इंडियन बैंक का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) वित्त वर्ष 2010-11 में 38.79 रुपए रहा है। इसके हिसाब से इसका शेयर अभी 5.78 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। बैंक की प्रति शेयर बुक वैल्यू 184.44 रुपए हैं। मुमकिन है कि अगले कुछ दिनों में इसका शेयर और गिर जाए। लेकिन हमारा मानना है कि इसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लिया जा सकता है।
बैंक ने कल ही घोषणा की है कि वह अपना एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर) जुलाई-अगस्त तक लाने जा रहा है। इसके तहत वो 10 रुपए अंकित मूल्य के 6.14 करोड़ नए शेयर जारी करेगा। अभी उसकी इक्विटी 429.77 करोड़ रुपए है जिसमें भारत सरकार की हिस्सेदारी 80 फीसदी है। एफपीओ के बाद इंडियन बैंक की इक्विटी 491.17 करोड़ रुपए हो जाएगी और उसमें सरकार की हिस्सेदारी घटकर 70 फीसदी हो जाएगी। बैंक इस एफपीओ के लिए जल्द ही सेबी के पास डीआरएचपी (ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस) दायर कर देगा।
बहुत संभव है कि एफपीओ में बाजार मूल्य से कम पर बैंक के शेयर जारी किए जाएं क्योंकि सरकार की नीति ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर बाजार में खींचने की है। इसलिए इसके एफपीओ में निवेश का इंतजार करना चाहिए। हालांकि अब भी इसका शेयर सस्ता है। लेकिन एफपीओ में मूल्य आकर्षक रहेगा तो उसके लिए धन बचाकर रखना चाहिए। आप में से कुछ लोगों को याद होगा कि करीब चार साल पहले फरवरी 2007 में इंडियन बैंक का आईपीओ आया था प्रति शेयर 91 रुपए मूल्य पर। पिछले 52 हफ्ते में बैंक के शेयर का न्यूनतम स्तर 197 रुपए (9 फरवरी 2011) और उच्चतम स्तर 316.50 रुपए (7 अक्टूबर 2010) रहा है।
खास बात नोट करने की है कि जिन्होंने इंडियन बैंक के शेयरों में अक्टूबर 2010 में निवेश किया होगा, वे अभी रो रहे होंगे क्योंकि सात महीने में उनकी 29 फीसदी पूंजी स्वाहा हो गई है। वहीं फरवरी 2007 में निवेश करनेवालों की पूंजी फरवरी 2011 के न्यूनतम स्तर पर भी 116 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुकी है। यह होता है शॉर्ट टर्म और लांग टर्म का अंतर। फंडामेंटल स्तर पर मजबूत शेयरों में निवेश से अच्छा रिटर्न जरूर मिलता है, लेकिन महीने नहीं, इसमें कई साल लगते हैं।
सोचिए, इंडियन बैंक में ही आप एफडी में पैसा लगाते तो 10 फीसदी ब्याज की दर से भी चार साल में आपके 100 रुपए 146.41 रुपए बनते, वहीं इंडियन बैंक के शेयर में आपके 100 रुपए चार साल में कम से कम 216 रुपए हो जाते। यह है फर्क एफडी और शेयर का। बैंक वही है। प्रपत्र बदल गया तो प्रतिफल बदल गया।