दुनिया के आर्थिक हालात स्थिर हो रहे हैं। ऐसे में उम्मीद है कि भारत की आर्थिक विकास दर चालू वित्त वर्ष 2012-13 में 7 फीसदी और इसके अगले साल 2013-14 में 7.5 फीसदी पर पहुंच जाएगी। एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने बुधवार को जारी अपने सालाना प्रकाशन – एशियन डेवलपमेंट आउटलुक 2012 में यह अनुमान जताया है। चीन की आर्थिक विकास दर के लिए एडीबी का अनुमान 2012 में 8.5 फीसदी और 2013 में 8.7 फीसदी का है। बीते साल 2011 में चीन की आर्थिक विकास दर 9.2 फीसदी रही है।
एडीबी ने भारत के बारे में कहा कि यहां मजबूत आर्थिक निष्पादन इस बात पर निर्भर करता है कि देश आर्थिक सुधारों के एजेंडे को कितनी मजबूती से आगे बढाता है और निवेश में आड़े आ रहे मुद्दों को कैसे सुलझाता है। मालूम हो कि बीते वित्त वर्ष 2011-12 में भारत की विकास दर अग्रिम अनुमान 6.9 फीसदी का है, जबकि इससे पिछले साल 2010-11 में यह 8.4 फीसदी रही थी। यह बात भी नोट करने की है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 16 मार्च को पेश बजट में 2012-13 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.6 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया है। रिजर्व बैंक अगले हफ्ते 17 अप्रैल को सालाना मौद्रिक नीति में आर्थिक विकास का अपना अनुमान पेश करेगा।
एडीबी की सालाना आउटलुक के मुताबिक, भारत में चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति की औसत दर 7 फीसदी और अगले वर्ष 2013-14 में 6.5 फीसदी रह सकती है। इस आशा के पीछे सामान्य मानसून और वैश्विक बाजार में जिंसों की कीमतों में स्थिरता को मानकर चला गया है। रिपोर्ट का कहना है कि 2012-13 में भारत का निर्यात 14 फीसदी बढ़ सकता है। बाहर से धन का आगम बढ़ सकता है। इसलिए चालू खाते का घाटा 2012-13 में जीडीपी का 3.3 फीसदी रह सकता है। 2011-12 में दिसंबर 2011 तक के नौ महीनों में यह 4.3 फीसदी के चिंताजनक स्तर पर रहा है।
हालांकि एडीबी का मानना है कि भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में खास तेजी आने के आसार नहीं हैं। लेकिन विकसित देशों में ब्याज दर काफी कम होने से भारत विदेशी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) से अच्छी-खासी रकम ले सकता है। इस तरह हुए विदेशी पूंजी के प्रवाह से भारत का चालू खाते का घाटा कम होगा।
वैसे, एडीबी का कहना है कि एशिया की तेज आर्थिक वृद्धि स्थिरता के लिए चुनौती बन सकती है क्योंकि यहां अमीर और गरीब के बीच की खाईं बढ़ती जा रही है। चीन, भारत और इंडोनेशिया में विषमता में काफी बढ़ोतरी देखी गई है। ज्यादातर एशियाई देशों में आबादी के कुल पांच फीसदी सबसे अमीर लोगों के खाते में ही कुल खर्च का 20 फीसदी हिस्सा आता है।
एडीबी ने गिन्नी कोफिसिएंट के आधार पर विषमता के अंतर को मापा है। यह आंकड़ा जहां जितना ज्यादा होता है, वहां विषमता उतनी ही अधिक होती है। चीन में गिनी कोफिसिएंट 2010 में बढ़ कर 43 हो गया जबकि 1990 के दशक में यह 32 था। भारत के लिए यह आंकड़ा इस अवधि में 33 से बढ़ कर 37 हो गया। इंडोनेशिया में यह वृद्धि 29 से 39 की रही है।