रिजर्व बैंक से लेकर वित्त मंत्रालय तक पिछले कई सालों से वित्तीय समावेश का ढिढोरा पीट रहा है। लेकिन आंकड़ों और घोषणाओं से परे विश्व बैंक की एक ताजा सर्वे रिपोर्ट कुछ और ही हकीकत बयां करती है। बताती हैं कि हम अब भी दुनिया से कितना पीछे हैं। विश्व बैंक की तरफ से कराए गए इस अध्ययन से पता चलता है कि भारत में 35 फीसदी लोगों के पास ही बैंक खाते हैं, जबकि दुनिया का औसत 50 फीसदी और विकासशील देशों तक का औसत 41 फीसदी है।
दूसरी तरफ सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में 8 फीसदी लोगों ने पिछले 12 महीनों के दौरान किसी न किसी औपचारिक वित्तीय संस्था से कर्ज ले रखा है। यह विकासशील देशों के औसत के लगभग बराबर है और दुनिया के 9 फीसदी औसत से थोड़ा ही कम है। विश्व बैंक ने दुनिया के 148 देशों में यह सर्वेक्षण साल भर पहले कराया था। लेकिन इसके नतीजे अभी जारी किए गए हैं। इस अध्ययन का मकसद दुनिया भर में वित्तीय समावेश की असली स्थिति का पता लगाना था। इसके तहत दुनिया भर में 15 साल के ऊपर के लगभग डेढ़ लाख लोगों का इंटरव्यू किया गया।
भारत में यह सर्वेक्षण तीन महीनें तक अप्रैल से जून 2011 के दौरान किया गया। इसमें पूर्वोत्तर के सात राज्य शामिल नहीं थे। अन्यथा, औसत शायद और ज्यादा बिगड़ जाता। देश के बाकी राज्यों के कुल 3518 वयस्क लोगों से बातचीत की गई। इसके आधार पर भारत में वित्तीय समावेश की रिपोर्ट तैयार की गई है।
रिपोर्ट के दो लेखकों – असली डेमिरगुक-कंट और लियोरा क्लैप का कहना है, “दुनिया में अलग-अलग क्षेत्रों और आय समूहों के बीच बैंक खातों की स्थिति में काफी भिन्नता है। कुछ जगहों पर तो 22 फीसदी वयस्कों ने ही स्वीकार किया कि उन्होंने पिछले 12 महीनों में किसी न किसी औपचारिक वित्तीय संस्था में बचत की है। विश्व स्तर पर 9 फीसदी लोगों ने बताया है कि उन्होंने किसी बैंक, क्रेडिट यूनियन या माइक्रो फाइनेंस संस्था से उधार लिया है।”
भारत के बारे में कुछ और चौंकानेवाले तथ्य विश्व बैंक के इस सर्वे से सामने आए हैं। जैसे, यहां की 26 फीसदी महिलाओं ने माना है कि उनके पास बैंक या कोई वित्तीय बचत खाता है, जबकि विकासशील देशों का औसत इस मायने में 37 फीसदी और दुनिया का औसत 47 फीसदी है। विश्व बैंक की पूरी रिपोर्ट 61 पन्नों की है जिससे भारत समेत सारी दुनिया में वित्तीय समावेश की सच्चाई का पता चल सकता है।
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