देश का औद्योगिक उत्पादन अक्टूबर महीने में बढ़ने की जगह 5.10 फीसदी घट गया है। सरकार की तरफ से सोमवार को जारी आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) अक्टूबर 2011 में पिछले साल अक्टूबर की तुलना में 5.10 फीसदी घट गया है। पिछले साल अक्टूबर में आईआईपी साल भर पहले की तुलना में 11.3 फीसदी बढ़ गया था।
औद्योगिक मोर्चे पर इससे ज्यादा विकट स्थिति साल 2009 के शुरुआती तीन महीनों में ही हुई थी, जबकि जनवरी 2009 में आईआईपी 5.31 फीसदी, फरवरी 2009 में 7.23 फीसदी और मार्च 2009 में 5.19 फीसदी घट गया था। लेकिन तब इसका कारण लेहमान संकट के बाद पैदा हुआ वैश्विक वित्तीय संकट था, जबकि इस बार रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने जाने के अलावा कोई स्पष्ट वजह नहीं नजर आ रही। इसलिए अब रिजर्व बैंक पर ब्याज दरें घटाने का दबाव बढ़ गया है। माना जा रहा है कि 16 दिसंबर, गुरुवार को मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा के दौरान रिजर्व बैंक न केवल ब्याज दरों में कमी करेगा, बल्कि सिस्टम में तरलता बढ़ाने के लिए सीआरआर (बैंकों द्वारा उसके पास नकद जमा कराये जानेवाले धन का अनुपात) भी घटा देगा।
आईआईपी में इतनी कमी का अंदाजा किसी को नहीं था। ज्यादातर अर्थशास्त्री व जानकार यह तो मान रहे थे कि आईआईपी में इस बार कमी आएगी। लेकिन कमी का उनका अनुमान 0.52 फीसदी का ही था। इससे पहले सितंबर में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि का अनंतिम आंकड़ा 1.81 फीसदी का था, जिसका संशोधित अनुमान अब 1.99 फीसदी कर दिया गया है। लेकिन इससे किसी को जरा-सा भी तसल्ली नहीं हुई है।
प्रमुख ब्रोकरेज फर्म एसएमसी ग्लोबल सिक्यूरिटीज के रणनीतिकार व रिसर्च प्रमुख जगन्नाधम तुनगुंटला कहते हैं, “आईआईपी के आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि धीमापन भारतीय अर्थव्यवस्था में जड़े जमा चुका है। इसके मद्देनजर मुझे लगता है कि इस साल जीडीपी में 7 फीसदी वृद्धि दर हासिल करना बहुत-बहुत ज्यादा आशावादी अनुमान है।” सिंगापुर में कार्यरत आईएनजी की एशिया संबंधी आर्थिक रिसर्च के प्रमुख टिम कॉनडॉन के मुताबिक, “यह हमारी अपेक्षा से कहीं ज्यादा बदतर आंकड़े हैं। करीब दो साल से कसी जा रही मौद्रिक नीति का असर अब स्पष्ट दिखने लगा है।”
औद्योगिक उत्पादन के घटने की गूंज संसद में भी सुनाई पड़ी। राज्यसभा में विपक्ष और बीजेपी के नेता अरुण जेटली ने कहा कि सबसे ज्यादा चिंता की बात अक्टूबर 2011 में पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन सूचकांक में आई 25.5 फीसदी की भयंकर कमी है। यह सूचकांक अक्टूबर 2010 में 306.6 अंक था, जबकि अक्टूबर 2011 में 228.4 दर्ज किया गया है। जेटली का कहना था कि इसका असली असर पूरे औद्योगिक क्षेत्र पर अगले पांच-छह महीनों में नजर आएगा। पिछले साल अक्टूबर में पूंजीगत वस्तुओं का सूचकांक 21.1 फीसदी बढ़ा था।
लेकिन आईएनजी के अर्थशास्त्री टिम कॉनडॉन कहते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की कमान अब मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के बजाय सेवा क्षेत्र में है। इसलिए हो सकता है कि रिजर्व बैंक शुक्रवार को ब्याज दरों में यथास्थिति बनाए रखे। पर आईआईपी के आंकड़ों ने उस पर दबाव तो बढ़ा ही दिया है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का उत्पादन 6 फीसदी घटा है। आईआईपी में इस सेक्टर का योगदान 75.53 फीसदी है। सूचकांक में 14.16 फीसदी का योगदान रखनेवाले खनन क्षेत्र का उत्पादन 7.2 फीसदी घटा है। एकमात्र राहत सूचकांक में 10.31 फीसदी का योगदान रखनेवाले बिजली क्षेत्र में है जिसका उत्पादन अक्टूबर में 5.6 फीसदी बढ़ा है। वित्त वर्ष के बाकी छह महीनों की बदौलत अप्रैल-अक्टूबर 2011 के दौरान औद्योगिक उत्पादन की विकास दर 3.5 फीसदी रही है, जबकि बीते वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 8.7 फीसदी रही थी।