ब्याज के फंदे ने कसा गला औद्योगिक विकास का, बढ़त सिमटी 1.81% तक

पिछले बीस महीनों से कसते ब्याज दर के फंदे ने भले ही मुद्रास्फीति का बालबांका न किया हो, लेकिन औद्योगिक विकास का गला जरूर कस दिया है। खदानों, फैक्टरियों और सेवा क्षेत्र से मिले ताजा आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में मात्र 1.81 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि जानकारों का औसत अनुमान 3.5 फीसदी का था। यह सितंबर 2009 के बाद पिछले दो सालों की न्यूनतम औद्योगिक वृद्धि दर है। सितंबर 2010 में आईआईपी 6.1 फीसदी बढ़ा था।

सबसे ज्यादा निराशाजनक बात यह है कि पिछले तीन महीनों से औद्योगिक विकास की नब्ज बराबर डूबती ही जा रही है। इसकी वृद्धि दर जुलाई में 3.84 फीसदी, अगस्त में 3.58 और सितंबर में केवल 1.81 फीसदी रही है। अगस्त का त्वरित अनुमान 4.1 फीसदी का था। लेकिन संशोधित अनुमान कम निकला है। सितंबर 2010 में आईआईपी 160.3 था, जबकि सितंबर 2011 में यह 163.2 रहा है। अगर चालू वित्त वर्ष 2011-12 की सितंबर तक की पहली छमाही की बात करें को औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 4.99 फीसदी बढ़ा है। पिछले साल की समान अवधि में यह सूचकांक 8.2 फीसदी बढ़ा था।

एक्सिस बैंक के अर्थशास्त्री सौगात भट्टाचार्य का कहना है, “ये आंकड़े उम्मीद से कमतर हैं। खासकर पूंजीगत उद्योग की वृद्धि ठंडी है। लेकिन यह वृद्धि कुल मिलाकर काफी कम है और इससे जीडीपी की विकास दर को चोट पहुंच सकती है।”

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में करीब 75.53 फीसदी का योगदान रखनेवाला मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर सितंबर में सिर्फ 2.1 फीसदी बढ़ा है। 14.16 फीसदी का योगदान रखनेवाले खनन क्षेत्र का उत्पादन बढ़ने के बजाय 5.6 फीसदी घट गया है, जबकि 10.31 फीसदी के योगदान वाले बिजली क्षेत्र का उत्पादन इस दौरान 9 फीसदी बढ़ गया है।

देश के कॉरपोरेट जगत ने औद्योगिक विकास में आई सुस्ती के लिए ब्याज दरों में हुई वृद्धि और वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता के चलते निवेश में आई कमी को जिम्मेदार बताया है। बता दें कि रिजर्व बैंक मार्च 2010 के बाद से 13 बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है। नीतिगत दरों में आखिरी वृद्धि उसने 25 अक्टूबर को की है। इस समय रेपो दर (वह सालाना ब्याज दर जिस पर बैंकों को रिजर्व बैंक अल्पकालिक उधार देता है) 8.50 फीसदी और रिवर्स रेपो दर (वह सालाना ब्याज दर जो बैंकों द्वारा जमा कराए गए धन पर रिजर्व बैंक उन्हें देता है) 7.50 फीसदी है।

अप्रैल-सितम्बर की अवधि के दौरान मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की संचयी वृद्धि दर 5.4 फीसदी रही। सितम्बर में 22 औद्योगिक समूहों में से 15 समूहों ने धनात्मक वृद्धि दर्ज की है। रिजर्व बैंक ने पिछली दर वृद्धि के वक्त संकेत दिया था कि अगर महंगाई दिसम्बर से नीचे आने लगी तो वह दरों में और वृद्धि नहीं करेगा। लेकिन औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर में इस गिरावट से उस पर दबाव बन सकता है कि वह दरों में वृद्धि का सिलसिला फौरन रोक दे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *