ट्रेडिंग धंधा शांति का, हड़बड़ी का नहीं!

धन देशी-विदेशी हो या काला सफेद, उसका प्रवाह ही शेयरों के भाव तय करता है। इस प्रवाह की वजह कुछ हो सकती है, कोई अच्छी खबर, भावी संभावना या ऑपरेटरों का मैन्यूपुलेशन। रिटेल ट्रेडर को इसका पता तो ज़रूर होना चाहिए। लेकिन यह उसकी ट्रेडिंग रणनीति का हिस्सा नहीं हो सकता, क्योंकि उसके पास यह जानकारी तभी आती है जब बाज़ार और शेयरों के भाव इसे सोख चुके हैं। इसलिए उसे मानकर चलना चाहिए कि स्टॉक ट्रेडिंग विशुद्ध रूप से सट्टेबाज़ी का बिजनेस है। हालांकि इस सट्टेबाज़ी में ब्लाइंड नहीं, बल्कि हर प्लस-माइनस देखकर रिस्क को न्यूनतम रखते हुए रिटर्न को अधिकतम करने का सलीका होना चाहिए। इसी कड़ी में हमने जाना कि स्टॉप-लॉस ट्रेडिंग के बिजनेस की अपरिहार्य लागत है जिससे आज तक न कोई ट्रेडर बचा है, न ही अभी और बाद में बच सकता है। स्टॉप-लॉस हमारी ट्रेडिंग पूंजी को न खाए, इसका सर्वमान्य तरीका है: किसी एक सौदे में 2% से ज्यादा नुकसान न उठाया जाए और महीने में अगर नुकसान 6% तक पहुंच जाए तो उस महीने की ट्रेडिंग फौरन रोक दी जाए। दूसरे शब्दों में आमतौर पर खरीदने के हर सौदे में डिमांड-ज़ोन के निचले स्तर से 2% नीचे का स्टॉप-लॉस लगाया जा सकता है। पोजिशन साइज़िंग भी ट्रेडिंग पूंजी को बचाने का तरीका है। अब जानते और समझते है कि स्टॉक ट्रेडिंग में सफलता के दूसरे बुनियादी उसूल क्या हैं…

कैसे पड़ें उन्नीस पर बीस: स्टॉक ट्रेडिंग ज़ीरो-सम गेम है। इसमें एक का फायदा, दूसरे का नुकसान और एक का नुकसान दूसरे का फायदा है। इसलिए आप सामनेवाले से थोड़ा-सा भी बेहतर हुए तो जीतेंगे। यह बेहतरी तीन चीजों से बनती हैं – सूचनाएं, विश्लेषण व भावनात्मक बर्ताव। सूचनाओं में आप बाज़ार के उस्तादों पर बीस नहीं, उन्नीस ही पड़ेंगे। विश्लेषण में दक्षता निरंतर अभ्यास और टेक्नोलॉजिकल कुशलता से आती है। इसके बाद बची तीसरी व निर्णायक चीज़, जिसके मालिक आप और केवल आप हैं। आप कहेंगे कि भावना तो हर इंसान में होती है, उससे कैसे बचा जा सकता है! सही बात है। लेकिन भावनाओं का खेल, उसका मनोविज्ञान समझकर इस पर काबू न किया तो ट्रेडिंग में कभी कामयाब नहीं हो सकते। स्टॉप-लॉस और पोजिशन साइज़िंग भावनाओं को किनारे रखने का महज एक सामान्य व छोटा-सा अनुशासन है। लेकिन भावनाएं उबाल मारती हैं तो ऐसे छोटे-मोटे अनुशासन हवा में उड़ जाते हैं।

भाव और भावनाओं को समझें: ध्यान दें कि हम इंसान हैं। एआई से संचालित कोई प्रोग्राम या रोबोट नहीं। इंसान होने के नाते हमारे अंदर जो भी भावनाएं या विचार उठते है, उससे शरीर में खास तरह के हॉर्मोन बनते हैं। हॉर्मोन्स का यह स्राव हमारी मानसिक अवस्था का निर्धारण भी करता है। शेयर या किसी भी वित्तीय बाज़ार में भी यह क्रिया-प्रतिक्रिया चलती रहती है। ऐसी ट्रेडिंग के दौरान हमारी स्थिति बराबर करो या मरो की रहती है। लालच और भय की भावनाएं हमें जकड़ लेती हैं। तनाव में हमारे शरीर की ग्रंथियों से एड्रेनलिन व कोर्टिज़ोल जैसे हॉर्मोन निकलते है जो एक स्तर से ज्यादा होने पर हृदय समेत सारी प्रतिरोधक क्षमता को तगड़ा नुकसान पहुंचाते हैं। ये हॉर्मोन सुबह 4 से 8 बजे तक न्यूनतम से अधिकतम पर पहुंच जाते है। इस दौरान अगर हम ध्यान की किसी पद्धति से अपने मन को न भटकने दें तो बाकी दिन हम काफी संतुलित रह सकते हैं। अपने बाज़ार के कुछ सफलतम ट्रेडर बुद्ध की सिखाई ध्यान की विपश्यना पद्धति का अभ्यास करते हैं।

असल में शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग में भाग लेना एक तरफ के युद्ध में शिरकत करने जैसा है। पल-पल बदलता बाज़ार और शेयरों का भाव हमें बराबर भिडो या भागो (fight-or-flight) के मोड में डालता रहता है। शरीर इन हॉर्मोन्स को तब से निकालता रहा है जब आदिम इंसान जंगलों में रहता था। लाखों साल बाद भी ये हॉर्मोन इंसान को लड़ने या भागने के लिए तैयार करते रहते हैं। खतरे का अहसास होते ही हमारे मस्तिष्क में संवेदनशील तंत्र अमिगडाला सक्रिय हो जाता है और हमारे सिम्पैथेटिक नर्वल सिस्टम को सक्रिय कर देता है। फिर वहां से एड्रेनलिन और कोर्टिज़ोल जैसे हॉर्मोन निकलने लगते हैं। इससे हमारे दिल की धड़कनें बढ़ जाती है, सांस अधिक गति से चलने लगती है, खून का सर्कुलेशन तेजड हो जाता है, बीपी बढ़ जाता है और मांसपेशियों में तनाव आ जाता है। इससे शरीर में ऊर्जा तो आती है। लेकिन साथ ही तर्क छोड़कर भावनाओं में डूबने-उतराने लगते हैं। जाहिर है कि ऐसी अवस्था में हम कोई सुसंगत निर्णय नहीं ले सकते।

टेंशन में कभी भी ट्रेडिंग नहीं: इसीलिए माना जाता है कि टेंशन की स्थिति में कभी भी ट्रेडिंग नहीं करनी चाहिए। टेंशन में ट्रेडिंग करेंगे तो निश्चित रूप से पिटेंगे। घर में पति-पत्नी में झगड़ा हुआ तो अगले दिन ट्रेडिंग कतई न करें। दिमाग में किसी भी तरह की उलझन या परेशानी हो तो उस दिन ट्रेडिंग से दूर रहें। ट्रेडिंग में सफलता तभी मिलती है, जब हम पूरी तरह शांत व सतर्क होते हैं। शांत व सतर्क रहने के लिए रिटेल ट्रेडरों को एक अनुशासन यह बरतना चाहिए कि उन्हें कभी भी इंड्रा-डे ट्रेडिंग और एफ एंड ओ सेगमेंट में ट्रेडिंग नहीं करनी चाहिए। तमाम अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि इंट्रा-डे से लेकर फ्यूचर्स व ऑप्शंस के सौदों में 90% से ज्यादा ट्रेडर घाटा खाते हैं। इन स्थितियों को देखते हुए रिटेल ट्रेडरों को शेयर बाजार में चार-पांच दिनों से लेकर एकाध महीने की स्विंग, मोमेंटम व पोजिशनल ट्रेडिंग ही करनी चाहिए। इसी में उनका मानसिक व आर्थिक भला है।

व्यक्तिगत या संस्थागत किसी भी ट्रडर को तनाव-प्रबंधन के अलग उपाय भी करने चाहिए। शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग बेहद तनाव का बिजनेस है। मार्क टूप मार्केट नुकसान बड़े-बड़ों को अंदर से हिला देता है। अगर इस तरह के हालात से उपजे भावनात्मक तनाव से आप निपट नहीं सकते तो समझ लीजिए कि आप ट्रेडर बनने लायक नहीं हैं। तब आपको ट्रेडिंग छोड़कर तनाव-प्रबंधन के लिए छह महाने या साल भर विपश्यना जैसी ध्यान पद्धति का अभ्यास करना चाहिए। जब आपको यकीन हो जाए कि आप भावनात्मक तनाव को संभालने के काबिल हो गए हैं, तभी फिर से ट्रेडिंग के बिजनेस में उतरना चाहिए।

कैसे व्यक्ति, रिस्क की सीमा क्या: साथ ही आपको Behavioral Finance या व्यवहार संबंधी फाइनेंस का अध्ययन करना चाहिए और पता लगाना चाहिए कि आप किस तरह के व्यक्ति हैं और आपके रिस्क की क्या सीमा है? आपको पता होना चाहिए कि आप वित्तीय स्तर पर कितना रिस्क ले सकते हैं। वो हद क्या है जिसके बाद चीजें आपके हाथ से निकल जाएंगी? इन अमूर्त चीज़ों की साफ आकलन आपने दिमाग में होना चाहिए। नहीं तो तमाम ट्रेडर घाटा लगने पर आत्महत्या जैसे स्थिति में चले जाते हैं। हमारे भाषायी समाज (हिंदी, मराठी व गुजराती से लेकर तमिल-तेलुगू, मलयाली व बंगाली भाषा-भाषी) लाखों ट्रेडरों के परिवार शेयर बाज़ार के कमाई के चक्कर में तहस-नहस हो जाते हैं। इन्हें बचाने की मूल जिम्मेदारी उस परिवार के ट्रेडर सदस्य की है। आपको अपना स्वभाव और रिस्क प्रोफाइल इसलिए भी जान लेना चाहिए क्योंकि जिन स्टॉक्स में आप ट्रेड करने जा रहे हैं, उनका भी एक तरह का स्वभाव हो जाता है। अपने माफिक स्टॉक्स चुनना भी ट्रेडिंग में सफलता के लिए ज़रूरी है।

विकसित करें समता व समभाव: रिटेल ट्रेडर को अगर सफल होना है तो उसे अपने अंदर समता या समभाव का मानस विकसित करना होगा। न हारने पर पस्त होना और न जीतने पर उन्माद से भर जाना। समभाव या समता का भाव आपके आस-पास के वातावरण के साथ संतुलन और संयम का एक स्तर है, जिसका अर्थ है कि आपके आस-पास जो कुछ भी हो रहा है, आपको उसके बीच अपना काम या बिजनेस करके जाना है। हमेशा याद रखें कि शेयर बाज़ार समेत सारे वित्तीय बाज़ार आज की नहीं, भविष्य की सोचकर चलते हैं। इसलिए बड़े सेंटीमेंटल होते हैं तो उनमें रिस्क भी ज्यादा होता है। इस रिस्क को संभालने की बुनियादी शर्त है कि हम अपने रिस्क की सीमा को सही तरीके से समझें। साथ ही हर दिन हमें भान होना चाहिए कि ट्रेडरों में सामूहिक स्तर पर डर या घबराबट की स्थिति और बाज़ार में भिड़ने की उनकी तैयारी क्या है। इसके दिखाने के लिए दो डेटा हर दिन आते हैं। एक है कैश सेगमें में इंडिया वीआईएक्स और दूसरा है डेरिवेटिव सेगमेंट में कुल मार्केट वाइड पोजिशन लिमिट (MWPL) या ट्रेडरों की रिस्क लेने की तैयारी। इन दोनों आंकड़ों को रिटेल ट्रेडर को हर दिन ट्रेडिंग का सेट-अप बनाने से पहले देख लेना चाहिए।

अहंकार छोड़ विनम्रता सीखें: हर दिन खुद को इस बात के लिए तैयार रखें कि शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग ऐसा बिजनेस है जहां आपके आत्मसम्मान को हर दिन चुनौती मिलती है। बाज़ार चंद मिनट में आपको गलत साबित कर सकता है। आप उससे तर्क-वितर्क भी नहीं कर सकते। आपकी निजी धारणा या अनुमान हो सकता है। पर, बाज़ार उसकी रत्ती भर परवाह नहीं करता। उसे जो करना है, वो ही करेगा। इसलिए आप लम्बे समय तक सफलता से ट्रेड करना चाहते हैं तो विनम्रता बड़ी ज़रूरी है। अतिविश्वास जीवन के हर क्षेत्र के लिए बुरा है। फिर भी इंसान को इसका कोई भान नहीं रहता। उसको लगता है कि वो जो चाहे, हासिल कर लेगा। जैसे, कहते हैं कि टिटहरी को गुमान है कि आकाश अगर गिरेगा तो वह उसे अपने पैरों पर संभाल लेगी। इसीलिए वो पैर ऊपर करके सोती है।

अतिविश्वास है घातक: इस तरह का अतिविश्वास शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग के लिए बेहद खतरनाक है। इससे आप में सुरक्षा का झूठा भाव आ जाता है। गुमान हो जाता है कि बाज़ार पर आपकी राय हमेशा सही बैठती है। इस गफलत में आप अपनी औकात से ज्यादा बड़े सौदे कर बैठते हैं। नतीजतन भयंकर घाटे के शिकार या दिवालिया तक हो जाते हैं। इस अहंकार से बचना ज़रूरी है। समस्या यह भी है कि इंसान होने के नाते हमारा सहज स्वभाव है कि हम हमेशा सही होना चाहते हैं और गलत होने से नफरत करते हैं। लेकिन ट्रेडिंग और निवेश की दुनिया में यह सहज स्वभाव नहीं चलता क्योंकि इसमें गलत होना और घाटा लगना पक्का है। सबसे अच्छे ट्रेडर भी समय-समय पर घाटा खाते रहते हैं। आम ट्रेडर और उनमें अंतर बस इतना है कि वे घाटे को न्यूनतम और मुनाफे को अधिकतम रखना जानते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *