कहा जाता है कि जहाज जब डूबने को होता है तो सबसे पहले चूहे निकलकर भागते हैं। यह अलग बात है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के संकट में फंसने का संकेत पाकर हमारे शेयर बाज़ार से निकल भागनेवाले कोई चूहे जैसे पिद्दी नहीं, बल्कि विशाल आकार व प्रभाव वाले विदेशी संस्थागत या पोर्टफोलियो निवेशक (एफआईआई/ एफपीआई) हैं। 27 सितंबर 2024 से 14 फरवरी 2025 तक वे हमारे शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट से ₹2.01 लाख करोड़ निकाल चुके हैं। उन्होंने ₹2.01 लाख करोड़ की शुद्ध बिकवाली की है तो सामने से घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) और हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल्स (एचएनआई), ब्रोकरेज़ फर्मों व रिटेल निवेशकों वगैरह ने इतने की ही शुद्ध खरीद की होगी क्योंकि शेयर बाज़ार में खरीद व बिक्री का हिसाब हमेशा बराबर होता है। कोई भूल-चूक लेनी-देनी नहीं। फिर भी इस दौरान बीएसई सेंसेक्स 11.68% और एनएसई निफ्टी 12.74% गिर चुका है। साफ है कि विदेश के एफपीआई देश के भीतर के डीआईआई व एचएनआई जैसे सभी निवेशकों पर भारी हैं। एनएसई के बाज़ार पूंजीकरण को आधार बनाएं तो 27 सितंबर 2024 से 14 फरवरी 2025 तक के करीब साढ़े चार महीनों में निवेशकों के ₹75,97,541 करोड़ स्वाहा हो चुके हैं। अब सोमवार का व्योम…
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