सेबी ने स्टॉक एक्सचेंजों को नाममात्र की ट्रेडिंग वाले या इल्लिक्विड हो गए लगभग 1500 शेयरों की एक सूची भेजी है जिसमें म्यूचुअल फंडों की 50 के आसपास क्लोड-एंडेड स्कीमें भी शामिल हैं। यह सूची 1 नवंबर से 30 नवंबर तक हुई ट्रेडिंग के आंकड़ों पर आधारित है और इसे एनएसई, बीएसई व सेबी के बीच बनी समान समझ के आधार पर तैयार किया गया है। आगे से इसी तरह की सूची हर महीने एक्सचेंजों के ट्रेडिंग सदस्यों/ब्रोकरों को भेजी जाएगी। सेबी के निर्देश में ब्रोकरों से कहा गया है कि इन शेयरों में अपने खाते या अपने ग्राहकों की तरफ से ट्रेडिंग करते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी, ड्यू डिलिजेंस अपनाना होगा यानी हर मामले को कायदे से ठोंक-बजाकर परखना होगा।
अगर हम म्यूचुअल फंड स्कीमों को किनारे रख दें तो इस सूची में जिन शेयरों को शामिल किया गया है, वे सभी एक समय सामान्य स्टॉक हुआ करते थे। जब इनमें वोल्यूम सूख गया और ये इल्लिक्विड हो गए, तब इन्हें ट्रेड टू ट्रेड श्रेणी में शिफ्ट कर दिया गया। बाद में जब इन्हें फिर से ट्रेड टू ट्रेड से निकालकर सामान्य श्रेणी में लाया गया, तब भी ये इल्लिक्विड बने रहे। इसकी कुछ खास वजहें हैं।
एक, हालांकि सेबी व एक्सचेंजों ने इनमें अतिरिक्त जांच-परख की जरूरत ही बताई है। लेकिन ब्रोकर इनमें ट्रेड करने से ही मना कर देते हैं। दो, अगर ब्रोकर ट्रेडिंग करते भी है तो उनका कहना होता है कि कोई भी निवेशक उस स्टॉक में हुए वोल्यूम का 10 फीसदी से ज्यादा ट्रेड नहीं कर सकता। नतीजतन, व्यवहार मे ऐसे स्टॉक इल्लिक्विड हो जाते हैं। असल में इस शर्त का कोई मतलब नहीं है कि स्टॉक लिक्विड हो गए तो निवेशक उनमें 10 फीसदी से ज्यादा नहीं खरीद सकता। अब कोई ये तो बताए कि सुबह-सुबह 9 बजे बाजार खुलने पर कोई निवेशक कैसे तय कर सकता है कि इसमें कुल वोल्यूम कितना होनेवाला है? यही वह नुक्ता है जहां से संजय डांगी और एचएनआई व दूसरे ऑपरेटरों की भूमिका शुरू होती है। नियम-कायदों को धता बताने के लिए नियत ब्रोकरों के साथ उनके तमाम खाते होते हैं।
जरा उनके खेल के तरीके पर गौर कीजिए। उदाहरण के लिए मान लीजिए पहले खाते से मात्र 1000 शेयर खरीदते जाते हैं, फिर दूसरे खाते से 1000 शेयर और यह सिलसिला चलता रहता है। इस तरह 50 खातों का वोल्यूम 50000 शेयरों का बन जाता है। अब 10 फीसदी के नियम के तहत पहले खातेवाला 4000 शेयर और खरीद सकता है। इसी तरह दूसरा और तीसरा भी 4000 शेयर और खरीद सकता है। 50वें खाते तक पहुंचने पर वोल्यूम 2.50 लाख शेयरों का बन जाता है। अब एक निवेशक के लिए स्वीकृत ट्रेडिंग की मात्रा 5000 शेयरों से बढ़कर 25,000 हो जाती है। यह है सर्कुलर ट्रेडिंग। आखिर कौन इसके लिए जिम्मेदार है?
बाजार में इस तरह के खेल या जोड़तोड़ को पकड़ने का कोई परिभाषित सिस्टम नहीं है और ऊपर से सेबी चिल्लाने लगती है कि भावों को नचाया जा रहा है, सर्कुलर ट्रेडिंग हो रही है, वगैरह-वगैरह। एक स्वचालित या ऑटोमेटेड सिस्टम बना दीजिए, ट्रेड टू ट्रेड में डालने में एक्सचेंजों की भूमिका खत्म कर दीजिए। फिर देखिए, कैसे सब चीजें दुरुस्त हो जाती हैं।
सूची इल्लिक्विड शेयरों की: sebi illiquid