बीएसई एचएफसीएल से मुक्त, पर एनएसई के लिए दाग अच्छे हैं

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) ने हिमाचल फ्यूचरिस्टिक कम्युनिकेशंस (एचएफसीएल) को बीएसई-500 और बीएसई स्मॉल-कैप सूचकांक से निकाल बाहर किया है। लेकिन खुद को ज्यादा तेजतर्रार व प्रोफेशनल बतानेवाले नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने इस कंपनी को अब भी एस एंड पी सीएनएक्स-500 जैसे सम्मानित सूचकांक में शामिल कर रखा है, जबकि करीब दो हफ्ते पहले उसे उसकी इस ‘लापरवाही’ की सूचना मीडिया की तरफ से दी जा चुकी है। हालांकि एनएसई ने तब इस बाबत पूछे गए सवाल का जवाब देने तक की जहमत नहीं उठाई थी।

बीएसई ने गुरुवार को जारी सूचना में बताया है कि 8 फरवरी से एचएफसीएल (बीएसई कोड – 500183) के शेयरों में ट्रेडिंग रोक दी जाएगी क्योंकि कंपनी की पूंजी काफी घट गई है। इसी वजह से उसे बीएसई-500 और बीएसई स्मॉल-कैप सूचकांक से भी बाहर निकाला गया है। बता दें कि एचएफसीएल की कुल इक्विटी तो 462.79 करोड़ रुपए की है। लेकिन इसमें प्रवर्तकों का हिस्सा मात्र 2.01 फीसदी है, जबकि बाकी 97.93 फीसदी हिस्सा पब्लिक के पास है। इसमें से एफआईआई के पास 1.78 फीसदी और डीआईआई के पास 0.16 फीसदी शेयर हैं। शेयर का भाव अभी अपने अंकित मूल्य दस रुपए से नीचे 9.86 रुपए चल रहा है। कंपनी बराबर घाटे में है। उसकी नेटवर्थ (इक्विटी + रिजर्व) ऋणात्मक हो चुकी है। सितंबर 2010 के तिमाही नतीजों के अनुसार उसकी कुल नियोजित पूंजी (-) 372.74 करोड़ रुपए है।

एनएसई में यह स्टॉक पिछले छह महीनों से दस रुपए के आसपास या इससे नीचे रहा है। लेकिन इस हालत के बावजूद एनएसई ने 500 चुनिंदा कंपनियों के सूचकांक में शामिल कर रखा है। साल भर पहले फरवरी 2010 में पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने कंपनी के खिलाफ एक मामला 10 करोड़ रुपए लेने के बाद कंसेंट ऑर्डर के जरिए रफा-दफा किया था।

यह मामला 1999-2001 मं केतन पारेख के घोटाले के दौर का है। केपी ने तमाम प्रवर्तकों के साथ मिलकर दस कंपनियों के शेयरों के भाव में कथित रूप से धांधली की थी। इन कंपनियों में एचएफसीएल भी शामिल थी। 2001 में सेबी ने इस मसले पर गठित जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) को बताया था कि ज़ी समूह और एचएफसीएल ने क्रमशः 515 करोड़ रुपए और 700 करोड़ रुपए केपी को धांधली के लिए दिए थे।

इसके बाद 2004 में सेबी ने एचएफसीएल के निदेशकों व सहयोगियों को कारण बताओ नोटिस भेजा। कार्यवाही चल ही रही थी कि 31 मई 2008 और 4 जून 2008 को कंपनी ने कंसेंट ऑर्डर के जरिए मामले को सुलटाने का प्रस्ताव रखा। सेबी ने तब एक उच्चस्तरीय समिति बनाई जिसकी सिफारिश पर मामला 10 करोड़ लेकर खत्म कर दिया गया।

इसके अलावा दिल्ली के एक एनजीओ – सोसायटी फॉर कंज्यूमर्स एंड इनवेस्टर्स प्रोटेक्शन ने सेबी से शिकायत कर रखी है कि एचएफसीएल द्वारा एक निजी फर्म सनविजन इंजीनियरिंग कंपनी का अधिग्रहण प्रवर्तकों द्वारा कंपनी में हिस्सेदारी बढ़ाने का बहाना है। फिर, तीन सालों की धनात्मक नेटवर्थ, बाजार पूंजीकरण, वित्तीय कामकाज व उद्योग का प्रतिनिधित्व जैसी कई शर्तें हैं जिनके आधार पर किसी कंपनी को सूचकांक में जगह मिलती है। कमाल की बात है कि इन शर्तों को न पूरा करने के बावजूद एनएसई ने एचएफसीएल को एस एंड पी सीएनएक्स 500 सूचकांक में शामिल कर रखा है।

बता दें कि बाजार में एचएफसीएल को मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज के फ्रंट के रूप में काम करनेवाली कंपनी माना जाता है। एचएफसीएल के प्रवर्तक महेंद्र नहाटा के बेटे अनंत नहाटा की मामूली इंटरनेट सेवा देनेवाली कंपनी इंफोटेल ब्रॉडबैंड कुछ महीने पहले पूरे देश में ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस का लाइसेंस पानेवाली इकलौती कंपनी थी। कुछ ही दिनों बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज ने घोषणा कर दी कि वह इंफोटेल ब्रॉडबैंड की 95 फीसदी इक्विटी खरीदेगी। इस तरह यह कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज की सब्सिडियरी बन गई जिसके जरिए मुकेश अंबानी देश के टेलिकॉम बाजार में फिर से प्रवेश करना चाहते हैं। वैसे बता दें कि महेंद्र नहाटा के बड़े करीबी घरेलू किस्म के रिश्ते सेबी के पूर्व चेयरमैन डी आर मेहता के साथ रहे हैं। मेहता 1995 से 2002 तक सेबी के चेयरमैन थे।

जानकारों का कहना है कि किसी भी स्टॉक एक्सचेंज को सूचकांकों का निर्धारण करते वक्त बड़ी सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि निवेशक आंख मूंदकर इन सूचकांकों पर भरोसा करते हैं। लेकिन एनएसई लोगों के इस भरोसे के साथ खिलवाड़ कर रहा है क्योंकि ‘अनजान’ वजहों से वह हिमाचल फ्यूचरिस्टिक जैसी कंपनी को अब भी अपने सूचकांक में शामिल किए हुए है।

http://www.nseindia.com/content/indices/ind_cnx500list.csv

 

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