देश की आर्थिक विकास दर इस वित्त वर्ष में 7.6 फीसदी से कम रहेगी और मार्च 2012 के अंत तक मुद्रास्फीति का घटकर 7 फीसदी पर आ जाना काफी अनिश्चित है। ये दोनों ही अनुमान रिजर्व बैंक ने 25 अक्टूबर को मौद्रिक नीति की दूसरी त्रैमासिक समीक्षा के वक्त पेश किए थे। तीसरी त्रैमासिक समीक्षा 24 जनवरी को पेश की जानी है और रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने संकेत दे दिया है कि आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति के अनुमान उस वक्त बदल दिए जाएंगे। सुब्बाराव की यही खासियत है कि वे जबरदस्ती का सस्पेंस बनाकर नहीं रखना चाहिए और केंद्रीय बैंक के फैसलों में ज्यादा से ज्यादा पारदर्शिता लाने की कोशिश में लगे हैं।
सुब्बाराव ने गुरुवार को विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश) में एक समारोह के दौरान कहा कि आसार इस बात के हैं कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 फीसदी से कम दर से बढ़ेगी और मुद्रास्फीति का मार्च 2012 तक रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित 7 फीसदी के लक्ष्य पर आना मुश्किल है।
बता दें कि खाद्य मुद्रास्फीति की दर भले ही अब घटकर 1.81 फीसदी पर आ गई हो, लेकिन सकल मुद्रास्फीति की दर अब भी 9 फीसदी से ऊपर बनी हुई है। सितंबर, अक्टूबर व नवंबर में यह क्रमशः 9.72, 9.73 व 9.11 फीसदी रही है। जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की विकास दर जुलाई-सितंबर की तिमाही में 6.9 फीसदी रही है जो दो सालों से भी ज्यादा वक्त की सबसे न्यूनतम दर है। ऊपर से अक्टूबर में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक बढ़ने के बजाय 5.1 फीसदी घट गया है। ऐसे में रिजर्व बैंक गवर्नर सुब्बाराव किसी निराशावाद के चलते नहीं, बल्कि यथार्थ को समझकर अपनी बात कह रहे हैं।
रिजर्व बैंक ने गुरुवार को ही वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट जारी की है जिसके मुताबिक कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और सोना, मशीनरी व इलेक्ट्रॉनिक सामग्रियों के आयात में तेज वृद्धि के कारण देश के चालू खाते के घाटे और बढ़ जाने की आशंका है। सरकार कर राजस्व में कमी और सब्सिडी जैसे मदों में खर्च के बढ़ जाने से राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.6 फीसदी के लक्ष्य तक सीमित नहीं रख पाएगी।
चालू वित्त वर्ष 2011-12 में जून तक की पहली तिमाही में चालू खाते का घाटा 14.1 अरब डॉलर रहा है, जो पिछली तिमाही का लगभग तीन गुना है। इस बार पूरे साल में चालू खाते का घाटा 54 अरब डॉलर पर पहुंच जाने का अनुमान है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट का कहना है, “ताजा आंकड़े व्यापार घाटे के और बढ़ जाने का संकेत देते हैं। नतीजतन पहली तिमाही में बढ़े चालू खाते के घाटे के और बढ़ जाने का अंदेशा है।”
इस साल का व्यापार घाटा 155 से 160 अरब डॉलर के बीच रहने की उम्मीद है, जबकि बीते वित्त वर्ष 2010-11 में यह 104.4 अरब डॉलर था। इससे रुपए में और कमजोरी आने के हालात बने हुए हैं।