लक्ष्मी का रूप बदलने से समाज की तमाम दीवारें टूटती गईं। पहले अपने यहां कहा जाता था – जाति न पूछो साधु की। अब नोटों के वर्चस्व ने सही मायनों में जाति-धर्म की सारी दीवारें तोड़ दी हैं। राजनीति ने निहित स्वार्थों के चलते बचाए न रखा होता तो आज जाति-धर्म की दीवारों का नामोनिशान तक नहीं मिलता। उधर अंतरराष्ट्रीय व्यापार मुद्राओं की देशी सीमाएं तोड़ चुका है। दुनिया में आज डॉलर कहीं भी चलता है। अंग्रेज़ी विश्वभाषा है तो डॉलर विश्वमुद्रा। लेकिन धीरे-धीरे डॉलर समेत तमाम मुद्राओं का भी लोप हो रहा है। अब बिट-कॉयन जैसी क्रिप्टो करेंसी ज़ोर पकड़ रही हैं। ब्लॉकचेन टेक्नोलॉज़ी, किसी सरकार या केंद्रीय बैंक का कोई लफड़ा नहीं। अब बुधवार की बुद्धि…
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