सरकार को फिक्र कालाधन रखनेवालों के मानवाधिकार की, जुटी पर्दादारी में

जिस सरकार को आमतौर पर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आम आदमी के मानवाधिकारों की खास फिक्र नहीं रहती, उसे विदेश में काला धन रखनेवाले खास भारतीयों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की भारी चिंता सता रही है। सोमवार को वित्त मंत्रालय की तरफ से कालेधन पर संसद में पेश श्वेतपत्र में कहा गया है कि सरकार ने दुनिया के जिन देशों के साथ दोहरा कराधान बचाव करार (डीटीएए) या कर सूचना विनिमय करार (टीआईईए) कर रखे हैं, वे मानवाधिकारों की रक्षा के लिए ऐसी गोपनीयता पर जोर देते हैं, जिसे भारत ने भी मान्यता दे रखी है। इसलिए इनका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। बता दें कि भारत ने इस समय 82 देशों के साथ डीटीएए और 6 देशों के साथ टीआईईए संधियां कर रखी हैं। साथ ही 37 देशों के साथ इस तरह के करार की बातचीत विभिन्न चरणों में है।

97 पन्नों के श्वेतपत्र के 68वें पन्ने पर सरकार ने अपनी बात उदाहरण देकर समझाई है। उसका कहना है कि मान लीजिए कि किसी देश से 100 भारतीयों के बैंक खातों की जानकारी मिलती है। लेकिन इससे खुद-ब-खुद नहीं साबित हो जाता कि ये सारे के सारे 100 खाते भारतीय नागरिकों द्वारा विदेश में रखे कालेधन से जुड़े हों। हो सकता है कि खाताधारी अनिवासी भारतीय (एनआरआई) हो जिस पर भारत में कर नहीं लगता हो और उसने बाहर जमा किए गए धन की सूचना आयकर विभाग को दे रखी हो। जांच व निर्धारण के पूरा होने पर ही पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि किसी भारतीय नागरिक द्वारा विदेशी बैंक खाते में जमा की गई रकम काला धन है या नहीं।

यकीनन बड़ी संवेदनशीलता व जिम्मेदारी का भाव झलकता है वित्त मंत्रालय की इस बात में। लेकिन इसी श्वेतपत्र में मंत्रालय ने डंके की चोट पर कहा है कि भारत से भेजा गया अवैध धन हवाला, गलत मूल्य निर्धारण (आयात-निर्यात की इनवॉयसिंग), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), भारतीय कंपनियों द्वारा जारी जीडीआर (ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट्स) और भारतीय शेयर बाजार में पार्टिसिपैटरी नोट्स (पी-नोट्स) के जरिए वापस आ सकता है। इस क्रम में पी-नोट्स पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया गया है। बता दें कि पी-नोट्स के जरिए एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) विदेशी निवेशकों का धन हमारे शेयर बाजार में लगाते हैं। इनमें विदेशी निवेशकों की पहचान छिपी रहती है। विदेश में पी-नोट्स की अलग से ट्रेडिंग भी होती है।

हालांकि हमारी पूंजी नियामक संस्था, सेबी का पी-नोट्स की ट्रेडिंग पर कोई अंकुश नहीं है। लेकिन खबरों के मुताबिक उसके पास पूरा रिकॉर्ड है कि पिछले कुछ महीनों में किन-किन लोगों ने पी-नोट्स के जरिए भारतीय शेयर बाजार में निवेश किया है। असल में अक्टूबर 2011 से एफआईआई को अपने हर सौदे का ब्यौरा सेबी के पास जमा कराना होता है। इसलिए वित्त मंत्रालय चाहे तो हर पी-नोट धारक का पता-ठिकाना हासिल कर सकता है। लेकिन उसने सब कुछ जानते हुए भी सेबी से ये जानकारी नहीं मांगी।

हम मान लेते हैं कि डीटीटीए व टीआईईए की शर्तों के कारण विदेशी बैंकों में काला धन रखनेवालों के नाम उजागर करने में दिक्कत आती है। लेकिन पी-नोट्स के जरिए जिन लोगों ने भारतीय शेयर बाजार में धन लगाया है, उनके नाम तो वित्त मंत्रालय जाहिर ही कर सकता था। साफ-सी बात है कि सरकार किसी न किसी बहाने काला धन रखनेवालों की परदादारी में जुटी है। कारण भी बड़ा साफ है कि इनमें बहुत सारे राजनेता, वीवीआईआई व अपराधी किस्म के लोग शामिल होंगे, जिनको छिपाना जरूरी है।

मालूम हो कि काला धन दो ही तरीकों से बनता है। पहला – ड्रग्स, स्मगलिंग, चोरी-डकैती, रिश्वखोरी व भ्रष्टाचार जैसी अवैध करतूतों से। दूसरा – एकदम वैध तरीके से की गई कमाई पर टैक्स न देने से। इसमें दूसरा तरीका ऐसा है जिसे डॉक्टर से लेकर वकील और पान की दुकान व खोमचे वाले तक अपनाते हैं। लेकिन सरकार ने कर-छिपाने के रास्ते इस कदर बंद कर दिए हैं कि इस तरीके से काला धन बनने की गुंजाइश बेहद घट गई है। ऐसे में पहला तरीका ही काले धन का स्रोत बना हुआ है, जिसे हमारी राजनीतिक पार्टियों ने संरक्षण दे रखा है। आपको याद होगा कि श्वेतपत्र आने के बाद बीजेपी नेता जसवंत सिंह का कहना था कि यह बिकनी की तरह है जिसमें सारी जरूरी चीजें छिपा ली जाती हैं और केवल गैर-जरूरी चीजों को उघाड़ा जाता है। बिकनी के उदाहरण से बीजेपी नेता की मानसिकता को समझा जा सकता है।

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