खाद्य सुरक्षा विधेयक बुधवार को संसद बहस के पेश किया जाएगा। इस विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रविवार को मंजूरी दे दी थी। इसके आने के लिए कॉरपोरेट क्षेत्र व उससे जुड़े अर्थशास्त्रियों ने फिर हल्ला उठा दिया कि सरकार पर इससे सब्सिडी का बोझ 21,000 करोड़ रुपए बढ़ जाएगा और खजाने का संतुलन गड़बड़ा जाएगा। ऐसा ही हल्ला कई साल पहले राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून लाते वक्त भी उठा था।
लेकिन हकीकत यह है कि खजाने पर आम आदमी को सब्सिडी देने से कहीं ज्यादा बोझ कॉरपोरेट क्षेत्र को दी गई रियायतों से पड़ता है। वित्त मंत्रालय द्वारा संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक बीते वित्त वर्ष 2010-11 में सरकार ने कर रियायतों के रूप में कॉरपोरेट क्षेत्र पर 4.61 लाख करोड़ रुपए की मदद दी है, वहीं गरीबों व किसानों को दी गई कुल सब्सिडी 1.53 लाख करोड़ रुपए की रही है। इस तरह सरकार आम आदमी से तीन गुना ज्यादा मदद कॉरपोरेट क्षेत्र को दे रही है।
सरकार ने 2010-11 में उत्पाद व सीमा शुल्क की रियायतों के रूप में कॉरपोरेट क्षेत्र पर 3.73 लाख करोड़ रुपए का टैक्स छोड़ दिया है, जबकि लाभ व निवेश संबंधी प्रत्यक्ष कर के रूप में उसने 88,000 करोड़ रुपए का टैक्स नहीं लिया। दूसरी तरफ इस दौरान खाद्य सब्सिडी 60,000 करोड़ रुपए, उर्वरक सब्सिडी 55,000 करोड़ रुपए और पेट्रोलियम सब्सिडी 38,000 करोड़ रुपए रही। इस तरह आम आदमी को दी गई कुल सब्सिडी 1.53 लाख करोड़ रुपए बनती है।
खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने मंगलवार को संवाददाताओं को बताया कि खाद्य सुरक्षा विधेयक के जरिए केंद्र सरकार एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करने की कोशिश कर रही है जिसमें इस क़ानून को लागू करने पर जो अतिरक्ति ख़र्च आएगा, उसमें केंद्र भी मदद कर सके। अनुमान है कि इस कानून को लागू करने से केंद्र सरकार पर खाद्य सब्सिडी का बोझ 21,000 करोड़ रुपए बढ़ जाएगा।