वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि सरकार ने पिछले साल अगस्त में भारतीय उद्योपतियों के साथ बैठक में मांगे गए सुझावों को आगे बढ़ाने की कोशिश की। लेकिन अगर, कुछ मोर्चों, खासतौर से मल्टी ब्रांड में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) जैसे मामलों में आर्थिक सुधारों और कुछ विधायी संशोधनों को पारित नहीं कराया जा सका तो इसके लिए सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
वित्त मंत्री ने बुधवार को प्रमुख उद्योग संगठन फिक्की की 84वीं सालाना आमसभा को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि विकास के वर्तमान स्तर को बनाए रखने और इसका लाभ सभी को समान रूप से देने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर पर जीडीपी का अतिरिक्त 3-4 फीसदी निवेश करने की जरूरत है। इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में निजी क्षेत्र प्रमुख भूमिका निभाते हैं। 12वीं योजना के दौरान निजी और पीपीपी (पब्लिक, प्राइवेट पार्टनरशिप) निवेश का हिस्सा कुल निवेश में 50 फीसदी बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है, जो 11वीं योजना में अनुमानतः 30 फीसदी था। इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए धन का अधिक प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए सरकार अनेक नीतिगत उपाय कर चुकी है।
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था के विकास में साझेदार के रूप में हमें मिलकर काम करना होगा। भारतीय उद्यमियों और अन्य साझेदारों के उत्साह पर भरोसा व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि देश की जनता की अकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सरकार के पास राजनीतिक इच्छाशक्ति है।
वित्त मंत्री ने कहा कि इस वर्ष की अंतिम तिमाही कठिनाई भरी रहने का अंदेशा है। 2011-12 में विकास दर 7.5 प्रतिशत या कम रही होगी। उन्होंने कहा कि ऐसे स्पष्ट संकेत हैं कि आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति की दर कम होगी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि मार्च 2012 के अंत में यह 6 से 7 प्रतिशत की दर पर आ जाएगी। औद्योगिक उत्पादन में भी तेजी के संकेत दिखाई दिए हैं, जबकि सेवा क्षेत्र ने वृद्धि की गति को बरकरार रखा है।